आग से दहकते हरे भरे जंगल, वन संपदा और पहाड़ों के सीने विकास और धन के लालच में हो रहे छलनी
आग से दहकते हरे भरे जंगल, वन संपदा और पहाड़ों के सीने विकास और धन के लालच में हो रहे छलनी
पानी, मिटटी, पेड़ और ब्यार यही हैं जीवन के आधार….ना करो इनसे खिलवाड़ हो जाओगे सबके सब बर्बाद
कुदरत को जो दोगे तो वो भी वापस आपको दोगुना-तिगुना करके तो लौटाएगी ही
भवन निर्माण, सड़कें चौड़ी करने के लिए अधाधुंध पेड़ कटान भुगतने पड़ेंगे गंभीर परिणाम
भवन निर्माण, सड़कें चौड़ी करने के लिए अधाधुंध पेड़ कटान आने वाले समय के लिए बहुत बड़ा खतरा
देश में जहां एक और चुनावी माहौल पूरी तरह अपने चरम पर है वही पहाड़ों की हरी-भरी वन संपदा आग की भेंट चढ़ती जा रही है। इस वक्त राजनीतिक पार्टियां अपनी चुनावी प्रचार रैलियों में इतनी उलझी पड़ी है कि उनकी एक- दूजे को हराने की होड़ के आगे आग और गर्मी की तपिश भी शायद कम पड़ रही है । खैर वन संपदा को चोट पहुंचाने में बड़े नेताओं, अमीर से लेकर मध्मय और गरीब तबके तक, हम सभी प्रकृति को जख्म देने के दोषी हैं। हिमाचल और उत्तराखंड की खूबसूरती हरे भरे पेड़ पहाड़ों से है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि जगह-जगह जंगलों में आग लगने की वजह से और पहाड़ों के भूस्खलन होने से यह खूबसूरती नष्ट होती जा रही है।
इन ऊंचे खूबसूरत आसमान को छूते पहाड़ों और हरे भरे पेड़ पौधों की खूबसूरती निहारने के लिए देश-विदेश से हजारों की संख्या में लोग हमारे पहाड़ों का रुख करते हैं। लेकिन आग की भेंट चढ़ती ये हरी भरी हमारी वन संपदा और पहाड़ों के सीने विकास के नाम हम छलनी करते जा रहे हैं, जो चिंता का विषय और खतरे का रूप लेता जा रहा है।
हरे भरे जगंलों में हर दिन आग लगने की घटनाएं कम होने की बजाए लगातार बढ़ रही हैं। न जाने कितने ही मासूम पक्षी और जानवर आग की भेंट चढ़ रहे हैं वहीं गर्मी का कहर। लोग हरे-भरे जंगलों, पेड़-पौधों को आग लगाकर खत्म करने में तुले हैं। घर बनाने के लिए, सड़कें चौड़ी करने के लिए अंधाधुंध पेड़ काटे जा रहे हैं और पहाड़ों के सीने छलनी किये जा रहे हैं, तो साफ़ है कि कुदरत को जो आप दोगे वो वापस कुदरत आपको दोगुना-तिगुना तो लौटाएगी ही। लोग सबक नहीं लेते क्योंकि ये घटनाएं हर साल कम होने के बजाए बढ़ती जा रही हैं। जंगलों में लगी आग से जहाँ हमारी वन संपदा नष्ट हो रही है, वहीं प्रदुषण बढ़ रहा है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बहुत बड़ा खतरा है।
हरे भरे जंगल खत्म हो रहे हैं, वहीं जंगल में जंगली जानवर पक्षियों के घोंसले लोगों की घटिया सोच के कारण नष्ट होते जा रहे
जंगल में आग लगने के कई कारण सामने आते हैं जिनमें खास तौर पर ग्रामीणों द्वारा पेड़ों के नीचे सूखी पत्तियां व अन्य खरपतवार को साफ करने के लिये आग लगाई जाती है, लेकिन ग्रामीण आग लगाने के बाद आग नहीं बुझाते और इससे आग पूरे क्षेत्र में चारों तरफ फैल जाती है और पेड़-पौधों को नष्ट कर देती है। इसके अलावा जंगल में खरपतवार की सफाई के लिये भी आग लगाने की जानकारी सामने आती रहती है। कुछ लोगों का मनना है कि आग लगाकर सुखी घास को जलाकर नई और अच्छी घास उगती है जो पशुओं के चारे के काम आती है। तब भी सुरक्षा अभाव के चलते आग रौद्र रूप धारण कर जंगलों को नष्ट कर देती है। चिन्ताजनक बात यह है कि लोग जानते हुए भी इस प्रकार की घटना को अंजाम देने से बाज नहीं आते। आग से होने वाले नुकसान को जानते समझते हुए लोग नासमझी का ढोंग रचाते हैं। हरे भरे जंगल खत्म हो रहे हैं, वहीं जंगल में जंगली जानवर पक्षियों के घोंसले लोगों की घटिया सोच के कारण नष्ट होते जा रहे हैं। खेद का विषय यह है कि यह घटनाएँ कम होने की बजाए लगातार बढ़ती जा रही हैं। प्रकृति का दुरूपयोग करने से मानव बाज नहीं आ रहा। हरे पेड़ पौधों को लगाने की बजाए काटने और जलाने पर जोर दे रहा है।
प्रशासन साल भर ऐसे मामलों में गंभीर नज़र नहीं आती। बरसात में भूस्खलन होने पर पहाड़ों की समस्या उठती है। गर्मियों के मौसम में जंगलों की आग पर सख्त कार्रवाई होने की चर्चा और उपायों पर चिंता जताई जाती है सब बातें कागज तक ही सिमट कर रह जाती हैं।
मानव जाति के लिए वन संपदा को नुकसान और पहाड़ों के सीने छलनी करना आने वाले समय के लिए बहुत बड़ा खतरा
मानव जाति के लिए वन संपदा को नुकसान और पहाड़ों के सीने छलनी करना आने वाले समय के लिए बहुत बड़ा खतरा है जिसमें नुकसान की भरपाई में बरसों लग जाते हैं। लेकिन हम एक-दूसरे की देखादेखी में प्रकृति से जो खिलवाड़ कर रहे हैं, अगर हम सुधरे नहीं तो प्रकृति इस खिलवाड़ की भरपाई कितना भयानक रौद्र रूप लेकर कर सकती है मानव जाति इसकी कल्पना भी नहीं कर सकती। सबक मिल रहे हैं लेकिन समझ नहीं रहे। भारी बरसात, तपती गर्मी ये प्रकृति से ही छेड़छाड़ का नतीजा है। सभी को जागरूक होना होगा, अधिक से अधिक पेड़ लगाने होंगे, वन संपदा को जलाने से बचाना होगा। यह सिर्फ प्रशासन या कुछ लोगों की जिम्मेदारी नहीं समाज में रहने वाले हर व्यक्ति को इस संपदा को बचाने के लिए प्रयास करने होंगे। वन संपदा को नुकसान पहुँचाने वाले दोषियों को ये बात समझनी चाहिए कि हरे भरे पेड़ों की छांव और इन जंगलों के भीतर छिपे बेजुबान जानवर-पक्षियों और इनके घोंसलों को जलाकर खत्म करने की सजा कितनी भयानक होगी और जो प्रकृति मानव जाति को सजा देने पर आई तो मानव का घमंड बड़े-बड़े महल-घर- होटल्स, ऑफिस सब एक पल में ढह जाएँगे। खुद का तो नामोनिशान भी नहीं होगा। आइये हम सब मिलकर प्रकृति से छेड़छाड़ नहीं, प्रकृति की सुरक्षा के लिए मिलकर कदम उठाएं और अधिक से अधिक पेड़ पौधे लगाकर अपने वनों को हरा भरा बनाएं।