शिमला: धामी में मनाया पत्थर मेला

शिमला : राजधानी शिमला से करीब 30 किलोमीटर दूर धामी के हलोग में दीपावली के अगले दिन पत्थर मारने का अनोखा मेला लगता है। सदियों से मनाए जा रहे इस मेले को पत्थर का मेला या खेल कहा जाता है। दीपावली से दूसरे दिन मनाए जाने वाले इस मेले में दो समुदायों के बीच पत्थर मारे जाते हैं। ये सिलसिला तब तक जारी रहता है जब तक कि एक पक्ष लहूलुहान नहीं हो जाता। वर्षों से चली आ रही इस परंपरा में सैकड़ों लोग धामी मैदान में शामिल हुए।

शिमला ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र के हलोग धामी में दिवाली के दूसरे दिन वर्षों से चली आ रही पत्थर के खेल की परंपरा को निभाया गया। सोमवार को दोपहर बाद करीब साढ़े तीन बजे शुरू हुए पत्थर के खेल में दोनों ओर से करीब आधा घंटा तक पत्थरों की बौछार हुई। सती का शारड़ा चबूतरे के दोनों ओर खड़ी टोलियों जठोती और जमोगी के बीच जमकर एक-दूसरे के ऊपर पत्थरबाजी हुई। अंत में जठोती के अक्षय वर्मा (23) और जमोगी के दलीप वर्मा को पत्थर लगने के बाद खेल समाप्त किया गया। इन दोनों के सिर से निकले खून से भद्रकाली के मंदिर में जाकर तिलक कर परंपरा को पूरा किया गया।

पत्थर का मेला शुरू कैसे हुआ शुरू…

माना जाता है कि पहले यहां हर वर्ष भद्रकाली को नर बली दी जाती थी, लेकिन धामी रियासत की रानी ने सती होने से पहले नर बली को बंद करने का हुकम दिया था। इसके बाद पशु बली शुरू हुई। कई साल पहले इसे भी बंद कर दिया गया। इसके बाद पत्थर का मेला शुरू किया गया। मेले में पत्थर से लगी चोट के बाद जब किसी व्यक्ति का खून निकलता है तो उसका तिलक मां भद्रकाली के चबूतरे में लगाया जाता है।

 

 

 

 

 

 

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