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शिक्षा अपना ध्येय खोती जा रही… – प्रिंसिपल निशा भलूणी

शिक्षा अपना ध्येय खोती जा रही… इस लेख में शिमला ब्योलिया स्कूल की प्रिंसिपल निशा भलूणी ने आज के शिक्षा स्तर को लेकर अपने विचारों का उल्लेख किया है, जिसमें उन्होंने विशेष तौर पर इस बात पर बल दिया है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में बौद्धिक विकास की तरफ ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है जबकि चारित्रिक और शारीरिक विकास की तरफ कम। जोकि चिंता का विषय है।

हमारे सरकारी स्कूलों में 11वीं कक्षा में अंग्रेजी में एक चैप्टर है- ‘अल्बर्ट आइंस्टाइन एट स्कूल’, जो उनकी आत्मकथा

शिमला ब्योलिया स्कूल की प्रिंसिपल निशा भलूणी

‘यंग आइंस्टाइन’ से लिया गया एक अंश है। इस चैप्टर में दिखाया गया है की अल्बर्ट आइंस्टाइन, जो न्यूटन के बाद एक महान भौतिक वैज्ञानिक थे, को कैसे और क्यों स्कूल से निकाला गया । दरअसल एक छात्र के तौर पर आइंस्टाइन को कभी भी अपना स्कूल पसंद नहीं आया और इसका कारण था वहां का कठोर अनुशासन, सख्त माहौल तथा रट्टे मार शिक्षा प्रणाली। एक बार उनके इतिहास के अध्यापक ने उनसे किसी युद्ध की तिथि पूछी इस पर आइंस्टाइन ने जवाब दिया की तिथि को याद करना उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना महत्वपूर्ण है यह समझना कि आखिर वह युद्ध क्यों हुआ क्योंकि युद्ध की तिथि तो कोई भी किताब में ढूंढ लेगा।  सूचनाओं को इकट्ठा करना शिक्षा का मकसद नहीं है , शिक्षा का असली मकसद है-अंतर्दृष्टि गठ

 यह बात 19वीं सदी की है लेकिन ऐसा लगता है जैसे 21वीं सदी में भी हमारे बच्चों के साथ यही सब कुछ घटित हो रहा है। अधिक से अधिक अंक लाना मात्र इसी उद्देश्य के साथ शिक्षा अर्जित की जा रही है, फिर चाहे इस शिक्षा में ज्ञान व कल्पना का अभाव हो। कभी-कभी अभिभावक व कभी-कभी स्वयं शिक्षक इस बात पर जोर देते हैं कि उनका बच्चा पूरे सिलेबस को बस रट ले। शिक्षा अपना ध्येय खोती जा रही है। एक वह भी समय था जब शिक्षा का मकसद नौकरी पाना नहीं बल्कि मोक्ष पाना था साथ जीवित होते हुए भी “मैं मुक्त हूं”की जागृति होना। एक ज्ञानी पुरुष से आत्मज्ञान मिलना ही मोक्ष कहलाता था।
वर्तमान शिक्षा प्रणाली में बौद्धिक विकास की तरफ ज्यादा बल दिया जा रहा है तथा चारित्रिक और शारीरिक विकास की तरफ कम। ऐसे में शिक्षकों का यह परम कर्तव्य बन जाता है कि एक ऐसे आधुनिक समय में जहां विद्यार्थी भारतीय सभ्यता व संस्कृति को भूल कर पाश्चात्य शैली अपनाने में जुटा है और नशे की तरफ बढ़ रहा है, उनका मार्गदर्शक बने और उन्हें बुरे रास्ते में जाने से बचाएं। एक विद्यार्थी को बचाने का मतलब होगा उसके पूरे परिवार को बचाना और एक परिवार को बचाने का मतलब है पूरे समाज को बचाना। अहोभाग्य उस शिक्षक के जिसे भगवान का दिया हुआ यह मौका मिलता है।
 इसके अलावा विद्यार्थी स्कूल के माहौल को निरस्त या कठोर ना समझे यह जरूरी है कि विद्यार्थियों की रुचि के अनुसार उन्हें विषय पढ़ने को दिया जाए यदि किसी विद्यार्थी की खेल में रुचि है तो उसे खेल में ही निरंतर आगे बढ़ाने का प्रयास किया जाए यह बहुत ही हर्ष का विषय है की नई शिक्षा नीति में विषयों का चयन विद्यार्थी अपनी रूचि के अनुसार करेंगे एक विज्ञान का छात्र संगीत सीख‌‌ सकेगा और एक वाणिज्य का छात्र राजनीतिक शास्त्र पढ़ सकेगा। हम सभी के समन्वय प्रयासों से ना केवल छात्र का हुनर निखरेगा बल्कि उसका भविष्य भी संवरेगा । विद्यालय का ऐसा माहौल तनाव व चिंता से दूर होगा।
आइंस्टाइन के शब्दों में कहा जाए तो हर कोई प्रतिभाशाली है लेकिन अगर आप एक मछली को उसके पेड़ पर चढ़ने की क्षमता से मापते हो तो वह पूरा जीवन यह मानते हुए जिएगी‌ कि बहुत मूर्ख है।

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