- पुराने नोटों से किसानों को बीज खरीदने की अनुमति
देवसागर सिंह
काले धन और भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए उच्च मूल्य के करेंसी नोटों के विमुद्रीकरण का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का साहसिक कदम उनके इस संकल्प का संकेत देता है कि राजनीति की अनदेखी करते हुए बड़े और शक्तिशाली शक्तियों से निपटा जा सकता है। जब प्रधानमंत्री ने 8 नवंबर की शाम को 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों के विमुद्रीकरण की अचानक घोषणा की तो उनके कट्टर समर्थकों सहित लोग स्तब्ध रह गए। काफी भय और गलतफहमियां थीं। अब इस कदम के दो सप्ताह बीत जाने के बाद लोगों विशेषकर गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को यह महसूस हो रहा है कि यह कदम देश पर गंभीर प्रतिकूल असर डालने वाले काले धन और भ्रष्टाचार की सफाई के लिए है।
बैंकों तथा एटीएम मशीनों के बाहर लगने वाली कतारें छोटी हो रही हैं और लोग लाइनों में लड़ने-झगड़ने की बजाए इस कदम के दीर्घकालिक लाभों के बारे में सार्थक संवाद कर रहे हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि सरकार विमुद्रीकरण से संबंधित सभी विषयों के सुलझाने में सक्षम हुई है और सारी चीजें ठीक हो गई हैं। जनसाधारण की ओर से अभी भी शिकायतें की जा रही हैं। फिर भी सरकार लोगों की परेशानियों को दूर करने के लिए एक-एक करके सभी विषयों को सुलझाने का काम कर रही है। उदाहरण के लिए यह लेख लिखे जाने के समय सरकार ने किसानों को एक और राहत देने की घोषणा की है। किसान रबी फसल के लिए बीज खरीदने में परेशानी का सामना कर रहे थे। अब सरकार ने घोषणा की है कि किसान राज्य तथा केंद्र के सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के केंद्रों से 500 रुपये के पुराने नोट देकर बीज खरीद सकते हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि प्रारंभिक कठिनाई का अनुमान था क्योंकि इस काम में उच्च स्तर की गोपनीयता बनाए रखने के लिए पहले से प्रबंध करना संभव नहीं था। घोषणा के फौरन बाद सरकार ने आवश्यक संरचना उपलब्ध कराने का काम शुरू किया। इसमें दूर-दराज के स्थानों तक नये बैंक नोट पहुंचाने और पूरे देश में एटीएम मशीनों को नये सिरे से तैयार करने का काम शामिल है। बैंकों ने व्यापक स्तर पर नोट अदला-बदली का काम किया और नये नोट भी दिए।
सचमुच समस्याओं के अनुपात में यह अभियान विशाल है। सरकारी अनुमानों तथा अकादमिक और पेशेवर संस्थानों के अध्ययनों के अनुसार देश में काफी लंबे समय से काले धन की समानांतर अर्थव्यवस्था चलती रही है। इस समानांतर अर्थव्यवस्था के कारण सरकार को राजस्व का नुकसान होता है और कानून का पालन करने वाले साधारण नागरिक को बढ़े हुए करों और मुद्रा स्फीति का दबाव झेलना पड़ता है। जाली नोट भी देश को गंभीर रूप से प्रभावित करने वाला एक विषय है। जाली नोट से सीमा पार के आतंकवाद को वित्तीय बढ़ावा मिलता है। दुर्भाग्यवश देश में काले धन की बीमारी और उससे पनपने वाले भ्रष्टाचार को लेकरअनेक बार चर्चा हुई हैं, लेकिन अबकी बार किसी व्यक्ति ने ठोस कार्रवाई करने की हिम्मत दिखाई है। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सराहना की जानी चाहिए। उन्होंने अपने चुनाव अभियान के दौरान काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने का वादा किया था। प्रधानमंत्री ने पद ग्रहण करने के बाद भी अपने संकल्प को दोहराया और अंतत: इसे लागू किया।
इस साहसिक कदम के लिए प्रधानमंत्री को सबका समर्थन मिल रहा है। कृषि पर संसद की स्थायी समितिके अध्यक्ष हुकूमदेव नारायण यादव का विमुद्रीकरण पर दिया गया वक्तव्य विचारणीय है। यादव ने विमुद्रीकरण के कदम का स्वागत करते हुए कहा कि यह प्रधानमंत्री का क्रांतिकारी कदम है। उन्होंने गरीबों, किसानों, मजदूरों, पिछडों और दलितों की ओर से आभार व्यक्त्करते हुए कहा कि इस कदम से देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, वित्तीय अनुशासन कायम होगा तथा रोजगार बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि यह कदम महात्मा गांधी, राममनोहर लोहिया और दीनदयाल उपाध्याय के सपनों का भारत बनाने वाला कदम है।
इस कार्य की विशालता का संकेत इस तथ्य से मिलता है कि विमुद्रित बैंक नोटों की संख्या 2300 करोड़ है। अनुमान के अनुसार नोटों की छपाई में कम से कम तीन महीने लगेंगे। इसके बाद नोटों को देश के सभी कोनों तक पहुंचाने का काम होगा। हर दृष्टि से यह कठिन कार्य से भी अधिक है। प्रधानमंत्री ने स्थिति सामान्य बनाने के लिए केवल 50 दिन मांगे हैं। 123 करोड़ लोगों के देश और इसकी अर्थव्यवस्था के हित में प्रत्येक देशभक्त व्यक्ति के लिए यह हाथ बंटाने का समय है। यह अप्रत्याशित स्थिति है और इस अभियान की तुलना 1978 में किए गए विमुद्रीकरण से नहीं की जा सकती क्योंकि तब और अब की अर्थव्यवस्था के आकार में काफी अंतर है।
संसद का सत्र जारी है। राजनीतिक दलों से समझदारी और परिपक्वता की आशा की जाती है। खासकर तब जब विषय राष्ट्रीय हित का हो।
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और प्रमुख दैनिक पत्रों में आर्थिक विषयों पर नियमित रूप से लिखते हैं। इस लेख में व्यक्त विचार उनके अपने विचार हैं।