गन्‍ने के भुगतान की बकाया राशि को कम करने के लिए सरकार के नीति प्रयास

गन्‍ने के भुगतान की बकाया राशि को कम करने के लिए सरकार के नीति प्रयास

  • चीनी सीजन 2014-15 की बकाया राशि घटकर 780 करोड़ रूपए हुई

नई दिल्ली: भारतीय चीनी उद्योग को 2013 में नियंत्रण मुक्त कर दिया गया था। यह एक मात्र विनियमन था जिसे उचित एवं लाभकारी मूल्‍य (एफआरपी) कहा जाता है। किसानों की आय की सुरक्षा के लिए सरकार द्वारा इसे अनिवार्य रूप से अधिसूचित किया जाता है। वर्तमान में किसानों को 9.5 प्रतिशत चीनी की रिकवरी के आधार पर गन्‍ने का एफआरपी 230 रूपए पर प्रति कुंतल देना है। किसानों को एफआरपी चीनी रिकवरी के आधार पर गन्‍ने का भुगतान 14 दिनों की अवधि में करना होता है। ऐसा न होने पर चीनी मिलों को इस पर ब्‍याज देना होता है। एक साल में आमतौर पर किसानों को गन्ने की कीमतों का 60 हजार करोड़ से 65 हजार करोड़ तक का भुगतान किया जाता है।

वर्ष 2014 में जब एनडीए सरकार ने पदभार संभाला था तब चीनी उद्योग गन्ना भुगतान की बकाया राशि के गंभीर संकट से जूझ रहा था। पिछले 2 वर्षों के दौरान सरकार द्वारा उठाए गए नीतिगत कदमों से बकाया राशि को कम करने में उल्लेखनीय सफलता हासिल हुई है। कई वर्षों से 14 हजार करोड़ रूपए की बकाया राशि लंबित थी। नीतिगत कदमों की बदौलत महत्वपूर्ण परिणाम मिले हैं। गत वर्ष (चीनी सीजन 2014-15) गन्ने से संबंधित बकाया भुगतान घटकर लगभग 780 करोड़ रूपए हो गया है। इसमें से उत्तर प्रदेश का हिस्सा 191 करोड़ रूपए रहा।

चालू वर्ष(चीनी सीजन 2015-16) के लिए बकाया भुगतान केवल 9361 करोड़ रूपए है जो पिछले वर्ष 22 हजार करोड़ रूपए था। इसमें उत्तर प्रदेश का हिस्सा 2855 करोड़ रूपए है। उत्तर प्रदेश को 2 चरणों में एफआरपी का भुगतान करने की अनुमति दी गई है। जून के अंत तक एफआरपी (230 रूपए/कुंतल) के आधार पर मिलों को गन्‍ने के बकाया भुगतान पूरी होने की उम्मीद है, जिसके अनुसार अभी बकाया भुगतान 2855 करोड़ रूपए है। हालाकि जुलाई के बाद मिलों को राज्य द्वारा तय की गई कीमतों के अाधार पर (280 रूपए/कुंतल)) भुगतान करना होगा। जिसके तहत देय राशि 5795 करोड़ रूपए होगी।

असाधारण स्थिति का पता करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा एक नई नीति का निर्माण किया गया। पहले चरण में एक उदार ऋण ब्याज भुगतान को एक साल के लिए अधिसूचित किया गया था। इसके विपरीत पूर्व में किसानों को सीधा भुगतान करने का तरीका मिलों द्वारा किया जाता था। 2015-16 में मिलों ने ऋण लेकर 4305 करोड़ रूपए की गन्‍ना बकाया राशि का भुगतान वितरित किया गया था। इससे किसानों को प्रत्यक्ष तौर पर राहत मिली और गन्‍ने के लंबित भुगतान में कमी आयी तथा चीनी उद्योग को भी इससे मदद मिली।

दूसरा, केंद्र सरकार ने मोटर स्पिरिट के साथ सम्मिश्रण स्‍तर को 10 प्रतिशत से ज्‍यादा हासिल करने के लिए एक संसोधित इथेनॉल ब्‍लैंडिंग प्रोग्राम (ईबीपी) शुरू किया। प्रशासित मूल्‍य व्‍यवस्‍था के तहत इथेनॉल का लाभकारी मूल्य तय किया गया जिससे चीनी उद्योग के ऊपर से संकट के बादल हट सकें और इसीलिए किसानों को गन्ने की बकाया राशि का भुगतान किया गया। चालू वर्ष के लिए केंद्रीय उत्पाद शुल्क को माफ कर दिया गया है। ईबीपी के कई अन्‍य फायदे भी हैं जैसे यह पर्यावरणीय प्रदूषण को कम करता है और विदेशी मुद्रा की बचत करता है। प्रत्‍येक वर्ष इसके परिणाम काफी महत्‍वपूर्ण रहे हैं। 2013-14 में ब्लैंडिंग के लिए इथेनॉल की आपूर्ति 38 करोड़ लीटर थी। 2014-15 में संसोधित ईबीपी के तहत यह बढ़कर 67 करोड़ लीटर हो गई। चालू वर्ष अर्थात् 2015-16 में 130 करोड़ लीटर इथेनॉल हासिल करने की संभावना है।

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