नवरात्रों के दौरान श्रद्धालुओं की सुरक्षा व सुविधा को लेकर जिला प्रशासन द्वारा व्यापक प्रबंध

नवरात्रों में माता के नौ रुपों की आराधना…

नौ दिन माता के नौ रुपों की आराधना

नौ दिन तक चलने वाला नवरात्र शारदीय नवरात्र कहलाता है

नौ दिन तक चलने वाला नवरात्र शारदीय नवरात्र कहलाता है

नवरात्रों में माता के नौ रुपों की आराधना की जाती है। माता के इन नौ रुपों को हम देवी के विभिन्न रुपों की उपासना, उनके तीर्थो के माध्यम से समझ सकते है। वर्ष में दो बार नवरात्र रखने का विधान है। चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नौ दिन अर्थात नवमी तक, ओर इसी प्रकार ठिक छ: मास बाद आश्विन मास, शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से विजयादशमी से एक दिन पूर्व तक माता की साधना और सिद्धि प्रारम्भ होती है। दोनों नवरात्रों में शारदीय नवरात्रों को ज्यादा महत्व दिया जाता है।

नवरात्रों का महत्व

नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक ओर मानसिक शक्तियों में वृ्द्धि करने के लिये अनेक प्रकार के उपवास, संयम, नियम, भजन, पूजन योग साधना आदि करते है। सभी नवरात्रों में माता के सभी 51 पीठों पर भक्त विशेष रुप से माता एक दर्शनों के लिये एकत्रित होते है। जिनके लिये वहां जाना संभव नहीं होत है, उसे अपने निवास के निकट ही माता के मंदिर में दर्शन कर लेते है। नवरात्र शब्द से नव अहोरात्रों का बोध करता है। इस समय शक्ति के नव रुपों की उपासना की जाती है। इस समय शक्ति के नव रुपों की उपासना की जाती है। रात्रि शब्द सिद्धि का प्रतीक है।

उपासना और सिद्धियों के लिये दिन से अधिक रात्रिंयों को महत्व दिया जाता है। हिन्दू के अधिकतर पर्व रात्रियों में ही मनाये जाते है। रात्रि में मनाये जाने वाले पर्वों में

उपासना और सिद्धियों के लिये दिन से अधिक रात्रिंयों को महत्व दिया जाता है

उपासना और सिद्धियों के लिये दिन से अधिक रात्रिंयों को महत्व दिया जाता है

दीपावली, होलिका दशहरा आदि आते है। शिवरात्रि और नवरात्रे भी इनमें से कुछ एक हैं।

रात्रि समय में जिन पर्वों को मनाया जाता है, उन पर्वों में सिद्धि प्राप्ति के कार्य विशेष रुप से किये जाते है। नवरात्रों के साथ रात्रि जोड़ने का भी यही अर्थ है, कि माता शक्ति के इन नौ दिनों की रात्रियों को मनन व चिन्तन के लिये प्रयोग करना चाहिए।

रात्रि में आध्यात्मिक कार्य करने के पीछे कारण

ऋषियों ने रात्रि को अधिक महत्व दिया है। वैज्ञानिक पक्ष से इस तथ्य को समझने का प्रयास करते है। रात्रि में पूर्ण शान्ति होती है। पराविधाएं बली होती है। मन-ध्यान को एकाग्र करना सरल होता है. प्रकृ्ति के बहुत सारे अवरोध समाप्त हो जाते है। शान्त वातावरण में मंत्रों का जाप विशेष लाभ देता है। ऎसे में ध्यान भटकने की सम्भावनाएं कम ही रह जाती है। इस समय को आत्मशक्ति, मानसि शक्ति और य़ौगिन शक्तियों की प्राप्ति के लिये सरलता से उपयोग किया जा सकता है।

वैज्ञानिक सिद्धान्त के अनुसार दिन कि किरणों में करने पर मनन में बाधाएं आने की संभावनाएं अधिक रहती है। ठिक उसी प्रकार जैसे दिन के समय में रेडियों की तरंगे बाधित रहती है। परन्तु सूर्यअस्त होने के बाद तरंगे स्वत: अनुकुल रहती है। मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज की कंपन से वातावरण के दुर-दूर के किटाणु अपने आप समाप्त हो जाते है। इस समय को कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि के लिये प्रयोग किया जा सकता है।

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