...सुनो तो सदियों से खामोश खड़े ये "दरख्त"भी कहते हैं बहुत कुछ

सुनो अगर… तो खामोश खड़े ये “दरख्त”भी कहते हैं बहुत कुछ

…आज भी ऊंचे-ऊंचे वो कुछ दरख़्त यूँ ही खामोश खड़े हैं

कभी फुर्सत से इन ऊंचे-ऊंचे दरख्तों की भी खामोशी सुनें…

खामोश खड़े ऊंचे-ऊंचे दरख्तों की उदासी

“अपनी प्राकृतिक संपदा को बचाना हमारा दायित्व है

यह एक नहीं पूरे देश का अस्तित्व है।”

आज भी ऊंचे-ऊंचे वो कुछ दरख़्त यूँ ही खड़े हैं, जो मेरे बचपन के दिनों में खड़े मिलते थे। इन बड़े-बड़े पेड़ों को देखते-देखते जीवन के कितने पड़ाव पार कर लिए हमने।

  • सदियों से यूं ही खामोश खड़े रह गए जो कुछ दरख्त…

वर्षों बाद जब उन ऊँचे-ऊंचे दरख्तों को आज गौर से देखा और छूकर महसूस किया तो एक अजब सा अपनेपन का एहसास हुआ। बचपन की सब यादें जैसे आंखों के आगे छा सी गईं। लेकिन वर्षों से खामोश खड़े सदियों से यूं ही खामोश खड़े रह गए जो कुछ दरख्त...इन दरख्तों की उदासी कुछ-कुछ दर्द अपने के बिछुड़ने का बयां कर रहे थे। ठीक वही पीड़ा जो हम इंसान किसी अपने को हमेशा के लिए खोने पर महसूस करते हैं। आस-पास कई बड़े पेड़ों के कट जाने से बाकि के साथी भी खामोश, उदास व मायूस खड़े हैं।

जाने कितने बरसों का साथ था उनका जो खत्म हो गया। वो दर्द लोग क्या समझेंगे? जिन्हें ये भी नहीं दिखाई नहीं देता कि ये ऊंचे दरख़्त हमें छाया व शुद्ध हवा देने के साथ-साथ हमारे पर्यावरण को कितना बचाए हुए हैं। इतना ही नहीं हमारे हिमाचल प्रदेश की शान और पहचान हैं ये ऊँचे-ऊँचे, हरे-भरे पेड़ और यहां की हरियाली। लोग रातों-रात बड़े-बड़े पेड़ों को काटकर भी पकड़ में नहीं आते। जाने कितने सालों से अवैध कटान हो रहा है लेकिन पकड़ में कोई नहीं आता। जो अवैध कटान पर आवाज उठाता है उसे जंगल में ही दफन कर दिया जाता है या पेड़ से लटका दिया जाता है। प्रदेश सरकार दवारा अवैध कटान को रोकने के सख्त आदेश हैं बावजूद उसके फिर भी ये कटान नहीं रुक नहीं रहे। वजह कभी सामने नहीं आई। वहीं पेड़-पौधों को लगाने का क्रम प्रदेश में जारी है। लेकिन लगाने के बाद कितने पेड़-पौधे जीवित हैं उनकी देख-रेख कितनी हो पाती है उसका कुछ पता नहीं। कुछ लोग सुर्खियों में आने के लिए पेड़-पौधों को लगाने का प्रचार-प्रसार तो खूब करते हैं फिर साल भर कोई ख़बर नहीं। वहीं साल बाद फिर वही वृक्षारोपण फिर कोई ख़बर नहीं, बस अपनी खबर लग जाए।

हमारे हिमाचल की शान यहां की हरी-भरी वादियां हैं जो बाहर से आने वाले पर्यटकों को यहां आने के लिए बार-बार उकसातीं हैं। प्राकृतिक आपदा आने से वन संपदा को चोट पहुंचे तो समझ आता है लेकिन वो आदमी ही इसे क्षति पहुंचाए जिसे

इस वन संपदा ने बनाने के लिये घर, फ़र्नीचर, जड़ी-बूटियां, छायादार शुद्ध हवा,  रोटी बनाने के लिए चूल्हे में जलाने को अपनी सुखी लकड़ियां दीं। फिर उसी आदमी ने इन दरख्तों के सीने चीरने से भी गुरेज नहीं किया। वृक्ष लगाने तो क्या?  जो हैं उन्हें भी छिलने से परहेज नहीं कर रहा। अगर ऐसा ही होता रहा तो जल्दी ही एक दिन इस धरा में रहने वाले हर आदमी का विनाश होना निश्चित है।

कभी फुर्सत से इन ऊंचे-ऊंचे दरख्तों की भी खामोशी सुनें...

कभी फुर्सत से इन ऊंचे-ऊंचे दरख्तों की भी खामोशी सुनें…

कभी फुर्सत से इन पेड़ों के पास जाकर इन्हें छुकर इनकी खामोशी सुनें। “ये दरख़्त भी बहुत कुछ कहते हैं….ये भी इंसान से ज्यादा दर्द सहते हैं।” हमें समय रहते अपने पर्यावरण के प्रति सजग होना होगा। हरे-भरे दरख्तों के जीवन को बचाना होगा। जहां इनसे जुड़ें विभागों को अभी और अधिक इस विषय को लेकर काम करना होगा, वहीं स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों को भी जागरूक कर इनका सहयोग अपने पर्यावरण को बचाने के लिए लेना होगा।

केंद्र से लेकर प्रदेश की राज्य सरकार तक को गांव-गांव तक अपनी पर्यावरण-संरक्षणवन संपदा को बचाने के लिये प्रोत्साहित करने के लिए ईनाम स्वरूप कोई एक नहीं.. कई और योजना चलानी व बनानी होगी, जिससे लोग वन संपदा व अपने पर्यावरण को स्वयं बचाने के लिए उत्सुक और जागरूक हों ताकि वो आने वाले समय में प्राकृतिक संपदा को बचाना अपना कर्तव्य समझें।

सम्बंधित समाचार

अपने सुझाव दें

Your email address will not be published. Required fields are marked *