हिमाचल: किसानों से मसालों और सुगंधित पौधों की खेती करने का किया आवाहन

हिमाचल में मसाला फसलों को बढ़ावा देने के लिए राज्य स्तरीय कार्यशाला में 150 से अधिक किसान हुए शामिल

हिमाचल : प्रदेश में मसाला फसलों और सुगंधित पौधों की व्यवसायिक खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य स्तरीय कार्यशाला आज डॉ. यशवंत सिंह परमार औदयानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी में शुरू हुई। यह कार्यशाला मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर परियोजना की ‘हिमाचल प्रदेश में मसाला फसलों का लोकप्रियकरण’ के तहत विश्वविद्यालय के बीज विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा आयोजित कर रहा है। इस दो दिवसीय कार्यशाला में राज्य के सभी 12 जिलों के 150 से अधिक किसान भाग ले रहे हैं। इस परियोजना को भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के सुपारी और मसाला विकास निदेशालय द्वारा वित्त पोषित किया गया है।

प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. नरेंद्र भारत ने बताया कि यह परियोजना राज्य में 2015-16 से चल रही है। अब तक 30 से अधिक पंचायत स्तरीय, चार जिला स्तरीय और 1 राज्य स्तरीय किसान सेमिनार आयोजित किए जा चुके हैं जिसमें 3000 से अधिक किसान लाभान्वित हुए हैं। उन्होंने बताया कि इस परियोजना के तहत विश्वविद्यालय द्वारा प्रतिवर्ष अदरक, लहसुन, हल्दी, धनिया, मेथी, जंगली गेंदा, तुलसी आदि की 7 क्विंटल से अधिक रोपण सामग्री की आपूर्ति की जा रही है।

इस अवसर पर कुलपति प्रोफेसर राजेश्वर सिंह चंदेल ने बताया कि पिछले कुछ वर्षो से मसाला फसलों की खेती के तरफ किसानों का रुझान बढ़ा है। केवल सिरमौर जिले में ही लहसुन फसल उत्पादन का क्षेत्र 1600 हेक्टेयर (2015-16) से बढ़कर 4000 हेक्टेयर (2022-23) हो गया है। इस अवधि के दौरान उत्पादन 26500 से बढ़कर 60650 मीट्रिक टन तक पहुँच गया है और 5360 से अधिक सीमांत और छोटे किसान अपनी आय के लिए पूरी तरह से लहसुन पर निर्भर हैं। विश्वविद्यालय एवं लाइन विभाग द्वारा नवीनतम तकनीक एवं ज्ञान के प्रसार से यह संभव हुआ है।

प्रोफेसर चंदेल ने कहा कि दुनिया अब भारतीय भोजन और भारतीय मसालों की ओर आकर्षित हो रही है और उनके स्वास्थ्य लाभ इसका एक बहुत बड़ा कारण हैं। उन्होंने कहा कि यह देखकर बहुत खुशी होती है कि हिमाचल प्रदेश में मसालों की खेती बढ़ रही है और यहाँ पर उगाये जा रही मसाला फसलों की मांग देश भर में हैं, विशेषकर दक्षिणी भारत में खरीदार अपने आप यहाँ आ रहें हैं। विभिन्न मसालों के तहत क्षेत्र बढ़ाने पर बोलते हुए उन्होंने किसानों से अपनी जलवायु परिस्थितियों के अनुसार 2-3 मसाला फसलों की खेती करने का आग्रह किया। उन्होंने किसानों के समूहों को मसाला एवं सुघन्धित फसलों पर आधारित किसान उत्पादक कंपनियों (एफपीसी) की स्थापना करने के लिए प्रोत्साहित किया जो बाजार में उनकी उत्पाद की अच्छी कीमत दिलाने में मदद कर सकता हैं।  उन्होंने सुझाव दिया कि विश्वविद्यालय इन एफपीसी को मूल्य संवर्धन और ब्रांडिंग में भी मदद कर सकता है जो न केवल बाज़ार में मांग से अधिक मात्रा में उत्पाद पहुँचने के दौरान मदद करेगा बल्कि किसानों की आय को भी बढ़ाएगा। 

प्रोफेसर चंदेल ने युवाओं को समूह बनाने और सामूहिक रूप से जंगली गेंदा जैसे सुगंधित पौधों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया। इन फसलों से कटाई के बाद अत्यधिक लाभकारी तेल निकाला जा सकता है। उन्होंने ऐसे किसान समूहों को विश्वविद्यालय की ओर से तकनीकी सहयोग का आश्वासन दिया। उन्होंने किसानों से यह भी कहा कि वे विश्वविद्यालय के साथ मसालों और सुगंधित पौधों की नई किस्मों के बीजों के बड़े पैमाने पर प्रसार में विश्वविद्यालय का समर्थन करें ताकि इन्हें अन्य किसानों को भी उपलब्ध करवाया जा सके। प्राकृतिक खेती के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय फलों के साथ विभिन्न मसाला फसलों और सुगंधित पौधों को प्रदर्शित करने के लिए एक प्राकृतिक खेती मॉडल स्थापित करेगा।

इससे पहले विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ इंद्र देव ने विश्वविद्यालय की विभिन्न विस्तार गतिविधियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत मसालों की एक विस्तृत श्रृंखला का एक स्थापित उत्पादक है और विश्व मसाला उत्पादन में एक प्रमुख स्थान रखता है लेकिन इस क्षेत्र में सुधार की व्यापक गुंजाइश है। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे मसाले हर भारतीय घर का अभिन्न अंग हैं।

कार्यशाला के दौरान, मसाला फसलों की उत्पादन तकनीक, बीज उत्पादन और मूल्य संवर्धन, पौध संरक्षण और किसान-वैज्ञानिक बातचीत पर कई तकनीकी सत्र आयोजित किए जाएंगे। इस कार्यक्रम में अनुसंधान निदेशक डॉ. संजीव चौहान, बागवानी महाविद्यालय के डीन डॉ. मनीष शर्मा, सभी विभागाध्यक्ष, बीज विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक और कृषि विभाग के अधिकारी शामिल हुए।

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