प्राकृतिक खेती पर दो सप्ताह का राष्ट्रीय प्रशिक्षण नौणी विवि में शुरू

प्राकृतिक खेती जलवायु परिवर्तन अनुकूलन में मददगार

सोलन: प्राकृतिक खेती पद्धति से जलवायु परिवर्तन अनुकूलन को अत्यधिक लाभ होगा क्योंकि यह पूरे पारिस्थितिक तंत्र का समर्थन करने के साथ-साथ कम ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करती है। नीति आयोग की कृषि की वरिष्ठ सलाहकार डॉ. नीलम पटेल ने आज डॉ. यशवंत सिंह परमार औदयानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी में ‘प्राकृतिक खेती: वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावनाएं’ विषय पर दो सप्ताह के राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए ये विचार व्यक्त किए। इस कार्यक्रम को आईसीएआर राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना की संस्थागत विकास योजना द्वारा समर्थित किया जा रहा है। प्रशिक्षण में हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल के छह विश्वविद्यालयों, आईसीएआर संस्थानों और कृषि विज्ञान केंद्रों के 20 वैज्ञानिक भाग ले रहे हैं।

प्रतिभागियों को ऑनलाइन माध्यम से संबोधित करते हूए डॉ. नीलम ने कहा कि विश्व स्तर पर प्राकृतिक खेती कई देशों में कृषि पारिस्थितिकी और पुनर्योजी कृषि जैसे विभिन्न नामों से की जा रही है। भारत के इस पद्धति में अग्रणी हैं और इस क्षेत्र में ‘विश्वगुरु’ बनने का हमारे पास वास्तविक अवसर है। उन्होंने प्रमाणीकरण प्रक्रिया के बारे में भी बात की और नीति आयोग द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर इस कृषि पद्धति को लोकप्रिय बनाने के लिए किए गए प्रयासों के बारे में बताया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजेश्वर सिंह चंदेल ने कहा कि प्राकृतिक खेती कोई मिथक या सोच नहीं बल्कि विज्ञान आधारित कृषि पद्धति है जो किसानों के खेतों में सफलतापूर्वक की जा रही है। उन्होंने कहा कि देश की प्रतिबद्धता हमारे कृषि निर्यात को 2.1% से बढ़ाकर 7% करने और भारत को दुनिया के लिए जैविक और प्राकृतिक भोजन और श्री अन्न देने वाले देश में स्थापित करने की है और प्राकृतिक खेती इन लक्ष्यों को साकार करने में मदद कर सकती है।

हिमाचल में प्राकृतिक खेती की पहल के बारे में बात करते हुए, प्रोफेसर चंदेल ने बताया कि राज्य में मिट्टी का स्वास्थ्य को खराब होने से बचाने के लिए प्राकृतिक खेती एक मार्ग बनकर उभरी है। उन्होंने कहा कि अध्ययनों से पता चला है कि प्राकृतिक खेती से फसल में कीटों और बीमारियों में कमी आई है, मिट्टी और पानी के स्वास्थ्य में सुधार हुआ है। इसके अतिरिक्त इनपुट लागत में कमी दर्ज करने  के साथ साथ मुनाफा भी बढ़ा है। प्रोफेसर चंदेल ने प्रतिभागियों से डेटा के साथ किसानों की सफल प्रथाओं का ईमानदारी से समर्थन करने का आग्रह किया क्योंकि यह पद्धति कई सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करती है।

इससे पहले, प्रशिक्षण निदेशक डॉ. सुभाष वर्मा ने प्रतिभागियों का स्वागत किया और प्रशिक्षण के दौरान शामिल किए जाने वाले विभिन्न विषयों के बारे में जानकारी दी। विषयों में व्यावहारिक प्रशिक्षण के साथ-साथ प्रतिभागियों को प्राकृतिक खेती का विस्तृत अवलोकन देने के लिए प्रशिक्षण में सभी पहलुओं को शामिल किया जाएगा। डॉ. केके रैना, मुख्य अन्वेषक आईडीपी ने विश्वविद्यालय में समग्र शिक्षण और सीखने के अनुभव को बेहतर बनाने के लिए परियोजना के तहत की गई विभिन्न पहलों पर एक विस्तृत प्रस्तुति दी। उद्घाटन सत्र में विश्वविद्यालय के प्राकृतिक कृषि दल के सदस्यों सहित सभी वैधानिक अधिकारियों और विभागों के प्रमुखों ने भाग लिया।

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