फीचर
- उपक्रमों से देश के सकल घरेलू उत्पाद में 8 प्रतिशत का योगदान
- भारत दुनिया की अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं के रूप में उभरेगा
अनेकानेक उभारों की शुरूआत के बीच एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रम) सरकार की योजनाओं में तीव्र प्रगति के संक्रांति के दौर से गुजरते प्रतीक होते हैं, जबकि इन उपक्रमों का उद्देश्य धीमी और स्थिर बढ़त की शुरूआत को त्वरण देना रहा है। इन उपक्रमों के परिप्रेक्ष्य में देखें तो इनसे देश के सकल घरेलू उत्पाद में 8 प्रतिशत का दमदार योगदान है। केंद्र ने हाल में कारोबार को आसान बनाने के लिए कई तरह की योजनाओं की घोषणा की। उम्मीद है कि भारत दुनिया की अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में उभरेगा और वित्त मंत्रालय के आकलन पर ध्यान दें तो पिछला वित्तीय विकास दौर 7.3 के पायदान से आगे निकलने को उतावला था। मुख्य संचालन तंत्र के क्रियाशील होने के साथ ही इन उपक्रमों से और विकास सुनिश्चित होने की उम्मीद की जा रही है।
मौजूदा समय में विकसित देशों में कुल रोजगार का 45 प्रतिशत सृजित हुआ है। इस तरह इन उपक्रमों से सकल घरेलू उत्पाद में करीब 50 प्रतिशत का योगदान दिख रहा है। भारत में यह सकल घरेलू उत्पाद में अभूतपूर्व भूमिका निभा रहा है और इसमें 10 करोड़ 60 लाख कार्यबलों को रोजगार मिला है। इस क्षेत्र में विनिर्माण उत्पादन के 45 प्रतिशत का योगदान है। इस तरह यह क्षेत्र कुल निर्यात का 40 प्रतिशत हैं। ये उपक्रम समूह के तहत 3 करोड़ 62 लाख से ज्यादा उपक्रम हैं, जिनमें 15 लाख 64 हजार पंजीकृत इकाइयां हैं। इन उपक्रमों के पंजीकरण के लिए आधार-उद्योग संबंधी व्यापारिक व्यवस्था को सरल बनाने का काम शुरू किया गया है। उपक्रमों के पुनरुद्धार संबंधी ढांचागत कार्य और प्रधानमंत्री रोजगार उत्पादन कार्यक्रम योजना (पीएमईजीपी) भी संचालित है।
हालांकि कई उद्योगपतियों ने उपक्रमों की तीव्र प्रगति के पथ पर कई रुकावटों की मौजूदगी संबंधी अपनी चिंताओं को मुखर किया है, लेकिन सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रम संबंधी मंत्री कलराज मिश्र को भरोसा है कि इस क्षेत्र से तीव्र विकास का पहिया घूमेगा। सरकार को हाल में इस उपक्रम के लिए सरलीकृत आधार आधारित पंजीकरण प्रणाली के काफी उत्साहजनक जवाब मिले हैं। कम समय के भीतर इस योजना के तहत 800 पंजीकरण प्राप्त हुए।
प्रधानमंत्री के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रम के तहत 2015-16 के दौरान करीब 118,196 लोगों को मिला रोजगार
प्रधानमंत्री के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रम के तहत 2015-16 के दौरान करीब 118,196 लोगों को रोजगार मिला। मिश्र इनकी लोकप्रियता को धीरे-धीरे बहाल होने और खादी की बिक्री में वृद्धि के प्रति आशान्वित हैं। खादी और ग्रामोद्योग ने पिछले साल अक्टूबर 2014-15 के दौरान 17.55 प्रतिशत का रिकार्ड विकास किया था। इन उद्यमों के पंजीकरण के लिए उद्योग आधार व्यवस्था के तहत मंत्रालय ने एक पन्ने का सरल रजिस्ट्रेशन फॉर्म अधिसूचित किया है। यह राज्यों और संबद्ध पक्षों से सलाह-मशविरे के बाद एक प्रारूप को प्रस्तुत करके किया गया है। इसकी मुख्य विशेषताएं हैं- एक पेज का सरल ऑनलाइन पंजीकरण, जो गतिशील सहायता तंत्र है। इसके अलावा, इसमें आत्मप्रमाणन के तहत एक उद्योग आधार से ज्यादा वाले स्वत: प्रमाणन की व्यवस्था है। उपक्रम के लिए किसी दस्तावेज और शुल्क की जरूरत नहीं है।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों को फिर से उभारने और उनमें दोबारा जान फूंकने के लिए संबंधित कानून 2006 के अंतर्गत इन उपक्रमों को अधिसूचित किया गया। ज्यादातर उद्यमियों की इच्छा थी कि इस कानून में बुनियादी बदलाव किया जाए जिसमें तेजी से बदलती व्यापारिक वास्तविकताओं का ध्यान रखा जाए। इस साल 25 मार्च को मंत्रिमंडल ने अपनी बैठक में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रम संशोधन विधेयक 2015 में सुधार करते हुए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रम विकास कानून, 2006 का आगाज किया और मंत्रालय के प्रस्ताव को कानून में शामिल किया गया है।
घोषित ढांचागत कार्य के जरिये उद्यमियों के सुनिश्चित स्वर को मुखर करने संबंधी तौर-तरीके को आगे बढ़ाया गया है। उम्मीद है कि इससे कर्जदाताओं और उनके सामने मौजूद लोगों के हितों के बीच संतुलन कायम होगा। इस ढांचागत कार्य से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रम को पहचानने में बैंक और दूसरे पक्षों को सहूलियत होगी, इससे पूंजी के इस्तेमाल न हो पाने जैसी स्थिति को रोकने में सही कार्य करने का चरण उत्पन्न होगा। राज्य सरकार, निर्यातक और दूसरे समूह के प्रतिनिधियों को मिलाकर बैंक गठित समिति के जरिये सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों में फिर से जान फूंकने की कोशिश कर सकते हैं। इसी तरह प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के बारे में मिश्र ने बताया कि इस कार्यक्रम को लेकर बेरोजगार युवाओं की ओर से उत्साहजनक जवाब मिले हैं।
2008-09 में इस उपक्रम के शुरू होने के बाद से अब तक 3 लाख 37 हजार उद्यमों की स्थापना के जरिये 28 लाख 88 हजार रोजगार सृजित किए गए । इस तरह हमें 6 हजार 7 सौ 12 करोड़ 97 लाख रुपये की सब्सिडी प्रदान करने का रास्ता खुला। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2013-14 की तुलना में 2015-16 के दौरान प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम की उपलब्धियों में जबर्दस्त यानी दस गुना सुधार हुआ। मंत्रालय ने फेसबुक और ट्वीटर पर अपने कार्यक्रमों, योजनाओं और आम जनता से सीधे संपर्क के लिए सूचनाओं और उद्देश्यों संबंधी जानकारी सार्वजनिक की। कुशलता विकास मिशन के तहत मंत्रालय नये उपक्रम या उद्योग के लिए रोजगार उपलब्ध कराने के इरादे से हर साल 8 से 9 लाख लोगों को प्रशिक्षित कर रहा है।
इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों से राष्ट्रीय कुशलता योग्यता ढांचाकार्य (एनएसक्यूएफ) के तहत एक समान कोष प्रदाता पद्धति का आगाज किया गया है। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रम एमएसएमई-सैमसंग डिजिटल स्कूल फॉर डेवलपमेंट मोबाइल एप्स शुरू करने संबंधी सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। लुधियाना, दिल्ली, हैदराबाद, अहमदाबाद, औरंगाबाद, वाराणसी, भुबनेश्वर, चेन्नई, मुंबई और कोलकाता जैसे 10 शहरों में ये मोबाइल एप्स सेवा स्थापित किए गए हैं जो तकनीकी रूप से साक्षर युवाओं के कुशलता विकास गतिविधियों संबंधी जरूरतों को पूरा करेंगे। संरचित विकास के लिए हैदराबाद स्थित सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों संबंधी राष्ट्रीय संस्थान (एनआई-एमएसएमई), ने देश के विभिन्न स्थानों पर अप्रैल- सितंबर 2015 के दौरान 46 प्रतिभा मेले आयोजित किये थे। इन मेलों में 332 रोजगार प्रदाताओं और 29 हजार 66 रोजगार इच्छुक लोगों ने हिस्सा लिया जिनमें 9 हजार 121 उम्मीदवारों को रोजगार प्रदान करने के लिए चुना गया। इसके अतिरिक्त पिछले महीने कर्नाटक के देवनगिरी में आयोजित प्रतिभा मेले में 85 कंपनियों ने हिस्सा लिया था, जिनमें नौकरी के लिए 9 हजार 141 लोगों ने पंजीकरण कराया, जिनमें 3 हजार 104 लोगों को रोजगार के लिए चुना गया। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रम उत्पादन और राजस्व उत्पन्न, यानी दोनों ही मामलों में स्थिर विकास रूपी घड़ी है, लेकिन कुछ क्षेत्रों खासकर दक्षिणी भू-भाग में हालात बेहतर दिखते हैं। इसी तरह सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रम के अंतर्गत कुछ क्षेत्रों में पिछले डेढ़ वर्षों के दौरान दौड़ जारी है, लेकिन ये सुचिंतित पायदान में पीछे हैं।
मिश्र ने बताया कि सरकार मंत्रालय के जरिये नीति की वकालत करते हुए समर्थित ढांचागत कार्य मुहैया कराकर इन उपक्रमों से मदद लेकर दोहरी भूमिका निभाती है। इससे इस क्षेत्र में उच्च विकास अपने पूरे उभार पर रहता है। मंत्रालय ने कई क्षेत्रों में संस्थागत सुधार लाकर कई प्रोत्साहन भरे कदम उठाए हैं। इनमें करों में सुधार, नियामक प्रणाली में सुधार और वित्तीय प्रबंधन में सुधार संबंधी नीतिगत व्यवस्थाएं शामिल हैं। उन्होंने सरकार की नीतियों के हस्तक्षेप से विभिन्न हितों वाले इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण बिंदुओं की पहचान की जरूरत रेखांकित किया और इन उपक्रमों के लाभ के लिए कई बेहतरीन बिन्दुओं को अपनाने पर जोर दिया। हाल ही में मुंबई में विशेषज्ञों और वित्तीय प्रमुखों ने एक सत्र में हिस्सा लेकर इस बात पर विचार-विमर्श किया कि किस तरह सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों को औद्योगिक और रोजगार वृद्धि में सहायक के रूप में उभारा जा सकता है। इस सत्र में अवसरों के भविष्यगत सृजन पर भी गंभीरता से विचार किया गया। विशेषज्ञों का दृढ़ मत था कि ‘मेक इन इंडिया’ अभियान ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम इकाइयों सहित रक्षा, ऊर्जा, रेलवे, बुनियादी ढांचे और दूसरे क्षेत्रों में कार्यरत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को इनसे जोड़ कर व्यापक अवसर के दरवाजे खोले हैं।
देश में उस विनिर्माण पर जोर दिया गया है जिस नजरिये से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रम क्षेत्र में व्यापक कारोबार संबंधी मौके अपनी परिपक्व अवस्था में हैं। मुंबई में हुए सत्र के दौरान इस क्षेत्र की क्षमता के दरवाजे खोलने के लिए विभिन्न संबद्ध पक्षों को एकजुट करने पर ध्यान केंद्रित किया गया। नीति निर्माताओं, बड़ी कंपनियों, चमकदार उद्योगपतियों, वित्तीय संस्थानों, सार्वजनिक उपक्रमों और अग्रणी उद्यमियों ने उक्त मुंबई सत्र में अपने विचारों, अनुभवों और अवसरों को साझा किया।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2014-15 के बजट में 23 करोड़ 89 लाख रुपये यानी 95.6 प्रतिशत के मुकाबले 2012-13 में 22 करोड़ 81 लाख रुपये की व्यय प्राप्तियां कीं। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रम मंत्रालय की 2015-16 की योजना में 2612 करोड़ रुपये निर्धारित हैं। विभिन्न अंगों के बीच इस समूचे बजट को समर्थित किया जाएगा। गैर योजनागत खर्चों पर गौर करें तो मंत्रालय ने 394 करोड़ 91 लाख रुपये की योजना बनाई। इनमें से खादी और ग्रामोद्योग और केयर बोर्ड (जूट संबंधी उत्पाद) ने भी व्यय भार उठाया। इन विकासक्रमों के बीच, रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने 8 हजार 4 सौ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों के कामकाज का विश्लेषण किया। यह विश्लेषण एक अप्रैल 2013 से 31 मार्च 2014 को वित्तीय आधार बनाकर किया गया। अध्ययन से पता चला कि इन सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों का औसत वार्षिक कारोबार 2011-12 में 15 करोड़ 18 लाख रुपये बढ़ा, जो 2012-13 में 19 प्रतिशत बढ़कर 18 करोड़ 14 लाख रुपये हुआ। इसी तरह 2013-14 में यह 13 प्रतिशत बढ़कर 20 करोड़ 53 लाख रुपये हो गया। दक्षिणी राज्यों- तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों ने दूसरे राज्यों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया। 2013-14 में दक्षिण की इन इकाइयों ने सालाना 21 प्रतिशत औसत वृद्धि-संबंधी कारोबार किए, जो सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों की कुल विकास तस्वीर का 13 प्रतिशत रहा। आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों ने क्रमश: 21 और 18 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। इस तरह ये क्षेत्र में विकास के प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरे। दक्षिण में विकासगाथा लिखने वाले अहम क्षेत्र दवा और स्वास्थ्य देखभाल रहे, जिन्होंने समूचे उपक्रम के सालाना औसत में 45 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की। इसके अलावा धातु 35 प्रतिशत, चमड़ा 32 प्रतिशत, कृषि प्रसंस्करण 21 प्रतिशत, कपड़ा 17 प्रतिशत और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र ने 16 प्रतिशत सालाना कारोबार में वृद्धि दर्ज की।
भविष्य में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों के दक्षिण भारत के दूसरे क्षेत्रों में बाजी मारने की आशा है। ऐसा औद्योगिक विकास संबंधी समर्थित नीतियों की वजह से संभव है। यह विभिन्न औद्योगिक केंद्रों का पिछड़े क्षेत्रों में खोले जाने से संभव हो सका है। तमिलनाडु में मदुरै- तूतीकोरिन गलियारे के विकास, हरित ऊर्जा गलियारा और आंध्र प्रदेश में 31 शहरों में बुनियादी ढांचे के विकास से औद्योगिकरण संभव हो सकता है। पुनरुद्धार और शहरी सुधार संबंधी अटल मिशन योजना के तहत कई योजनाएं जारी हैं। इन राज्यों की प्रगति और यहां स्थित उद्योगों के मुखर होने में भारत का विकास निहित है जो सिर्फ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों के समर्थन से संभव हुआ है। यह बात मुंबई में आयोजित सीआईआई बैठक में हाल ही में राज्य के उद्योग मंत्री सुभाष देसाई ने कहा। उन्होंने माना कि इस ओर ध्यान देने से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों की गति को प्रोत्साहन मिला है। न सिर्फ सरकार से, बल्कि उद्योग और दूसरी संस्थाओं से भी प्रोत्साहन मिला है। विशेषज्ञों का कहना है कि औद्योगिक विकास के प्रोत्साहन भले माहौल के आगाज से संकटग्रस्त उपक्रमों का हौसला बढ़ा है। मंत्री महोदय ने अपील की कि बड़ी कंपनियों को इस दिशा में पहल करनी चाहिए।
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रम ज्यादा लागत और समय से न पहुंच पाने की कीमत चुकाते हैं। इन्हें आर्थिक मदद के साथ ही जनबल और बिजली संबंधी वित्तीय भुगतान की जरूरत है। आधुनिकीकरण, तकनीक उन्नयन, विपणन और क्षमता के विस्तार की जरूरत से भी इनकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने बताया कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निगरानी तंत्र को बेहतर बनाकर कई नीतियों और योजनाओं का ऐलान करने से छोटे उद्यमियों का भला होगा। प्रस्तावित सुविधाओं की वकालत करने वाले दूसरे घटक हैं- बिना किसी अड़चन और तीसरी पार्टी के गारंटी वाले कर्जों की उपलब्धता, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रम में समान भागीदारी, झुग्गी बस्तियों के विकास कार्यक्रमों को लागू करने के लिए बजट में अतिरिक्त प्रावधानों की जरूरत, निर्यात संबंधी प्रक्रियाओं और दस्तावेजों के सरलीकरण, निर्यात और विदेशी व्यापार नीति की निरंतरता के लिए ई-प्रणाली और उपक्रम को संचालित करने वाले श्रम कानून के तहत पालन और निरीक्षण संबंधी नीतियों का सरलीकरण, महिला उद्यमियों के लिए कोष आवंटन और औद्योगिक गलियारे खोलने के लिए जमीन की उपलब्धता।