वैज्ञानिक शोध का तब तक कोई फायदा नहीं जब तक इसे व्यवहारिक रूप न दिया जाए : राज्यपाल

  • हिमाचल में सीबकथॉर्न के विकास की अपार संभावनाएं : राज्यपाल
  • कृषि विश्वविद्यालय पालमुपर को इसके प्रोत्साहन के लिए कार्य करने के निर्देश

शिमला: राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने आज शिमला के पीटरहॉफ में सीबकथॉर्न एसोसिएशन ऑफ इंडिया, चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्याल, पालमपुर तथा हिमाचल प्रदेश प्रदेश जैव विविधता बोर्ड, शिमला के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सीबकथॉर्न पर राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की।

राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने हिमाचल प्रदेश में सीबकथॉर्न के विकास की धीमी गति पर चिंता व्यक्त करते हुए कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के वैज्ञानिकों को वन विभाग के समन्वय के साथ कार्य करने के निर्देश दिए, जिससे प्रदेश के सीमावर्ती ठण्डे क्षेत्र में इस पौधे को विकसित कर वहां रहने वाले किसानों की आय को बढ़ाया जा सके। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक शोध का तब तक कोई फायदा नहीं जबतक इसे व्यवहारिक रूप न दिया जाए।

राज्यपाल आज शिमला के पीटरहॉफ में सीबकथॉर्न एसोसिएशन ऑफ इंडिया, चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्याल, पालमपुर तथा हिमाचल प्रदेश प्रदेश जैव विविधता बोर्ड, शिमला के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सीबकथॉर्न पर राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि प्रदेश में वर्ष 1988 से सीबकथॉर्न पर कार्य किया जा रहा है और अनेक शोध भी हुए हैं, जिसके लिए वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं। लेकिन, इसका परिणाम शून्य है। वर्ष 1990 में भारत सरकार की एक परियोजना के अन्तर्गत करोड़ों रुपये इस पर खर्च किए गए, लेकिन इस पौधे का विकास कितना हुए, यह सबके सामने है। अन्य देशों का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा कि चीन ने सीबकथॉर्न से करीब 250 प्रोडक्ट तैयार कर लाखों डालर कमा रहा है। पाकिस्तान भी हमसे आगे है। देश के जिन पांच-छह राज्यों में इसका विकास किया गया है, उनमें भी हिमाचल पीछे है। उन्होंने खेद जताया कि व्यवहारिक दृष्टिकोण की कमी के कारण इस महत्वपूर्ण पौधे की पैदावार से हम वंचित हैं।

आचार्य देवव्रत ने कहा कि सीबकथॉर्न के औषधीय गुण हैं और इसके उत्पाद की बाजार में काफी मांग है। सीमा पर तैनात सैनिकों को इसके उपयोग से अनेक रोगों से बचाया जा सकता है। यह आजीविका का प्रमुख साधन बन सकता है और दुर्गम क्षेत्रों में इसकी खेती से किसानों के पलायन को रोका जा सकता है। इसका वाणिज्यीकरण किया जाना चाहिए, जिसके लिए व्यवहारिक रूप दिया जाना चाहिए ताकि वहां रहने वाले किसानों की रूची बढ़े। उन्होंने हैरानी जताई कि लेह से लेकर अन्य राज्यों में इसका विकास हो रहा है और हिमाचल में कोई प्रगति नहीं हुई है। उन्होंने परामर्श दिया कि स्थानीय भाषा में इसका साहित्य प्रकाशित किया जाना चाहिए। उन्होंने कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति को इस विषय में सभी संबंधित व्यक्तियों से मिलकर कार्य नीति तैयार करने के निर्देश दिए।

इस अवसर पर राज्यपाल ने डी.आर.डी.ओ. के पूर्व निदेशक पद्मश्री डॉ. ब्रह्म सिंह की पुस्तक ‘न्यू ऐज हर्बल्स का भी विमोचन किया।

राज्यपाल ने सीबकथॉर्न के क्षेत्र में शोध एवं अन्य महत्वपूर्ण योगदान के लिए अनेक व्यक्तियों को सम्मानित भी किया।

  • देश में करीब 70 तकनीकी संस्थान सीबकथॉर्न पर कर रहे हैं कार्य : डॉ. आर.सी साव्हने

इससे पूर्व सीबकथॉर्न एसोसिएशन ऑफ इंडिया के प्रेजिडेंट डॉ. आर.सी साव्हने ने राज्यपाल का स्वागत किया तथा कहा कि देश में करीब 70 तकनीकी संस्थान सीबकथॉर्न पर कार्य कर रहे हैं। यह पौधा देश के पांच राज्यों में उगाया जा रहा है और लेह में इसका सर्वाधिक उत्पादन हो रहा है। भारत में इसकी तीन प्रजातियां विकसित की गई हैं, जिसमें लेह बेरी प्रमुख है, जो बाजार में आने वाला पहला उत्पाद है। उन्होंने सीबकथॉर्न के औषधीय गुणों की विस्तृत जानकारी दी तथा सम्मेलन के उद्देश्य से अवगत करवाया। इसके पश्चात्, जी.बी. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर के कुलपति प्रो. तेज प्रताप सिंह ने सीबकथॉर्न के अंतरराष्ट्रीय परिदृष्य पर जानकारी दी। उन्होंने कहा कि जिन देशों में सीबकथॉर्न के विकास पर काफी कार्य हुआ है उन्हें देखते हुए हमें भी प्रभावी पग उठाने की आवश्यकता है।

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