पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने की जलवायु परिवर्तन अनुकूलन पर कार्यशाला आयोजित

  • जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ी चुनौतीः जय राम ठाकुर
  • विधायकों व अन्य हितधारकों के लिए पुनरश्चर्या कार्यशाला आयोजित

शिमला: पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा आज यहां विधायकों एवं नीति निर्माताओं के लिए हिमाचल प्रदेश में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने इस अवसर पर कहा कि जलवायु परिर्वतन वर्तमान समय में सबसे गम्भीर चुनौति बनकर उभरा है। हाल ही में आईपीसीसी द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार हमारी धरती के तापमान में पिछले 20 वर्षों में 0.2 डिग्री की बढ़ौत्तरी हुई। पिछले लगभग 6 लाख वर्षों में हमारे वातावरण में कार्बन डायआक्साईड तथा मिथेन जैसी तापमान बढ़ाने वाली गैसों में भारी बढ़ौत्तरी हुई है जो ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण है। जलवायु में होने वाले परिवर्तन से अनेक प्राकृतिक प्रकोप, सूखा, बाढ़, तूफान इत्यादि में भी वृद्धि होने की संभावना बढ़ गई है। जलवायु के गर्म होने से अनेक हिम खण्ड लुप्त होने की कागार पर है। हिमालय क्षेत्र में पड़ने वाला गंगोत्री हिमखण्ड लगभग 30 मीटर प्रतिवर्ष की दर से कम हो रहा है।

उन्होंने कहा कि हिमाचल में विद्यमान हिमखण्डों का विस्तार भी वर्ष 1962 की तुलना में 21 प्रतिशत घट चुका है। उन्होंने कहा कि यह चिन्ता का विषय है कि एक तरफ हम जल विद्युत परियोजनाओं के विस्तार करने की बात पर जोर दे रहे हैं वहीं दूसरी तरफ हिमखण्डों का विस्तार कम होने की आशंका है। ऐसी स्थिति में इस विषय पर गहन चिन्तन की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि हिमालय के अधिकतर ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं और हमें इन्हें बचाना होगा। उन्होंने कहा कि यदि पर्यावरण संरक्षण व ग्लेशियरों को पिघलने से बचाने के लिए कोई कदम न उठाए गए तो वर्ष, 2050 तक ग्लेशियर अदृश्य हो जाएंगे, जिसके भयावह परिणाम सामने आएंगे।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य विज्ञान, पर्यावरण और प्रौद्योगिकी विभाग पर्यावरण संरक्षण के लिए भारत सरकार के साथ समन्वय बनाकर कार्य कर रहा हैं। उन्होंने कहा कि यह प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह पर्यावरण संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण कार्य में अपना सकारात्मक सहयोग दे। उन्होंने कहा कि पर्यावरण की दिशा में हिमाचल सरकार की ओर से की गई पहल देश के अन्य राज्यों के लिए भी उदाहरण बन सकती है। जय राम ठाकुर ने इस अवसर पर ‘आदर्श ईको गांव योजना’ का शुभारम्भ किया। उन्होंने आदर्श ईको ग्राम मार्ग निर्देशिका, कुल्लू जिला में व्यास नदी तट पर जलवायु परिवर्तन जोखिम मूल्यांकन की रिपोर्ट तथा जलवायु परिवर्तन पर हिन्दी भाषा में तैयार किए गए ब्रोशर को भी जारी किया।

इस अवसर पर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. राजीव बिन्दल ने कहा कि हम भारतीयों के लिए पर्यावरण कोई नया विषय नहीं है क्योंकि हमारे पूर्वजों ने हजारों वर्ष पूर्व विभिन्न वनस्पतियों का अध्ययन कर उनकी विशेषताओं की खोज की थी और उनमें विद्यमान लाभदायक तत्वों के बारे में जानकारी दी।

जलवायु परिवर्तन जी.आई.जैड. (भारत) के निदेशक डॉ. आशीष चतुर्वेदी ने इस अवसर पर ग्रामीण क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन पर प्रस्तुति देते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन कार्यान्वयन व क्षमता की अवधारणा की क्षमता को बढ़ावा देने के लिए ठोस प्रयास करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में क्षमता निर्माण कार्यक्रमों पर अधिक बल दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पंचायत स्तर तक क्षमता निर्माण को सुदृढ़ करने के प्रयास विशेष रूप से किए जाने चाहिए। शिमला में इसके लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किया गया।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के प्रो. ए.के. गोसांई ने हिमाचल प्रदेश में जलवायु परिवर्तन व जल स्त्रोतों के प्रबन्धन के लिए नीति व योजना पर प्रस्तुति देते हुए कहा कि हिमाचल प्रदेश में वर्षा पर किए गए अध्ययन दर्शाते हैं कि वर्ष भर में होने वाली वर्षा व बारिश वाले दिनों में भारी कमी हुई है। इससे प्रदेश के जल स्त्रोतों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। उन्होंने कहा कि हमने प्रदेश की प्रत्येक नदियों के किनारे जल स्त्रोतों की उपलब्धता पर विश्लेषण किया ताकि वातावरण में जलवायु परिवर्तन के अनुमान का अध्ययन किया जा सके।

भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलुरू के डॉ. अनिल कुलकर्णी ने हिमालयन ग्लेशियर व जलवायु परिवर्तन पर विस्तृत प्रस्तुति दी। टैरी के महानिदेशक अजय माथुर ने अपनी प्रस्तुति देते हुए कहा कि वन सम्पदा व जल स्त्रोतों के संरक्षण के लिए उच्च स्तर पर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। शहरी क्षेत्रों का पर्यावरण प्रदूषित होने से बचाने के लिए इलैक्ट्रिक बसों का प्रयोग और कचरे के निपटान के लिए संयंत्रों का निर्माण आदि पहल आवश्यक है। उन्होंने कहा कि क्योंकि हिमाचल प्रदेश एक फल राज्य है इसलिए कृषि उपज बढ़ाने और रासायनिक खादों का न्यूनतम प्रयोग करने के लिए विशेषज्ञों से राय ली जानी चाहिए। उन्होंने राज्य में हरित आवरण की वृद्धि और पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्बन क्रेडिट योजना लागू करने पर भी बल दिया।

पर्यावरण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव मनीषा नंदा ने प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन एक वास्तविकता है और हमें इस चुनौती से निपटने के लिए आपसी समन्वय के साथ कार्य करने की आवश्यकता है। पर्यावरण संरक्षण के लिए अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो मानवता का वजूद खतरे में पड़ जाएगा। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के लिए कारगर रणनीति तैयार करने के साथ-साथ इसके बारे में व्यापक जागरूकता उत्पन्न करने के लिए भी कदम उठाने होंगे।

 

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