कृषि विभाग द्वारा शिमला में प्राकृतिक खेती पर पांच दिवसीय प्रशिक्षण शुरू

  • प्राकृतिक खेती अपनाने से बदल सकती है देश की तकदीर-राज्यपाल

शिमला: प्रदेश के लोगों से शून्य बजट आधारित प्राकृतिक खेती अपनाने का राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने आह्वान किया है तथा कहा है कि शून्य बजट आधारित कृषि अपनाने से देश के भाग्य में बदलाव आएगा। राज्यपाल ने कहा कि व्यावहारिक रूप से शुरूआती दौर में इस प्रणाली के अंतर्गत न्यूनतम लागत आती है इसलिए इस प्रणाली को प्राकृतिक खेती के तौर पर जाना जाता है।

राज्यपाल आज शिमला में प्राकृतिक खेती पर कृषि विभाग द्वारा आयोजित पांच दिवसीय प्रशिक्षण शिविर के उद्घाटन समारोह अवसर पर बोल रहे थे। इस प्रशिक्षण शिविर में पांच ज़िलों से आए किसान व बागवान भाग ले रहे हैं।

उन्होंने कहा कि वैकल्पिक प्रणाली के अभाव में कृषि व फलोत्पादन में रसायनों से होने वाले दुष्प्रभाव हमारे भोजन में नज़र आ रहे हैं परंतु अब हमें प्राकृतिक खेती की एक नई प्रणाली मिल गई है। उन्होंने कहा कि उत्तरी क्षेत्रों में हिमाचल की मिट्टी को अत्यंत उपजाऊ माना जाता है तथा वैज्ञानिक डाटा के अनुसार इस मिट्टी में 0.8 ऑगेनिक कार्बन की उपलब्धता है। उन्होंने चेताया कि यदि किसान इसी गति से रसायनों का इस्तेमाल करते रहे तो कृषि योग्य भूमि बंजर हो जाएगी। उन्होंने कहा कि भूजल स्तर प्रति वर्ष 4 फुट की दर से कम हो रहा है और यदि ऐसा चलता रहा तो आने वाली पीढ़ियों को पीने के लिए पर्याप्त पानी मिल पाएगा।

आचार्य देवव्रत ने कहा कि रासायनिक खेती के प्रयोग से लागत दर बढ़ रही है जबकि उत्पादन कम हो रहा है। इसके प्रयोग से कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा हो रही हैं तथा वैज्ञानिक रिपोर्टों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इससे पर्यावरण को भी नुकसान हो रहा है। रासायनिक खेती से वैश्विक तापमान में 40 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। उन्होंने कहा कि इसके दुष्प्रभावों के चलते हमें प्राकृतिक खेती को अपनाना चाहिए तथा इसे कामयाब करने के लिए हमें मिलकर कार्य करना चाहिए।

प्राकृतिक खेती अपनाने से बदल सकती है देश की तकदीर-राज्यपाल

प्राकृतिक खेती अपनाने से बदल सकती है देश की तकदीर-राज्यपाल

राज्यपाल ने कहा कि भारत के खाद्य भण्डार जैविक खेती के माध्यम से नहीं भरे जा सकते क्योंकि इस प्रणाली के भी रसायनिक खेती जैसे कई दुष्प्रभाव हैं। उन्होंने कहा कि यह एक खर्चीली पद्धति है तथा आम किसान इसकी लागत अधिक होने की वजह से इसका प्रयोग नहीं कर पाता। उन्होंने जोर देकर कहा कि वर्ष 2022 तक यह क्षेत्र प्राकृतिक खेती के क्षेत्र के रूप में उभरेगा तथा यह पूरे देश के लिए मार्गदर्शक बनेगा।

उन्होंने किसानों और बागवानों से प्राकृतिक खेती में प्रशिक्षण लेने का तथा इसके परिणाम देखने के लिए विधि का अपने खेतों के एक भाग में ईमानदारी से प्रयोग करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि हाल ही में नई दिल्ली में उद्योगपति और निर्यातकों से उनकी भेंट के दौरान उन्होंने प्राकृतिक उत्पादों को डेढ़ गुणी कीमतों पर खरीदने की इच्छा जताई है।

इससे पूर्व राज्यपाल ने ‘अपना हिमाचल’ द्वारा प्राकृतिक खेती पर निकाले गए विशेषांक का भी विमोचन किया।

कृषि मंत्री डॉ. रामलाल मारकण्डा ने इस अवसर पर राज्यपाल का स्वागत किया तथा कहा कि प्राकृतिक खेती पर ऐसे शिविर तथा कार्यक्रम राज्यपाल के निर्देशों तथा मार्गदर्शन के तहत आयोजित किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश के मंत्रियों तथा अधिकारियों ने हाल ही में कुरूक्षेत्र के गुरूकुल का दौरा किया था जहां प्राकृतिक खेती पर पहले से कार्य किया जा रहा है। राज्य सरकार ने इस प्रणाली का को हिमाचल में अपनाने का निर्णय लिया है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रदेश सरकार ने बजट में 25 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है।

इस अवसर पर पदमश्री सुभाष पालेकर ने कहा कि प्रदेश में रसायन मुक्त खेती को बढ़ावा देना चाहिए जिससे देवभूमि की महता बनी रहेगी। उन्होंने कहा कि देश में हिमाचल का एक विशेष आकर्षण है तथा सेब का आकर्षण इससे भी अधिक है। परंतु रसायनों के प्रयोग से हम न केवल जहर बांट रहे है बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी कम कर रहे हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि हम चुनौतियों को सुलझाएं तथा इसके लिए हमें प्राकृतिक खेती के रूप में एक समाधान मिला है।

उन्होंने कहा कि आज देश में सिर्फ 35 करोड़ एकड़ भूमि कृषि के लिए बची है और जिस तरह से हमारी जनसंख्या बढ़ रही है, हमें वर्ष 2050 तक दोगुने खाद्यानों (50 मिलियन मीट्रिक टन) की आवश्यकता होगी। इसलिए प्राकृतिक खेती या आध्यात्मिक कृषि को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

प्रधान सचिव कृषि ओंकार शर्मा ने भी राज्यपाल का इस अवसर पर स्वागत किया तथा कृषि विभाग द्वारा प्राकृतिक खेती पर की जा रही विभिन्न गतिविधियों की जानकारी प्रदान की। उन्होंने इस पांच दिवसीय शिविर के विभिन्न सत्रों में होने वाली गतिविधियों की भी जानकारी दी। निदेशक कृषि डॉ. देसराज शर्मा ने धन्यवाद प्रस्ताव पेश किया।

सम्बंधित समाचार

अपने सुझाव दें

Your email address will not be published. Required fields are marked *