नौणी : हिमाचल प्रदेश के चार जिलों के सेब बागवानों ने नौणी स्थित डा॰ वाई एस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय में ‘प्रबंधकीय परागण'(managed pollination) में मूल्यवान व्यावहारिक ज्ञान हासिल किया। राज्य के शिमला,चम्बा, सिरमौर और मंडी जिलों के 52 किसानों ने ‘सेब बागानों में प्रबंधकीय परागण की भूमिका’ विषय पर आधरित एक दिवसीय प्रदर्शन शिविर में भाग लिया। यह कार्यक्रम विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित हिमाचल प्रदेश बागवानी विकास परियोजना (एचपीएचडीपी) के तहत आयोजित किया गया। सभी किसान इस परियोजना में ‘संपर्क किसान’ और हितधारक हैं। इसके अलावा बागवानी विभाग के 12 अधिकारियों ने भी शिविर में भाग लिया। विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डा॰ जे एन शर्मा इस परियोजना के नोडल अधिकारी हैं। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक भी पिछले दो सालों से इस परियोजना का हिस्सा हैं।
कार्यक्रम के समन्वयक डा॰ हरीश शर्मा ने शिविर के बारे में समझाते हुए कहा कि इस गतिविधि का उद्देश्य प्रबंधकीय परागण के विषय को ज्ञान साझा करना है। परागण के लिए शहद मधुमक्खी कॉलोनी तैयार करने के लिए पूरी तरह से व्यावहारिक सत्र का आयोजन किया गया। सेब के बागीचों में उचित परागण क्रिया को बढ़ावा देने के लिए पोलन डिस्पेंसर की उपयोग विधि पर भी किसानों को बताया गया।
मधुमक्खी पालन के महत्व के बारे में जानकारी के अलावा,किसानों ने महत्वपूर्ण कीट परागणकों की पहचान और उनके संरक्षण के लिए रणनीतियों के बारे में इस शिविर में सीखा। डा॰ हरीश ने बताया कि किसानों को मधुमक्खियों और अन्य कीट परागिनकों की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में अवगत करवाया गया ताकि यहाँ अर्जित ज्ञान को वह अपने बागों में लागू करें और इसके फायदे उठा सकें।
इसके अलावा,किसानों ने मधुमक्खी कॉलोनी और मधुमक्खी प्रबंधन के स्थानान्तरण जैसे विषयों पर भी विचार-विमर्श किया। उन्होंने यह भी सीखा की अगर पेड़ों और खेतों में स्प्रे करने की आवश्यकता हो तो कैसे मधुमक्खियों की रक्षा की जा सकती है। एचपीएचडीपी परियोजना के तहत सेब की नई किस्मों के उच्च घनत्व वाले बागानों का भी फील्ड इन सेब उत्पादकों को करवाया गया और मधुमक्खियों के चारा खोज कर लाने वाला व्यवहार(forager behavior) भी किसानों को समझाया गया।
नौणी विवि के कीट विज्ञान विभाग के प्रमुख डा॰ अंजू खन्ना ने बताया कि प्रबंधित परागण, विशेष रूप से मधुमक्खी कालोनियां की कमी से राज्य के कृषि उत्पादन पर असर पर रहा है और परिणामस्वरूप खराब फ्रूट सेट और कम उत्पादकता हो रही है। इससे किसानों की आय पर भी असर पड़ रहा है।