मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने इस अवसर पर कहा कि न्यायालयों में लम्बित मामले चिंताजनक है क्योंकि इससे लोगों को तीव्र न्याय नहीं मिल पाता है। उन्होंने कहा कि कानून को समाज के बदलते दौर के अनुरूप ढालना आवश्यक है और न्यायपालिका को हर संभव सहायता उपलब्ध करवाने के लिए हमारे सक्रिय प्रयास रहे हैं। उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश से राष्ट्रीय विधिक विश्वविद्यालय के निर्माण कार्य को पूरा करने के लिए 100 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान करने का मामला भारत सरकार से उठाने का आग्रह किया, क्योंकि इसके निर्माण कार्य पर 150 करोड़ रुपये से अधिक राशि खर्च होगी। उन्होंने कहा कि देश के बदलते सामाजिक आर्थिक परिवेश में राष्ट्र विकास की ओर अग्रसर है और प्रदेश भी इसमें पीछे नहीं है। उन्नति व समृद्धि के चलते न्यायालयों में नए प्रकार के मामले जैसे दुर्घटनाएं और अन्य संवैधानिक मामले आदि आ रहे है, जो न्यायालय का अधिक समय लेते हैं। इसलिएयह आवश्यक हो गया है कि न्यायालयों में पर्याप्त स्टाफ हो और सुविधाएं प्रदान की जाएं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में न्यायिक व्यवस्था में विस्तार किया गया है और लोगों शीघ्र न्याय दिलाने तथा उच्च न्यायालय के कार्य बोझ को कम करने के दृष्टिगत राज्य सरकार ने प्रशासनिक ट्रिब्यूनल को बहाल किया है। न्यायालयों में मामलों में बढ़ोतरी के बावजूद इनक निपटारे में सुधार देखने को मिल रहा है तथा सरकार न्यायपालिका को हर संभव सहायता प्रदान कर रही है।
उन्होंने कहा कि सरकार व न्यायपालिका के संयुक्त प्रयासों से न्यायिक व्यवस्था सुदृढ़ हुई है और यह प्रसन्नता की बात है कि हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने अनके महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं जिनका उच्चतम न्यायालय तथा अन्य राज्य के उच्च न्यायालयों में भी उल्लेख होता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश ने 27 नवम्बर, 2013 से 12 अगस्त, 2016 के बीच मोटर वाहन दुर्घटना दावों के मामलों में 55 करोड़ रुपये से अधिक की राशि मुआवजे के रूप में गरीबों व जरूरतमंदों को राहत प्रदान करने के लिए दिलाई है। उनका यह प्रयास सराहनीय है।
उन्होंने नए न्यायिक अकादमी परिसर के शुभारम्भ तथा राष्ट्रीय विधिक विश्वविद्यालय की आधारशिला रखने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश का आभार व्यक्त किया। राष्ट्रीय विधिक विश्वविद्यालय का निर्माण 137 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 45 बीघा क्षेत्र में किया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मंसूर अहमद मीर ने कहा कि विधिक शिक्षा न्यायिक स्तर के गुणात्मक सुधार को बढ़ाने के लिए आवश्यक है और न्यायपालिका की स्वतंत्रता लोगों के विश्वास और न्यायाधीशों की बेहतर सेवाओं पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि न्यायिक अकादमी पर न्यायाधीशों व न्यायालयों अधिकारियों के लिए आवश्यक व नियमित प्रशिक्षण प्रदान करने का उत्तरदायित्व है, ताकि न्याय की गुणात्मक व्यवस्था को बढ़ाया जा सके।
न्यायमूर्ति मीर ने कहा कि अकादमी ने अपनी वैबसाइट पर हेल्प डेस्क सेवा आरम्भ की है, जहां पर न्यायिक अधिकारी पठन सामग्री, पूर्व व्याख्यानों के वीडियो देख सकते हैं और अकादमी से प्रश्न भी पूछ सकते हैं। अकादमी आईएलआर नामक हिमाचल सीरिज भी तैयार कर रही है, जो न्यायिक अधिकारियों को ई-मेल के माध्यम से भेजी जाएगी। इसमें उच्च न्यायालयों द्वारा बनाए गए नवीनतम कानूनों की जानकारी उपलब्ध होगी। उन्होंने कहा कि नवीन तकनीकों से नई चुनौतियां भी आई हैं और इसके साथ चलना समय की मांग है। उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश का अकादमी के छात्रावास के लोकार्पण तथा राष्ट्रीय विधिक विश्वविद्यालय की आधारशिला रखने के लिए आभार जताया।