देश को अच्‍छे गुणवत्‍तायुक्‍त आलू के बीजों की बड़ी मात्रा में आवश्‍यकता : राधा मोहन सिंह

मौजूदा समय में हम फार्म प्रबंधन अभ्‍यासों को दृष्‍टिगत रखते हुए केवल 60.8 प्रतिशत फसल को ही प्राप्‍त कर पाते हैं : सिंह

वर्ष 2014-15 के दौरान 20.8 मिलियन हैक्‍टेयर क्षेत्र में आलू का उत्‍पादन 48.0 मिलियन टन रहा

भारत विश्‍व में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा आलू उत्‍पादक देश

नई दिल्ली: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने आज हरियाणा के करनाल में शामगढ़ स्थित आलू प्रौद्योगिकी केन्द्र का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि रोगमुक्‍त गुणवत्‍ता युक्‍त रोपण सामग्री का उत्‍पादन आलू की कृषि में एक मुख्‍य रूकावट है तथा देश को अच्‍छे गुणवत्‍तायुक्‍त आलू के बीजों की बड़ी मात्रा में आवश्‍यकता है। इस समय आलू के बीजों की आवश्‍यकता पूरी करने के प्रयोजनार्थ टिशू कल्‍चर तकनीकों के द्वारा माइक्रो ट्यूबर के उत्‍पादन के लिए नई तकनीकों को मानकीकृत किया गया है। करनाल में आलू प्रौद्योगिकी केंद्र खुलने से न केवल समय पर रोगमुक्‍त रोपण सामग्री बड़ी मात्रा में उपलब्‍ध होगी अपितु इसके द्वारा आलू की नई किस्‍मों के प्रचार प्रसार में भी मदद मिलेगी। इससे निश्‍चित रूप से उत्‍पादन, किसानों की उपज और हरियाणा और पड़ोसी राज्‍यों के प्रसंस्‍करण उद्योगों मे बढ़ोत्‍तरी होगी।

सिंह ने कहा कि हम अपने जीवन में प्राय: रोज ही आलू खाते हैं और 10,000 वर्षों से भी अधिक अवधि से इसका इस्‍तेमाल भोजन के रूप में कर रहे हैं। आलू को अभी भारत में साधारण सब्‍जी अनुपूरक से गंभीर खाद्य सुरक्षा विकल्‍प के रूप में परिवर्तित करना है। आलू में प्रमुख खाद्य फसलों के बीच सर्वाधिक पोषक तत्‍व प्रदान करने और प्रति यूनिट क्षेत्र ड्राई मैटर उत्‍पन्‍न करने की क्षमता है। यह वह फसल है जिसके द्वारा भावी वैश्‍विक खाद्य सुरक्षा और गरीबी उन्‍मूलन का निदान होगा।

 

कृषि मंत्री ने कहा कि जैसा कि हम जानते है कि आलू प्रोटीन और विटामिन बी से भरपूर होते हैं। उनमें ऐसे तत्‍वों का समावेश होता है जिनके द्वारा शारीरिक विकास में मदद मिलने के साथ स्‍मृति क्षमता बढ़ती है। इसलिए नियमित रूप से आलू खाने से न केवल हमारा स्‍वास्‍थ्‍य बनता है अपितु ये हमें युवा और स्‍मार्ट भी बनाए रखते हैं।

सिंह ने बताया कि कृषिगत जीडीपी के परिप्रेक्ष्‍य में आलू की मौजूदा भागीदारी 1.32 प्रतिशत कृषि योग्य क्षेत्र से बढ़कर 2.86 प्रतिशत हो गई है। इसके विपरीत दो प्रमुख खाद्य फसलें अर्थात चावल और गेहूं क्रमश: 31.19 और 20.56 प्रतिशत कृषि योग्‍य क्षेत्र (एफएओस्‍टेट) के सापेक्ष 18.25 प्रतिशत और 8.22 प्रतिशत का योगदान करती हैं। इससे यह पता चलता है कि कृषिगत जीडीपी में कृषि योग्‍य भूमि के इकाई क्षेत्र से आलू का योगदान चावल के मुकाबले लगभग 3.7 गुना और गेहूं के मुकाबले 5.4 गुना अधिक है। सिंह ने कहा कि कार्यरत दम्पतियों की बढ़ती संख्‍या, शहरीकरण की तेज दर, घर से बाहर खाना खाने की बढ़ती हुई अभिवृत्‍ति, लोगों की उच्‍चतर प्रयोज्‍य आय और फास्‍ट फूड श्रेणी में आलू के महत्‍वपूर्ण स्‍थान से निकट और दूर भविष्‍य में आलू के इस्‍तेमाल की बाबत बढ़ोत्‍तरी होने की संभावनाएं उत्‍पन्‍न हो रही हैं। भारत में 2025 के दौरान आलू की मांग लगभग 55 मिलियन टन और 2050 के दौरान 122 मिलियन टन हो जाएगी। प्रसंस्‍करण गुणवत्‍तायुक्‍त आलू की मांग क्रमश: वर्ष 2025 और 2050 में 2.7 मिलियन टन के मौजूदा स्‍तर से बढ़कर क्रमश: 6 और 25 मिलियन टन हो जाएगी। इसी प्रकार ताजे आलुओं की मांग वर्ष 2025 और वर्ष 2050 के दौरान मौजूदा 24 मिलियन टन से बढ़कर क्रमश: 38 और 78 मिलियन टन हो जाएगी। यद्यपि आलू के बीजों की मांग वर्ष 2050 तक लगभग 2.1 गुणा अधिक (2.96 से 6.1 मिलियन टन) हो जाएगी। तथापि सभी किसानों को मुनासिब कीमत पर वांछित गुणवत्‍तायुक्‍त आलू के बीज उपलब्‍ध कराने के प्रयोजनार्थ उच्‍चस्‍तरीय संयुक्‍त प्रयास किए जाने की आवश्‍यकता है।

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने कहा कि मौजूदा समय में हम फार्म प्रबंधन अभ्‍यासों को दृष्‍टिगत रखते हुए केवल 60.8 प्रतिशत फसल को ही प्राप्‍त कर पाते हैं। तथापि देश में कृषि संबंधी प्रौद्योगिकियों के सुचारू उपयोग पर जोर देने के साथ कृषि प्रबंधन अभ्‍यासों में सुधार लाना आपेक्षित है। अनुमान है कि हम आने वाले समय में आलू की उपज का 80 प्रतिशत भाग प्राप्‍त करने में सफल होंगे। सिंह ने कहा कि जब हम कृषि जिंसों के प्रसंस्‍करण पर विचार करते हैं तो हम इस दिशा में आलू को सबसे आगे पाते हैं। पिछले अनुभवों के विश्‍लेषण और भारतीय प्रसंस्‍करण उद्योग की पद्धति से यह पता चलता है कि अगले 40 वर्षों की अवधि के दौरान प्रसंस्‍करणकृत आलुओं की मांग तेजी से बढ़ेगी। इस अनुक्रम में फ्रेंच फ्राइज का स्‍थान पहले नंबर (11.6 प्रतिशत) पर होगा। इसके बाद पोटेटो फ्लैक्‍स/पाउडर (7.6 प्रतिशत) और पोटेटो चिप्‍स (4.5 प्रतिशत) का नंबर होगा। प्रसंस्‍करणकृत आलुओं की मांग वर्ष 2010 में 2.8 मिलियन टन के मुकाबले बढ़कर वर्ष 2050 के दौरान 25 मिलियन टन हो जाएगी। इस अवसर पर हरियाणा के मुख्यमंत्री, हरियाणा के कृषि मंत्री, हरियाणा के कृषि राज्य मंत्री, सांसद और विधायक भी उपस्थित थे।

 

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