“पलायन” खेत बंजर, घर खंडहर….!!

  • आवारा पशुओं व जानवरों द्वारा फसलों की बर्बादी तो कभी मौसम का कहर

गांवों के ऊंचे तबके के लोग शहरों में आकर बस जाते हैं क्योंकि उनके पास पैसा है। वहीं उनकी देखा-देखी के चलते दूसरे लोग भी बाहर निकलने लगे हैं। अपनी ज़मीन उतनी है नहीं, अगर है तो वही कभी मौसम का कहर, तो कहीं आवारा पशुओं व जानवरों द्वारा फसलों की बर्बादी के चलते बाहर काम करने को मजबूर हैं। सरकार और प्रशासन की योजनाएं आधे से ज्यादा तो मेरे ख्याल से उन लोगों तक पहुंच ही नहीं पाती जिन्हें उनकी जरूरत है। आवश्यक है कि आम आदमी जागे, अपने अधिकारों के प्रति। प्रशासन निगरानी रखे कि क्या आम लोगों को सरकारी योजनाओं का फायदा मिल रहा है या नहीं। कोई शिकायत करना चाहता है तो पूरी तरह सुना जाए और उसका निवारण किया जाए।

बंजर होती जमीन

बंजर होती जमीन

सरकार विभागों व प्रशासन पर कड़े नियम लागू करे कि हर किसान, हर आम आदमी को उसका हक मिले। गांव से शहरों और शहरों से अन्य राज्यों या देश-विदेशों की ओर रूख करने वाले अपनी जन्मभूमि व अपने देश का गौरव बढ़ाए। विदेशों या बड़े शहरों में जाने से बड़प्पन नहीं है। मुश्किलें और बुराई भले ही रास्ता रोकेंगी लेकिन अगर अच्छे भी बूरे ही बन गए तो अच्छे और बूरे में फर्क क्या रहेगा? वैसे ही सब शहरों, देशों व विदेशों की ओर रूख करेंगे तो वो गांवों के हरे-भरे खेत, माटी की खुशबू कहां होगी?

लौटना तो वतन ही होगा क्योंकि अपनी भूमि अपनी ही होती है वो चाहे गांव की हो या फिर देश के किसी भी कोने की। वक्त रहते नहीं समझे तो बाद में पछतावे के इलावा हमारे पास कुछ नहीं रहेगा। क्योंकि हम जैसा बोएंगे, काटेंगे भी तो वो ही। सभी तो सरकारी नौकरी में नहीं लगेंगे, सभी विदेशों में बेहतरीन पदों पर नहीं पहुंचेंगे क्योंकि सबकी अपनी हदें हैं। उडऩा जरूरी है लेकिन अपने पंखों के हौंसलों को देखकर उड़ान भरने में ही भलाई है, किसी की देखा-देखी करके नहीं। आजकल सब एक-दूसरे की भागम-भाग में लगे हैं। अपनी मेहनत, अपनी प्रतिभा सही जगह इस्तेमाल करने की बजाए दूसरों की देखा-देखी में जो है उसे ही खत्म करने पर तूल दे रहे हैं। हमें संभलना होगा और समझना होगा कि हम जहां है वहां होना भी किसी फक्र से कम नहीं। सोचने का विषय है और वो भी गंभीरता से।

खंडहर होते घर

खंडहर होते घर

कमजोर होती नींव एक दिन ढहा देगी महल

अगर हम घर की नींव में सुराग करके घर को महल बनाकर ऊंचा उठाते रहे तो वो कमजोर नींव एक दिन ढह कर पूरा महल गिराकर माटी कर देगी। जी हां, अगर हर आदमी व किसान शहरों की ओर पलायन करने लगे और शहरों के बड़े राज्यों की ओर ऐसे देश के लोग विदेशों की ओर तो खात्मा सबका निश्चित है। सरकार का सतर्क होना और प्रशासन का जागना अतिआवश्यक है और हमारा इस बात को समझना। कहने का तात्पर्य यह है कि सरकार को ओर ज्यादा बेहतरीन योजनाएं बनाने होंगी और उन योजनाओं को गांव के कोने-कोने तक हर गरीब तक पहुंचाने की चाहे वो कृषि स्तर, शिक्षा स्तर, या  अस्पताल हों सभी मूलभूत सुविधाएं सब तक पहुंचानी चाहिए और जो पहुंच रही हैं हमें समझना होगा कि ये सब हमारे लिए हैं और हमें उनका लाभ अपने घर-द्वार रहकर उठाना चाहिए।

आज हमारे गांव के लोगों को शहरों में चैन की जिदंगी बसर होती नजर आती है लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। जीवन में काम के बिना गुजारा ना घर में होगा, न बाहर। वैसे ही हमारे शहर के लोग अन्य राज्य की ओर रूख करते हैं। हिमाचल के लोग पंजाब की ओर बेहतरीन अवसर तलाशने  पहुंचते हैं तो वहीं पंजाब के लोग गुजरात, दिल्ली व अन्य राज्यों की ओर चाहे वे सरकारी कार्य से या फिर निजी कार्य की तलाश में अन्य देशों की ओर पलायन करते हैं। भूटान, बांगलादेश व नेपाल आदि तो वहीं देश से विदेश की ओर हमारे होनहार जाना चाहते हैं। वजह, सभी को यही लगता है कि उसकी कमाई बाहर ज्यादा हो सकती है और मूलभूत सुविधाएं भी अपने देश से ज्यादा बेहतर बाहर विदेशों में ज्यादा है। हमारे डॉक्टर, शिक्षक, वैज्ञानिक, इंजीनियर व अन्य बहुत से प्रतिभाशाली युवा बाहर का रूख कर रहे हैं। इसके लिए आखिर जिम्मेवार कौन है सरकार, प्रशासन या फिर हम।

सरकार निभाए दायित्व, प्रशासन पूरी निष्ठा से पूरा करे कर्तव्य और आम आदमी जाने अपने अधिका

आम आदमी जाने अपने अधिकार

आम आदमी जाने अपने अधिकार

सरकार: सरकार का यह दायित्व है कि हमारे देश के हर व्यक्ति को उसकी प्रतिभा ओर योगयता के मुताबिक काम, रोजगार, अन्य सुविधाएं और मेहनताना मिल सके। उसकी बेहतरीन ढंग से मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके। आवश्यक है कि सरकार बेहतरीन योजनाएं बनाएं जो एक किसान-बागवान, मजदूर से लेकर हर पढ़े-लिखे नौजवान की तरक्की और खुशहाली के लिए हो। प्रशासन पर कड़ी निगरानी रखे कि प्रशासन द्वारा किस प्रकार योजनाओं का लाभ आम आदमी तक पहुंच पा रहा है। कितनों को फायदा मिल पा रहा है। कितने पढ़े लिखे होनहार विदेशों के बजाय अपने देश में काम करने का उत्साह दिखा रहे हैं।  किसान की पैदावार कम होने या  प्राकृतिक आपदाओं के आने पर उन्हें मुआवाजा प्रशासन द्वारा जरूरतमंद और सही लोगों तक पहुंचाया जा रहा है या नहीं। यह देखना आवश्यक है क्योंकि बहुत से जगहों में फायदा उन लोगों को मिल ही नहीं पाता जिसके वो हकदार होते हैं। किसानों को प्राकृतिक आपदाओं के समय मुआवाजा इतना मिल सके हर किसान अपनी रोजी रोटी बेहतरीन ढंग से चला सके ताकि कोई किसान दुखी होकर या कर्ज में डुबकर आत्महत्या का प्रयास ना करे। अगर खेती व फसलों से पर्याप्त आमदनी हो जाए तो हो सकता है कि गांव से शहरों की  ओर पलायन कम हो जाएगा। जैविक खेती की मांग तभी पूरी हो सकती है अगर किसान खुशहाल हों। कृषि विश्वविद्यालयों में रिसर्च का कार्य हो जिससे मांग के मुताबिक पर्याप्त उत्पादन खेती जितनी भूमि हो जाए। काम तो ईमानदारी से सरकार चलाने वाले नेताओं को ही करना होगा क्योंकि जनता के विश्वास पर ही वो जनता के हितों की रक्षा के लिए चुने गये हैं। जो शायद मेरे ख्याल से इतना आसान नहीं होगा। मेरा अपना विचार है कि अगर हर नेता ईमानदार, निष्ठावान, नेकदिल और अपने कर्तव्य के प्रति सजग हो तो हमारे देश में कोई इतना गरीब ना हो कि उसे दो वक्त की रोटी के लिए तडफ़ना पड़े, कर्ज में डूबे किसान को आत्महत्या करनी पड़ी और मजबूरन अपने देश में बेहतरीन अवसर न मिलने की वजह से विदेशों की और पलायन करना पड़े। खैर फिलहाल तो अगर देश  को आने वाले संकट से बचाना है तो सरकार को सतर्क तो होना ही होगा।
प्रशासन: प्रशासन का कर्तव्य तो सबसे अहम है प्रत्येक व्यक्ति तक सरकार की योजनाओं का लाभ पहुंचे। देश के बड़े से लेकर छोटे शहर, गांव और दूर-दराज के इलाके के हर गरीब तक सरकारी योजनाओं का फायदा पहुंचे। ताकि जरूरतमंद को उसके लिए बनाई योजनाओं का लाभ मिल सके, वे अपना घर-द्वार छोडऩे के लिए मजबूर न हो। पढ़े-लिखे होनहारों को विदेशों में रूख करने की बजाय अपने देश में इतनी सहुलियतें, इतना काम मिलें कि कोई काम की तलाश में बाहर न भटके। बल्कि अपने ही देश में अपने हुनर, अपनी काबालियत दिखा सके। उन्हें उनकी काबालियत के मुताबिक हर लाभ मिल सके क्योंकि यह प्रशासन का कर्तव्य है। प्रशासन बनाया ही इसलिए गया है कि आम जन के लिए काम करे अपने या अपनों के लिए नहीं। आजकल तो हर जगह प्रशासन सुस्त होता दिखाई दे रहा है। इंसानियत नाम की तो कहीं कोई चीज नजर नहीं आती। प्रशासन का काम कहीं तो इतना खराब है कि बेचारा आम आदमी अपने अधिकार का लाभ लेने प्रशासन के इतने चक्कर काटकर थक जाता है कि वो अपने अधिकार के लिए बनी योजनाओं से दुखी हो जाता है। उसे समझ ही नहीं आता कि योजनाएं उसके लिए बनी है कि वो योजनाओं के लाभ के लिए बना है। प्रशासन अपनी जिम्मेवारी अगर बखुबी निभाएं तो शायद हर आदमी तक बनी योजनाएं पहुंचना कोई मुश्किल बात नहीं। पर प्रशासन हर जगह ईमानदार और अपने कर्तव्य का बखूबी निर्वाह करने वाला नहीं। यह हमारे देश के प्रशासन की विडंबना है। प्रशासन का जागना आवश्यक है ताकि देश के हर गरीब अपन हक पा सके।
नागरिक जाने-समझे अपने अधिकार: हम अगर देश और प्रशासन को कोसते रहेंगे तो शायद ये भी गलत होगा, जब तक हम खुद अपने अधिकारों के प्रति सजग नहीं होते। सरकार द्वारा आम आदमी के लिए बहुत सी योजनाएं बनाई जाती हैं और उन योजनाओं पर करोड़ों के हिसाब से खर्चा भी होता है। प्रशासन की इस बात के लिए जिम्मेवारी होती है कि हर व्यक्ति को योजनाओं का लाभ मिल सके और चाहे दूर-दराज में रहने वाला व्यक्ति ही क्यों ना हो। लेकिन जब तक हम खुद अपने अधिकारों के प्रति सजग नहीं होंगे तो फायदा किस तरह मिल पाएगा। सभी को जानना होगा कि सरकार हमारे लिए क्या कर रही है प्रशासन द्वारा हमें किस प्रकार की कौन सी योजनाओं का लाभ किस प्रकार मिल सकता है।  हर व्यक्ति को जागना होगा। जरूरी है इसके लिए शिक्षा का स्तर बढऩा। सरकार की योजनाएं आम आदमी के लिए हर किसान-बागवान, मजदूर और नौजवान के लिए अलग-अलग हैं। आप उनका फायदा तभी उठा सकते हैं जब आप अपने अधिकारों को जानते होंगे। सरकार आप ने चुनी है अपने लिए ताकि आपके लिए बेहतरीन सुख-सुविधाएं मुहैया हो सके। सरकार और प्रशासन द्वारा बनाई इन योजनाओं का लाभ आपको उठाना है और अपने आसपास के लोगों को भी इन योजनाओं, सुविधाओं केे बारे में बताना और उन्हें जागरूक करना हर आदमी के कर्तव्य है। अपने अधिकार जानें, सरकार की बनाई योजनाएं समझे उनका लाभ उठाएं। बाहर भागने की बजाए अपने-अपने घर, अपना गांव, अपना देश व प्रदेश को सामर्थय बनाएं।

    किसानकिसान
  • हमारी युवा प्रतिभाएं, हमारी शान का विदेशों की ओर कूच दुःख का विषय

सोचने का विषय है कि किसान का खेती करना आवश्यक है क्योंकि अगर किसान खेती नहीं करेगा तो देश में अन्न कहां से होगा। पढ़े-लिखे डॉक्टर, शिक्षक, वैज्ञानिक, खिलाड़ी और इंजीनीयिर अगर बाहरी रूख करेंगे तो हमारे देश में प्रतिभाशाली, होनहार और अनुभवी लोगों की कमी हो जाएगी। हमारा देश तरक्की कैसे करेगा। हमारी प्रतिभाएं, हमारी शान तो विदेशों की ओर कूच कर रही हैं। दुख की बात है हमें वक्त रहते संभलना होगा। हमारा किसान हमारा नौजवान अपने देश की अपने राष्ट्र को उन्नति के मार्ग पर ले जाए उसके लिए सरकार को ओर भी ठोस नीति, अहम कदम और बेहतरीन योजनाएं बनानी होंगी और सिरे भी चढ़ानी होंगी। उजड़ होते खेत, बंजर होती जमीन, आपदाओं से जूझते किसान अगर निराश, मायूस और आत्महत्या करने के लिए मजबूर होते रहे तो देश की तरक्की कैसे संभव है?

जय हिन्द, जय भारत।

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One Response

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  1. Neelam
    Mar 30, 2017 - 02:32 PM

    पहले तो आवारा पशुओं को रोकना होगा जब तक यह नहीं रुकेंगे किसान कुछ भी नहीं कर पाएगा जो थोड़े बहुत एक किसान थे जो काम कर रहे थे वह भी उनके कहर से अब खेती करना बंद कर दिए हैं लोग जो है वह अब खेती से भाग रहे हैं क्योंकि उनकी मेहनत का फल उनको मिल नहीं रहा है इसके लिए सरकार को कांटेदार तार या उनकी रोक के लिए प्रबंध करना होगा बहुत सारे कारण हैं जो गांव के लोग शहर की ओर आकर्षित हो रहे हैं लेकिन जो गांव में लोग हैं वह भी दुखी हो रहे हैं कि आज किसान जो है उसके खेत सारे बंजर हो रहे हैं और कहीं से भी कोई सुविधा नहीं है उन को या फिर है तो उन तक पहुंच नहीं पाती है उनको पता नहीं सबसे पहले अगर पशुओं की रोकथाम की जाए तार लगा दी जाए तो इस से बहुत फर्क पड़ेगा किसान जो वो खेती करने लगेगा ज्यादा नहीं तो कम से कम अपना गुजारे लायक ही हो जाए किसान खेती करना चाहते हैं लेकिन पशुओं के प्रकोप से वह सब छोड़ रहे हैंऔर हम जो छोटे किसान हैं जो खेती पर ही आश्रित नहीं है पर खेती करना चाहते हैं जब तक यह आवारा पशु नहीं रोके जाएंगे सारे किसान जो हमको खेती करना छोड़ देंगे छोड़ देंगे उन्होंने छोड़ ही दिया है सभी किसान यही उम्मीद करते हैं कि सरकार उनके लिए सपोर्ट करें कुछ ज्यादा नहीं तो वह कांटेदार तार लगवा दें उसके बाद वह अपना खेती-बाड़ी कर सके और जंगली जंगली जानवरों से बच सकें धन्यवाद

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