शिमला हुआ शर्मसार… मासूम “युग” को जिन्दा मार आए…फिर हमदर्द बन करते रहे तलाश

  • इस तरह हुआ युग अपहरण..

युग का अपहरण 14 जून 2014 शाम समय करीब साढ़े सात बजे हुआ। युग को अपने रिहायशी सेट द्वारका गढ़ बिल्डिंग की चौथी मंजिल के गेट पर अंतिम बार खड़ा हुआ देखा गया था। युग अक्सर इस भवन के टॉप फ्लोर में अपने हम उम्र दोस्त के पास भी खेलने जाता रहता था। इसी मंजिल में चंद्र शर्मा रहता था। युग के दोस्त के घर के दरवाजे के साथ आरोपी चंद्र शर्मा के घर का दरवाजा है। युग की दो बहनें टीशा व भूमि भी आरोपी चंद्र शर्मा के घर इसकी मां अंजना शर्मा से रोजाना टयूशन पढ़ने जाती थीं। घटना के दिन चंद्र शर्मा घटनास्थल के आसपास मौजूद था। सीआईडी ने चन्द्र व अन्य आरोपियों की मोबाइल जांच में पाया कि रात के समय करीब नौ से साढ़े नौ बजे चन्द्र की लोकेशन उसके दोस्त तेजेंद्र पाल सिंह और विक्रांत बख्शी के साथ घटनास्थल से बाहर संजौली की तरफ नवबहार की ओर पाई गई।

  • तीनों आरोपी अच्छे परिवार से…फिर भी निकले पैसों के लालची
तीनों आरोपी अच्छे परिवार से...फिर भी निकले पैसों के लालची

तीनों आरोपी अच्छे परिवार से…फिर भी निकले पैसों के लालची

चंद्र शर्मा जहां राम बाजार के कारोबारी का बेटा है वहीं युग की हत्या का दूसरा आरोपी तजिंद्र पाल सिंह भी शिमला में ही कारोबारी है। इसकी भी रामबाजार में दुकान है। तीसरा आरोपी विक्रांत बख्शी छोटा शिमला का रहने वाला है। विक्रांत बख्शी इन दिनों चंडीगढ़ में पढ़ाई कर रहा था। विक्रांत बख्शी को पुलिस ने रविवार रात चंडीगढ़ से गिरफ्तार किया जबकि चंद्र और तजिंद्र को सोमवार दोपहर बाद रामबाजार से गिरफ्तार किया गया। तीनों आरोपी अच्छे परिवार से होते हुए भी पैसों के इतने लालची निकले कि चार साल के मासूम युग को जिन्दा मौत के मुंह में देने से भी उनके हाथ नहीं कांपे।

  • शिमला पुलिस अपहरणकर्ता के साथ ही खोजती रही युग को

सबसे ताज्जुब की बात तो ये रही कि मासूम युग हत्याकांड मामले में शिमला पुलिस कई महीनों तक अपहरणकर्ता को साथ लेकर युग को ढूढ़ती रही। युग की हत्या के आरोप में गिरफ्तार चंद्र शर्मा, युग के परिवार का पड़ोसी है। वह कानून की पढ़ाई कर रहा था। वह शुरू से ही इस केस में सबसे ज्यादा दिलचस्पी लेता दिखा और युग के परिजनों से पूरी तरह सहानुभूति जताते हुए उनके परिवार का विश्वासपात्र बन गया। चंद्र पड़ोसी और हमदर्द बनने के ढोंग के चलते गुप्ता परिवार की हर बात के बारे में पूरी जानकारी और हर बात में शामिल रहता। जिससे पुलिस और परिजन युग को अगवा करने वालों के खिलाफ हर योजना के बारे में पहले से जान लेता था, इसकी पूरी जानकारी मुख्य आरोपी को थी। चंद्र ने कई बार केस को भटकाने की पूरी कोशिश की। अपने दोनों साथियों के साथ वो नई साजिश रचता रहा। युग के रिश्तेदारों के घरों में पुलिस की दबिश दिलाकर जांच को भटकाने की भी बहुत कोशिश की। गुप्ता परिवार के रिश्तेदारों के बीच भी उसने आपसी फूट डलवा दी। चंद्र शर्मा ने घर वालों को खुद यह भरोसा दिला दिया कि वह युग को खोजने में पूरी तरह उनके साथ है। वह हर वक्त युग के पिता के साथ रहने लगा। युग के बारे में जानकारी देने में वह पुलिस का सहयोग करता। वहीं पुलिस भी मानने लगी कि यह गुप्ता परिवार के लिए वह काफी चिंतित है।

  • …. तो परिजनों को हुआ शक

लेकिन हद तो तब हुई जब चंद्र शर्मा युग के पिता विनोद कुमार से उनके परेशानी भरे दौर में उनकी संपत्ति की जानकारी जुटाने में लग गया। उसके बार-बार संपत्ति के बारे में पूछे जाने पर परिजनों को उस पर शक हुआ। परिजनों के कहने पर ही विनोद गुप्ता को चंद्र शर्मा पर संदेह हो गया। लेकिन अफ़सोस! चंद्र शर्मा की सच्चाई पता लगने में इतना वक्त लग गया कि माँ-बाप से उनका लाल हमेशा-हमेशा के लिए खो गया। समय पर अगर चंद्र शर्मा का बेरहम चेहरा बेनकाब हो जाता तो शायद आज युग अपने परिवार के साथ होता।

  • आरोपी युग की हत्या करने के बाद भी करते रहे फिरौती की मांग

आरोपियों ने युग को छुड़वाने के लिए परिजनों से चार बार फिरौती मांगी। घर वाले फिरौती देने को तैयार थे। घर में क्या-क्या चल रहा है

आरोपी युग की हत्या करने के बाद भी करते रहे फिरौती की मांग

आरोपी युग की हत्या करने के बाद भी करते रहे फिरौती की मांग

इसकी पल-पल की खबर अपहरणकर्ताओं को बराबर मिल रही थी। वहीं आरोपियों को युग को संभालने और उसे छुपाने की मुश्किल थी। इसी मुश्किल के चलते दरिन्दों ने 22 जून को ही युग को मार डाला। लेकिन उसके बावजूद भी वे फिरौती मांगने की फिराक में लगे रहे।

  • चौथी बार फिरौती का पत्र आने के बाद सीआईडी के पास पहुंचा मामला

चौथी बार फिर फिरौती का पत्र भेजा गया। इस बार धनराशि को दस करोड़ से घटाकर चार करोड़ कर दिया। दूसरी, तीसरी और चौथी बार भेजे गए फिरौती के पत्र चौड़ा मैदान पोस्ट ऑफिस की मुहर लगे थे। चार बार फिरौती का पत्र भेजने के बावजूद अपहरणकर्ताओं ने परिजनों से कोई संपर्क नहीं किया। चौथी बार फिरौती का पत्र आने के बाद मामला सीआईडी के पास चला गया।

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