51 शाक्तिपीठों में श्री ज्वालाजी का महत्व कालांतर से सर्वाधिक

“माँ ज्वालाजी” का शयनकक्ष
51 शाक्तिपीठों में श्री ज्वालाजी का महत्व कालांतर से सर्वाधिक रहा है। मंदिर निर्माण की घटना के संबंध में मान्यता है कि जब माता ने ज्वाला रूप में जन्म लिया तो एक गवाले को सबसे पहले एक घने जंगल गौएं चराते हुए इस ज्योति के दर्शन हुए। यह जमाना राजा भूमिचंद्र का था। जैसे ही उसे इस घटना का पता चला तो उसी समय यहां आया और उसने एक मंदिर का निर्माण करवाया। उसके बाद इसकी महत्ता बढ़ती गई और मंदिर का परिसर का विस्तार भी होता रहा। यह भी धारणा है कि श्री ज्वालामुखी में पांडव भी आए थे जिन्होंने इस मंदिर का जिर्णोद्धार किया। यह बात कांगड़ा में प्रचलित इस लोक गीत से स्पष्ट होती है: पंजा-पंजा पंडवा मैया तेरा भवन बणाया, अर्जुन चॉर झुलाया।
मंदिर में प्रज्जवलित ज्योतियों को बादशाह अकबर ने कई बार बुझाने का प्रयास किया लेकिन वह सफल न हुआ। उसने इस पर पानी की नहर डलवाई और बाद में लोह के मोटे तवों से ज्योतियों को ढांप लिया, लेकिन ये ज्योतियां उन्हें फाड़ कर निकल गई। माता की शक्ति के आगे नतमस्तक होकर उसने अंत में माता के नाम एक सोने का छतर मंदिर में चढ़ाया लेकिन वह चढ़ाते-चढ़ाते ऐसी अदभूत धातु में परिवर्तित हो गया जिसका अभी तक पहचाना जाना रहस्य बना है। मंदिर मंडप शैली में निर्मित है और ऊपर सोने का पालिश चढ़ा है। इसे महाराज रणजीत सिंह ने अपने शासनकाल में चढ़वाया था। उनके पौत्र कुवंर नौनिहाल सिंह ने मंदिर के प्रमुख दरवाजों को चांदी के पतरों से बनवाया जो आज भी विद्यमान है।
ज्वाला चमत्कारी रूप से ही निकलती है ना कि प्राकृतिक रूप से, नहीं चमत्कारिक है माँ ज्वाला :
पृथ्वी के गर्भ से इस तरह की ज्वाला निकलना वैसे कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि पृथ्वी की अंदरूनी हलचल के कारण पूरी दुनिया में कहीं ज्वाला, कहीं गरम पानी निकलता रहता है। कहीं-कहीं तो बाकायदा पावर हाऊस भी बनाए गए हैं, जिनसे बिजली उत्पादित की जाती है। लेकिन यहां पर ज्वाला प्राकर्तिक न होकर चमत्कारिक है क्योंकि अंग्रेजी काल में अंग्रेजों ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया कि जमीन के अन्दर से निकलती ‘ऊर्जा’ का इस्तेमाल किया जाए। लेकिन लाख कोशिश करने पर भी वे इस ‘ऊर्जा’ को नहीं ढूंढ पाए। वही अकबर लाख कोशिशों के बाद भी इसे बुझा न पाए। यह दोनों बाते यह सिद्ध करती है की यहां ज्वाला चमत्कारी रूप से ही निकलती है ना कि प्राकृतिक रूप से, नहीं तो आज यहां मंदिर की जगह मशीनें लगी होतीं और बिजली का उत्पादन होता।
ज्वालामुखी मंदिर परिसर काफी विशाल

ज्वालामुखी मंदिर परिसर काफी विशाल
श्री ज्वालामुखी मंदिर परिसर काफी विशाल है। परिसर के प्रमुख देवालयों में सेजा भवन, वीर कुंड, गोरख डिब्बिया, श्री राधा कृष्ण मंदिर, शिव शक्ति स्थल, काली भैरव मंदिर, लाल शिवालय, सिद्धि नागार्जुन, अत्बिकेश्वर महादेव, श्री संतोषी माता मंदिर शामिल है। इनमें से कुछ मंदिर से ऊपर पहाड़ी पर चली गई सीढ़ियों के किनारे स्थापित हैं। इसके अतिरिक्त एक किलोमीटर ऊपर पहाड़ी की गोदी में टेढ़ा मंदिर स्थित है जहां श्री राम और सीता जी के दर्शन किए जा सकते हैं। श्री ज्वालामुखी मंदिर से पार श्री तारादेवी का प्राचीन मंदिर भी दर्शनीय है।
अगले जन्म में सती ने हिमवान राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिव को पुन: पति रूप में प्राप्त किया।
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