गोविन्द सागर जलाश्य में मत्स्य विक्रय के लिए ई-टेंडर प्रक्रिया अपनाई जाएगीः वीरेन्द्र कंवर

राज्य के लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाने व मछली पालन को बढ़ावा देने पर दिया जा रहा है बल

फ़ीचर

  • हिमाचल प्रदेश में तेजी से विकसित हो रहा है मत्स्य उद्योग
  • राज्य में विद्यमान सभी मात्स्यिकी जल स्त्रोतों से 19646.87 लाख रुपये मूल्य की 21793.53 टन मछली का किया गया उत्पादन
  • विभागीय ट्राऊट फार्मों व निजी क्षेत्र से 491.34 मीट्रिक टन खाने योग्य ट्राऊट मछली का किया गया उत्पादन
  • मोबाईल फिश मार्किट’ नामक एक नई योजना की गई है शुरू
  • वर्तमान राज्य सरकार ने मत्स्य पाल विभाग की विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत 3054 व्यक्तियों को रोजगार किया गया है प्रदान

 

राज्य सरकार के सतत् प्रयासों से पिछले कुछ वर्षों के दौरान हिमाचल प्रदेश में मत्स्य उद्योग तेजी के साथ उभर रहा है। यह क्षेत्र न केवल मछुआरों के लिये आजीविका का साधन बना है, बल्कि राज्य को अतिरिक्त राजस्व अर्जित करने में भी मददगार हो रहा है। वर्तमान सरकार द्वारा संचालित विभिन्न योजनाएं एवं प्रयास मछली उत्पादन में बढ़ौतरी के साथ-साथ स्वरोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध करवाने में भी मददगार साबित हो रहे हैं।

विगत तीन वर्षों के दौरान राज्य में विद्यमान सभी मात्स्यिकी जल स्त्रोतों से 19646.87 लाख रुपये मूल्य की 21793.53 टन मछली का उत्पादन किया गया। विभागीय ट्राऊट फार्मों व निजी क्षेत्र से 491.34 मीट्रिक टन खाने योग्य ट्राऊट मछली का उत्पादन किया गया है। प्रदेश में रेनबो ट्राऊट के सफलतापूर्वक प्रजनन के परिणामस्वरूप न केवल कुल्लू जिला अपितु शिमला, मण्डी, कांगडा़, किन्नौर व चम्बा जिलों में भी निजी क्षेत्र में 362 ट्राऊट इकाईयों की स्थापना की गई है।

नील क्रान्ति कार्यक्रम के अन्तर्गत कॉर्प कार्प प्रजाति के हंगेरियन स्टेन, रोपसा स्केल तथा फैल्सोसोमोगी मिरर कार्प और पंगेशियस प्रजातियों को लाकर प्रदेश के विभिन्न जलाश्यों में संग्रहित किया गया है।

राज्य के लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाने तथा मछली पालन को बढ़ावा देने पर बल दिया जा रहा है। मत्स्य कृषि विकास अभिकरण कार्यक्रम के अनतर्गत 30.46 हैक्टेयर नए क्षेत्रों को जलचर पालन के अन्तर्गत लाया गया है और 29.50 हैक्टेयर पुराने तालाबों का सुधार किया गया है।

मोबाईल फिश मार्किट’ नामक एक नई योजना प्रारम्भ की गई है जिसके अन्तर्गत उपभोक्ताओं को ताजी मछली प्रदान करने के लिये चार मोबाईल फिश मार्किट वाहन खरीदे गए हैं। ऊना जिले के गगरेट स्थित दयोली फार्म तथा चम्बा जिले के सुल्तानपुर स्थित कार्प फार्म में 84.60 लाख रुपये की लागत से दो चारा कारखानों की स्थापना की जा रही है। राज्य के जनजातीय क्षेत्रों में मात्स्यिकी सम्बन्धी गतिविधियों को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से भरमौर क्षेत्र के थला में चार करोड़ रुपये की लागत से ट्राउट फार्म तथा चम्बा जिले में 40 लाख रुपये से अधिक लागत से एक्वेरियम हाउस कम अजायबघर स्थापित किये जा रहे हैं।

सोलन जिले के नालागढ़ और ऊना जिले के दयोली में 8 करोड़ रुपये खर्च कर कार्प फार्मों का आधुनिकीकरण, स्तरोन्यन एवं विस्तार कार्य किया जा रहा है। इन फार्मों को कार्यशील बनाया गया हैं तथा पिछले वर्ष से प्रजनन कार्य आरम्भ किया जा चुका है।

प्रदेश में एनएमपीएस के अनतर्गत पांच करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता से 80 हैक्टेयर नया जलक्षेत्र (मत्स्य तालाब) तथा 20 हैक्टेयर नर्सरी तालाब के रूप में विकास किया गया है। सोलन जिले के नालागढ के रत्योड़ और ऊना जिला के अंब के कटौहड़कलां में दो उक्वाकल्चर मत्स्य पालक सामितियां पंजीकृत करवाई गई हैं। इन समितियों का मुख्य उद्देश्य इन तालाबों से उत्पादति मछली का दोहन करने के उपरान्त रख-रखाव व विपणन करना है। मछलियों के रख-रखाव एवं बर्फ का कारखान, प्रशीतन मोबाईल वैन, इंसुलेटिड डिब्बे इत्यादि जैसी मूलभूत सुविधाएं विकसित करने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा प्रत्येक सहकारी सभा को 46 लाख रुपये की वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाई जा रही है।

वर्तमान राज्य सरकार ने मत्स्य पाल विभाग की विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत 3054 व्यक्तियों को रोजगार प्रदान किया गया है। राज्य में मछली पालकों की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने तथा उन्हें मछली पालन में बृद्धि करने में मदद करने के उद्देश्य से अनेक कल्याणकारी योजनाएं कार्यान्वित कर रही है। प्रदेश में मत्स्य आखेट की गतिविधियों में कार्यरत 11,251 माहीगीरों को निःशुल्क जीवन सुरक्षा निधि के अन्तर्गत लाया गया है। इस योजना के के तहत उनके आश्रितों को मत्स्य आखेट के दौरान मृत्यु होने अथवा पूर्ण अपंगता की स्थिति में दो लाख रुपये तथा आंशिक अपंगता की दशा में एक लाख रुपये प्रदान करने का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त, बीमारी की स्थति में ईलाज के लिये 10 हजार रुपये की सहायता राशि प्रदान की जा रही है।

इस अवधि के दौरान 4160 सक्रिय जलाशय माहीगीरों को बन्द आखेट मत्स्य सीजन के दौरान 83.39 लाख रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की गई। जलाशयों में कार्यरत माहीगीरों को प्राकृतिक आपदाओं के कारण मत्स्य आखेट उपकरणों को होने वाले नुकसान की भरपाई हेतु सभी मछुआरों को ‘जोखिम निधि योजना’ के अन्तर्गत लाया गया है। इसके अतिरिक्त, 5023 मछुआरों को राज्य के जलाशयों में पूरी अवधि आजीविका प्रदान की गई। इन मछुआरों में गोबिन्द सागर में 2426, पौंग बांध में 2479, चमेरा में 83 जबकि रणजीत सागर जलाशय में 35 मछुआरों ने पूरी अवधि मत्स्य क्षेत्र में कारोबार किया।

राज्य सरकार जलाशयों के निर्माण एवं मुरम्मत के लिये पांच हजार रुपये तक का अनुदान भी प्रदान कर रही है। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के परिवारों को कुल परियोजना लागत का 50 प्रतिशत अनुदान जबकि गरीबी की रेखा से नीचे रह रहे परिवारों को 33 प्रतिशत अनुदान प्रदान किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त, राज्य सरकार उद्यमियों को प्रशिक्षण प्रदान करके उन्हें तकनीकी जानकारी उपलब्ध करवा रही है। मछली उत्पादकों को वर्तमान जल क्षेत्रों में सुधार लाने के लिये जलाशयों की खुदाई के लिये भी वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है। केन्द्रीय प्रायोजित योजना के अन्तर्गत एक हैक्टेयर परिमाप के नये जलाशयों के निर्माण के लिये अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के युवाओं को एक लाख रुपये जबकि सामान्य श्रेणी के व्यक्तियों को 80 हजार रुपये की वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाई जा रही है। इसी प्रकार, एक हैक्टेयर के जलाशयों के पुनरूद्धार अथवा मुरम्मत के लिये अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के युवाओं को 18750 रुपये जबकि सामान्य श्रेणी के व्यक्तियों को 15 हजार रुपये प्रदान किये जा रहे हैं।

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