सेब बागीचों में ग्रीन एफिड, वूली एफिड एवं जड़ छेदक कीट का प्रकोप…यूँ करें बचाव : बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एस.पी. भारद्वाज

  • मैटासिस्टाक्स 25 ई.सी या रोगर 30 ई.सी 200 मि.लि. प्रति 200 लिटर पानी में घोलकर छिडक़ें
  • वूली एफिड का छिडक़ाव करते समय जोरदार धार से करें प्रहार, नहीं बढ़ पाएगी जीवसंख्या
बागवानी विशेषज्ञ डॉ. भारद्वाज

बागवानी विशेषज्ञ डॉ. भारद्वाज

इस वर्ष सर्दियों में ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में हिमपात बहुत कम मात्रा में प्राप्त हुआ और वर्षाजल की उपलब्धता भी कम आंकी गई। इसके पश्चात वर्षा भी अत्यंत कम मात्रा में और लम्बे अन्तराल के पश्चात प्राप्त हुई। फलस्वरूप फलों के आकार में समुचित वृद्धि नहीं हो पाई और सेब बागीचों में पानी की कमी के लक्षण भी स्पष्ट रूप से नज़र आने लगे। थोड़े अन्तराल पर कुछ वर्षाजल की प्राप्ति ही पौधों को जल की कमी को कुछ सीमा तक बचा पाने में सार्थक सिद्ध हुई है।

जल की इस अपार कमी के चलते सेब बागीचों में ऐसे कुछ कीट जो नगण्य मात्र हुआ करते थे, कि जीवसंख्या बढक़र पौधों की कोमल पत्तियों पर आक्रमण करते देखी गई। इन कीड़ों में ग्रीन एफिड प्रमुख रूप से, वूली एफिड एवं जड़ छेदक कीट का प्रकोप भी सामान्य से अधिक संख्या में सेब उत्पादन क्षेत्रों में पाया गया। कई बागीचों में जिनमें सूर्य की रोशनी का प्रभाव अधिक था, में पत्तियों के पीले होकर गिरने की समस्या भी देखने में मिली।

जिन बागीचों में ग्रीन एफिड व वूली एफिड का प्रकोप 5 प्रतिशत से अधिक देखा गया है उनमें मैटासिस्टाक्स 25 ई.सी या रोगर 30 ई.सी 200 मि.लि. प्रति 200 लिटर पानी में घोलकर छिडक़ें। इससे इन कीटों को नियन्त्रण करने में सफलता मिलती है। जहां इन कीटों का प्रकोप कम दिखाई दे वहां ग्रसित भागों को काटकर किसी लिफाफे में इकट्ठा करके नष्ट कर दें। वूली एफिड का छिडक़ाव करते समय जोरदार धार से प्रहार करें तो यह नष्ट हो जाएगा और इसकी जीवसंख्या अधिक नहीं बढ़ पाएगी।

  • इस समय सेब बागीचों में रैड माईट की जनसंख्या का निरीक्षण करना आवश्यक
  • प्रति पत्ती 6-8 माईट की जीवसंख्या दिखाई देने पर बागीचे में करें माईटनाशक का छिडक़ाव

सेब बागीचों में इस समय रैड माईट की जनसंख्या का निरीक्षण करना आवश्यक है। पौधों की शाखाओं के मध्य भाग में प्रत्येक दिशा से एक-एक पत्ती का चयन करें और कम से कम

ग्रीन ऐफ़िड (तेले) का प्रकोप

ग्रीन ऐफ़िड (तेले) का प्रकोप

25 पौधों से पत्तियों के नमूने एकत्र करके जांचे कि माईट की जीवसंख्या प्रति पत्ती कितनी है। यदि प्रति पत्ती 6-8 माईट की जीवसंख्या या इससे अधिक दिखाई दे तो बागीचे में माईटनाशक छिडक़ने की आवश्यकता होगी और यदि रैड माईट की जीवसंख्या इससे कम हो तो किसी माईटनाशक को न छिडक़े।

माईट नाशकों में मेडन 100 मि.लिटर प्रति 200 लिटर पानी में या ओवेरान 60 मि.लिटर या मैजिस्टर 30 मि.लिटर छिडक़ें। प्रारंभिक अवस्था में माईटक द्वारा ग्रसित पत्तियों में रंग परिवर्तन नहीं दिखाई देता और जब जीवसंख्या इससे अधिक हो तो गहरा हरा रंग हल्का हरा बनकर परिवर्तित हो जाता है। पौधों को रंग परिवर्तन की अवस्था तक न पहुंचने दें। हरा रंग जो क्लोरोफिल के कारण होता है एक बार बदलने पर भोजन बनाने की क्षमता पर गहरा असर पड़ता है और फिर इसे सामान्य नहीं किया जा सकता। अत: पत्तियों के रंग पर सदैव विशेष ध्यान रखे।

  • वास्तविक स्थिति का आंकलन करने के पश्चात ही करें माईट नाशक का प्रयोग

यह भी देखा गया है कि बहुतया बागवान बिना माईट की जीवसंख्या का ध्यान किए बागीचों में माईटनाशकों का प्रयोग करते हैं जिसके कारण मित्र माईट जो रैड माईट को खाकर संतुलन बनाए रखते हैं नष्ट हो जाते हैं और फिर कीड़ों व माईट की जीवसंख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ती है और उसे रोक पाना काफी कठिन हो जाता है। इसलिए वास्तविक स्थिति का आंकलन करने के पश्चात ही माईट नाशक का प्रयोग करें।

  • मॉनसून के आगमन से करीब 10-15 दिन पहले फफूंदनाशक का प्रयोग सेब बागीचों में करना नितांत आवश्यक

मौसम विभाग के पूर्वानुमान के अनुसार इस वर्ष मॉनसून सामान्य रहने की संभावना है। यह ध्यान रखें कि मॉनसून के आगमन से लगभग 10-15 दिन पहले फफूंदनाशक का प्रयोग

जड़ छेदक

जड़ छेदक

वुली ऐफ़िड ग्रसित भाग

वुली ऐफ़िड ग्रसित भाग

सेब बागीचों में करना नितांत आवश्यक है। पिछले कई वर्षों से सेब बागीचों में मारसोनीना रोग या पूर्व पत्ती झडऩ रोग का प्रकोप निरन्तर बना हुआ है। इसके सफल नियंत्रण हेतु फफूंदनाशक का प्रयोग रोग के जीवाणु द्वारा फलों पौधों को ग्रसित करने से पूर्व करना आवश्यक है। यदि यह छिडक़ाव कर लिया जाए तो बागीचों में रोग का सफल नियंत्रण हो जाता है और बागीचे रोग के प्रकोप से बच जाते हैं। पत्तियों का लम्बे समय तक फल उतारने के पश्चात भी पौधों पर टिके रहना बहुत आवश्यक है अन्यथा बीमे कमजोर रहते हैं और अगले वर्ष कमजोर फूल निकलते हैं जो कमजोर फलों को पैदा करते हैं। इस रोग के कारण पत्तियां पौधे के तने के पास से सबसे पहले पीली होकर गिर जाती हैं और फल पौधों पर लटके रहते हैं। ऐसे फल अत्यंत कमजोर आकार तथा रंग भी हल्का होता है और बाजार में बहुत कम कीमत मिलती है।

  • तने के आसपास व मुख्य टहनियों में अवांछित विकास को हटा दें
  • सही समय और ढंग से की गई समर प्रूनिंग से फलों की गुणवत्ता

आजकल समर प्रूनिंग करते रहें जो भी कोमल नई टहनी सीधी आकाश की ओर या अवांछित दिशा में जाती दिखाई दे, उसे तुरन्त काट दें। पौधों के अन्दरूनी भाग विशेषकर तने के आसपास व मुख्य टहनियों में अवांछित विकास को हटा दें। जड़वों की भी न बढऩे दें। इस प्रक्रिया से न केवल पौधों के अन्दर के भाग में पर्याप्त प्रकाश उपलब्ध होगा। हवा का आदान-प्रदान भी सुचारू रूप से चलेगा अपितु फलों का साईज़ (आकार), और पर्याप्त रंग विकसित होगा। सर्दियों में किए जाने वाले कांट-छांट कार्य में भी कमी होगी और पौधों में स्वास्थ्य लाभ होगा। सही समय और ढंग से की गई समर प्रूनिंग से फलों की गुणवत्ता जिसमें आकार, रंग तथा स्वाद इत्यादि सम्मिलित हैं, में लगभग 20-25 प्रतिशत तक सुधार देखने में मिलता है। अत: समर प्रूनिंग को निरन्तर किये जाने वाले कार्य सूची में अवश्य शामिल करें।

वुली ऐफ़िड ग्रसित जड़ों पर बनी गाँठें

वुली ऐफ़िड ग्रसित जड़ों पर बनी गाँठें

  • विशेषज्ञों की सलाह लेकर ही करें रसायन का प्रयोग

यह भी सामान्यत: देखा गया है कि सेब के फल अधिक समय तक रखे नहीं जा सकते हैं। यह इस कारण है कि फलों में कैलशियम तत्व की भारी कमी हो गई है। इस समय चिलेटिड कैलशियम 33-50 ग्राम प्रति 200 लिटर का प्रयोग करें तथा इसकी दूसरी व तीसरी मात्रा 15 दिनों के अन्तराल के पश्चात तथा अन्तिम मात्रा 100 ग्राम फल तुड़ान से 15 दिन पहले प्रयोग करें। इससे फलों में स्वाद, भार, रंग में चमक आएगी। इन फलों को लम्बे समय तक भण्डारण किया जा सकेगा तथा इन्हें अच्छे दाम भी प्राप्त होने की संभावना है।

बिना कारण किसी भी रसायन का प्रयोग न करें और विशेषज्ञों की सलाह लेकर ही कार्य करें इससे पौधों के स्वास्थ्य में सुधार, कम लागत से गुणवत्ता फल उत्पादन हो पाएगा।

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