- हार्प सोसाइटी द्वारा लागू किया जा रहा नाबार्ड कार्यक्रम
- परियोजना का मुख्य उद्देश्य किसानों की आजीविका में सुधार करना व 2022 तक उनकी आय को दोगुना करना
- नाबार्ड द्वारा प्रायोजित इस जनजातीय विकास परियोजना को हार्प द्वारा लागू किया जा रहा है। यह परियोजना सात साल तक चलेगी।
- चयनित क्षेत्र के लगभग 400 एकड़ में किये जायेंगे सेब, अखरोट, चूली और नाशपाती के बगीचे स्थापित
- विश्वविद्यालय हमेशा से ही किसानों की उन्नति के लिए निरंतर प्रयासरत : कुलपति डा. एचसी शर्मा
शिमला : नौणी स्थित डॉ. वाईएस परमार औद्यानिकी व वानिकी विश्वविद्यालय द्वारा तैयार किए गए फलदार पौधे, विशेषकर सेब, हमेशा से ही राज्य के किसानों के बीच काफी लोकप्रिय रहे हैं और इससे किसानों की आय बढ़ाने में मदद की है। इसलिए जब हिल एग्रिकल्चर व रुरल डेव्लपमेंट सोसाइटी (HARP) ने किसानों की आजीविका में सुधार लाने के लिए नाबार्ड के प्रोजेक्ट के माध्यम से सेब के बगीचे लगाने का काम शुरू किया, तब विश्वविद्यालय से पौधे लेने का फैसला किया गया। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत पिछले तीन सालों में विश्वविद्यालय ने किन्नौर जिले के आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में रोपण के लिए हार्प को 39,000 से अधिक पौधों की आपूर्ति की है, जिनमें से अधिकांश सेब हैं। परियोजना का मुख्य उद्देश्य किसानों की आजीविका में सुधार करना और 2022 तक उनकी आय को दोगुना करना है।
हार्प के संस्थापक अध्यक्ष डा. आर.एस. रतन ने बताया कि नाबार्ड द्वारा प्रायोजित इस जनजातीय विकास परियोजना को हार्प द्वारा लागू किया जा रहा है। यह परियोजना सात साल तक चलेगी। निजी योगदान और अन्य योजनाओं के अभिसरण को जोड़ने के बाद इसमें लगभग 9.43 करोड़ रुपए खर्च होगा जिससे हम किन्नौर जिले के निचार विकास खंड की रुपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों के 643 किसानों की आजीविका में वृद्धि करने का उद्देश्य है। शार्बो में स्थित नौणी विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय बागवानी और प्रशिक्षण केंद्र के वैज्ञानिक भी सोसायटी के विभिन्न कौशल विकास कार्यक्रमों में संसाधन व्यक्ति के रूप में मदद करने के साथ-साथ किसानों को पेड़ों की छंटाई के लिए संस्थागत प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं।
इस आजीविका परियोजना के चयनित क्षेत्र के लगभग 400 एकड़ में सेब, अखरोट, चूली (जंगली खुरमानी) और नाशपाती के बगीचे की स्थापना की जाएगी। सेब को मुख्य क्षेत्र में लगाया जाएगा, जबकि चूली, अखरोट और नाशपती के बगीचे क्रमशः रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा में स्थापित किए जाएंगे। डा॰ रतन ने बताया कि इस परियोजना के तहत चयनित क्षेत्र सीमित आजीविका के कारण एक आर्थिक रूप से पिछड़ा क्षेत्र था। एक बड़ा क्षेत्र सेब की खेती में लाने से, जो कि शीतोष्ण जलवायु के लिए नकदी फसल है, हम आजीविका में काफी सुधार की उम्मीद कर सकते हैं।
नौणी विवि के कुलपति डा. एचसी शर्मा ने कहा कि विश्वविद्यालय हमेशा से ही किसानों की उन्नति के लिए निरंतर प्रयास करता रहा है। हम पिछले तीन वर्षों से हार्प को इस परियोजना के लिए पौधे उपलब्ध करवा रहे हैं। इस साल, हमने सेब की स्पर और रॉयल किस्मों के 6158 और 150 अखरोट के पौधों सोसाइटी को दिए हैं। डा. शर्मा ने बताया कि हर साल यूनिवर्सिटी में किसानों को विभिन्न उन्नत क़िस्मों के सेब, कीवी, अनार, खुरमानी, आड़ू, चेरी, अखरोट, पेकन नट, आनर, नाशपती, पलम और बादाम आदि के पौधें विश्वविद्यालय परिसर और विभिन्न अनुसंधान और कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम में उपलब्ध करवाए जाते हैं।