एडवांस स्टडी में 15 दिसंबर तक गांधी और अन्य भारतीय विचारकों के विशेष संदर्भ के साथ अर्थायाम
एडवांस स्टडी में 15 दिसंबर तक गांधी और अन्य भारतीय विचारकों के विशेष संदर्भ के साथ अर्थायाम
शिमला: शिमला- भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (एडवांस स्टडी) 1 से 15 दिसंबर 2021 तक गांधी और अन्य भारतीय विचारकों के विशेष संदर्भ के साथ अर्थायाम: गाँधी एवम् आधुनिक भारतीय चिंतकों के धर्म. केंद्रित अर्थ.दर्शन का अंतर्विषयी अनुशीलन विषय पर शीतकालीन स्कूल का आयोजन कर रहा है। उद्घाटन सत्र में प्रख्यात दार्शनिक प्रोफेसर अंबिकादत्त शर्मा ने ‘सनातन गांधीः टूवर्डस एन अद्वैतिक विजन ऑफ सोसायटी’ उप विषय पर अपना व्याख्यान दिया। प्रोफेसर शर्मा ने गांधी को एक सर्वाेत्कृष्ट, सनातनी भारतीय विचारक के रूप में चित्रित किया, जिन्होंने सत्य, सत्य बल (सत्याग्रह) अहिंसा, स्वदेशी, स्वराज और सर्वाेदय के विचारों को विष्णु पुराण, वाल्मीकि रामायण, महाभारत, भगवद गीता और उपनिषदों से व्यापक रूप से उद्धृत किया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे गांधी ने राजनीति और सामाजिक कार्य के क्षेत्र में धर्म-केंद्रित शाश्वत मूल्यों के साथ प्रयोग या उनका अभ्यास किया। पंद्रह दिन चलने वाले इस शरद स्कूल के समन्वयक प्रोफेसर सुधीर कुमार ने संस्थान के अध्यक्ष प्रोफेसर कपिल कपूर, तथा उपाध्यक्ष एवं कार्यवाहक निदेशक प्रोफेसर चमन लाल गुप्त, के प्रति उनके मार्गदर्शन, प्रेरणा और समर्थन के लिए अपना गहरा आभार व्यक्त किया। संस्थान में अध्ययनरत अध्येता डॉ. बलराम शुक्ल ने इस स्कूल में आए प्रतिभागी विद्वानों तथा संस्थान के अधिकारियों का उनके निरंतर समर्थन और सहयोग के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया।
सिक्ख धर्म में अर्थ पुरुषार्थ : सिद्धान्त एवं प्रयोग
प्रोफेसर जगबीर सिंह : आज अपने व्याख्यान में प्रोफेसर सिंह ने बताया कि अर्थायाम कुछ प्राणायाम के जैसा है जैसा प्राण नियंत्रण से अपनी चित्त वृतियों पर काबू पाकर अध्यात्म भाव ल सकते हैं उसी तरह समाज में अर्थ को व्यवस्थित करके समाज में कल्याणकारी भाव ल सकते हैं।
सिक्खिज़्म (सिखमत) हमारी भारतीय परम्पराओं का अंतरंग अंग है। जो भारतीय सभ्यता को संरक्षित करता है। हमारी सभ्यता धर्म एवं ज्ञान केन्द्रित सनातन सभ्यता है। हमें अपनी सभ्यता की मूलस्थिति को जानकार आज आगे बढ़ने की जरूरत है। हमारे चिंतन का मूल आधार परम सत्य है। इसी परम यथार्थ (ब्रह्मा) से हमारा अस्तितत्व है।
समाज की आर्थिक योजनाओं को बनाने एवं मानव की बेहतरी के लिए अर्थायाम का मूल संबंध धर्म पुरुषार्थ से है अर्थात यह अर्थ पुरुषार्थ धर्म से संचालित एवं समर्थित होकर ही मानव कल्याण में उपयोगी होगा। धर्म – ‘धारयतीति धर्म’ जो धरण करता है। नानक जी के मत में ‘धवलतरंग दया का पूत …….’
धर्म का मतलब नैतिक नियम (moral orders) है। सारी सृष्टि का अपना एक नियम जिस रूप में विद्यमान है उसी तरह मानव समाज में एक धर्म है जो उसे उसके कर्तव्यों का बोध कराता है। मानव एक कामना युक्त प्राणी जिसकी कामना पूर्ति के लिए अर्थ महत्त्वपूर्ण है। नाम, दान, स्नान का वर्णन करते हुए सिक्खधर्म में अर्थ की बुनियादी अवधारणा में नाम जपना, कीरत करना एवं सुवाद बाँटना की बात करते हैं। अर्थात हमारी सभ्यता सर्वग्राही बदलवादी एवं उदारतापूर्ण है जो सब के कल्याण की भावना से ओतप्रोत है।