पौधों के तनों पर चूना-नीला थोथे का लेप लगाने का यह समय सबसे उपयुक्त : बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एस.पी. भारद्वाज

आजकल कांट-छांट का समय उपयुक्त नहीं, इस समय की गई कांट-छांट के द्वारा घाव की भरपाई बहुत देरी से होती है

बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एस.पी. भारद्वाज

बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एस.पी. भारद्वाज

लगभग एक पखवाड़े से सामान्य तापमान में कभी देखने में आई है जिसके कारण शीतऋतु का आगमन हो रहा है, शीतोष्ण फल पौधों की दृष्टि से अभी तापमान 7 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं पहुंचा है औसत तापमान, जिससे यह स्पष्ट है कि अभी शीतोष्ण फल विशेषकर सेब, अखरोट, नैक्टरीन, कीवी, अनार, नाशपाती, चैरी, खुमानी, प्लम, आड़ू, बादाम इत्यादि फल पौधों में सुषुप्ता अवस्था आरम्भ नहीं हुई है। सुषुप्ता अवस्था में सामान्य तापमान 7 डिग्री सेल्सियस लगातार रहना आवश्यक है जिससे वह पौधे जिनकी पत्तियां सर्दियों में झड़ जाती हैं शारीरिक प्रक्रिया दवारा पौधे अपने कोशिकाओं को जमाव बिंदु से नीचे के तापमान को सहने हेतु तैयार करते हैं और भोजन के प्रवाह को रोककर जो पत्तियों के विकास के रूप में प्रयोग होता है, को अवरूद्ध करके अपनी कोशिकाओं में संग्रह करके बीमों में तथा अन्य पत्तीकक्ष में संग्रहित करके, मार्च के महीने में सुषुप्ता प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है, फलस्वरूप पौधों के विकास विशेषकर पत्तियों व फूलों को शक्ति प्रदान करता है।

सर्दियों में दिनमान लगभग 9.30 घंटे तक रहता है और सूर्य का प्रकाश भी कम होने के कारण सुषुप्ता (डारमेंसी) अवस्था फल पौधों को न केवल अत्याधिक ठंड के प्रकोप से सुरक्षित रखती है अपितु आने वाले वर्ष में पौधे फल उत्पादन को भी चिर स्तर रखने में सहायता करता है।

हिमाचल प्रदेश में 914 मीटर ऊंचाई पर स्थित क्षेत्र मध्य पहाड़ी उपोष्ण कटिबंधीय श्रेणी में रखा गया है, 915-1523 मीटर समुद्र तल की ऊंचाई पर स्थित पर्वतीय क्षेत्र उपशीतोष्ण जोन, 1524 से 2472 मीटर तक स्थित ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र को शीतोष्ण क्षेत्र में तथा 2472 मीटर से ऊंचे पहाड़ी क्षेत्र को शुष्क शीतोष्ण क्षेत्र में परिभाषित किया गया है।

वह क्षेत्र जिनकी ऊंचाई 1524 मीटर से अधिक है, में सर्दियों में हिमपात अधिक होता है और सर्दियां लम्बे समय यानि 4-5 महीने तक बनी रहती है जिसमें औसतन तापमान शून्य से नीचे 7 डिग्री सेल्सियस तक रहता है। यह तापमान शीतोष्ण फल उत्पादन में प्रमुख भूमिका निभाता है। हिमाचल प्रदेश के अधिकतर जिले शिमला, किन्नौर, लाहुल-स्पीति, मण्डी, सिरमौर, चम्बा व सोलन जिला के अधिकतर भाग इसी श्रेणी में आते हैं।

कांट-छांट के बाद छोटी-छोटी टहनियां बागीचे से नहीं उठाने से बढ़ जाता है रैड माईट, सैंजोस्केल, व्हाईट स्केल तथा वूली एफिड के स्वस्थ पौधों पर आक्रमण का प्रकोप

पौधों पर लगानी की विधि

वुली ऐफ़िड का आक्रमण

आजकल यह देखने को मिल रहा है कि कुछ बागवान सेब बागीचों में कांट-छांट का काम कर रहे हैं और कुछ बागवान इस कार्य को पूरा भी कर चुके हैं। आजकल कांट-छांट का समय उपयुक्त नहीं है। ऐसे समय में की गई कांट-छांट पौधों को कमजोर बनाकर गुणवत्ता उत्पादन को प्रभावित करती है और कभी भी उत्तम किस्म का फल प्राप्त नहीं हो पाता। इसके अतिरिक्त कैंकर रोग, वूली एफिड के कारण पौधों में काफी स्तर पर विकास अवरूद्ध हो जाता है। कांट-छांट द्वारा भूमि पर गिरी छोटी-छोटी टहनियां भी पूरी तरह से बागीचे से उठाई नहीं जा सकने के कारण रैड माईट, सैंजोस्केल, व्हाईट स्केल, वूली एफिड तथा स्कैब रोग का आक्रमण का प्रकोप स्वस्थ पौधों पर

बढ़ जाता है। सबसे अधिक हानि पौधे के विकास के रूकने से होती है क्योंकि कांट-छांट द्वारा की गई पौधों पर हुए जख्मों की भरपाई नहीं हो पाती और इस समय की गई कांट-छांट के द्वारा घाव की भरपाई बहुत देरी से होती है और अधिकतर भाग स्मोकी ब्लाइट के कारण कुछ समय के बाद सूख जाते हैं जिसके कारण पौधों में विकास वांछित स्थान व दिशा में नहीं हो पाता और नई टहनियों का विकास विपरीत दिशा में हो जाता है जो पौधों के सूर्य के प्रकाश में अवरोध पैदा करके प्रकाश स्न्शेष्ण प्रक्रिया कम कर देता है। हवा का भी वांछित आदान-प्रदान ही नहीं हो पाता। पत्तियों का विकास कम होता है। फलों का रंग निम्र स्तर का तथा पत्ते भी कमजोर रहते हैं और गुणवता फल उत्पादन नहीं हो पाता

पौधों की कांट-छांट पौध रस के चलने से 30-45 दिन पहले करना सर्वोचित व वांछित

यह भी देखा गया है कि अधिकतर बगीचों में कांट-छांट सही ढंग से नहीं की जाती जिसके कारण अगले वर्ष कांट-छांट का काम 30-40 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। कांट-छांट से घाव होने के कारण पौधों द्वारा जमा की गई पोषक तत्वों व शक्ति इन्हीं घावों को भरने में प्रयोग होती है और बहुत कम पोषक तत्वों की संचित मात्रा पत्ती कक्ष और फूलों के बीमों में उपलब्ध हो पाती है फलस्वरूप पौधों से गुणवत्ता उत्पादन लम्बे प्रयत्नों व पैसा खर्चने पर भी नहीं मिल पाता। अत: इस समय जब तापमान 7 डिग्री सेल्सियस भी नहीं है कांट-छांट तुरन्त रोककर फरवरी के दूसरे पखवाड़े से ही करना लाभप्रद रहता है।

पौधों की कांट-छांट पौध रस के चलने से 30-45 दिन पहले करना सर्वोचित व वांछित है, ऐसे समय में कांट-छांट अत्यंत लाभदायक होती है, घाव तो इस समय भी होंगे परन्तु इनकी भरपाई तुरन्त हो जाएगी और किसी रोग व कीट के पनपने की समस्या बहुत कम होगी। फल उत्पादन व गुणवत्ता में अभूतपूर्व सुधार व खर्चों में भी भारी कमी हो पाएगी। इस दृष्टिकोण को ध्यान में रखें और वैज्ञानिक ढंग से कांट-छांट कर पौधों में न केवल गुणवत्ता उत्पादन यद्यपि खर्चों में कमी तथा पौधों की आयु तक फल प्राप्ति हो पाएगी।

पौधों के तनों पर चूना-नीला थोथे का लेप लगाने का यह समय सबसे उपयुक्त

चूने को भूमि की सतह से पौधे की पहली शाखा तक लगाएं

वुली ऐफ़िड का आक्रमण

पौधों के तनों पर चूना-नीला थोथे का लेप लगाने का यह समय सबसे उपयुक्त है। सबसे पहले साधारण चूना 9 किलो, नीला थोथा एक

चूना लगाने की विधि

किलो, एचएमओ (स्वीकृत) 750 मि.लीटर तथा पानी 20 लीटर लें, सबसे पहले चूने को पानी में घोलें। नीला थोथे को तोडक़र गर्म पानी में घोलें या फिर 1 किलो नीले थोथे को किसी कढ़ाई या तसला जो टिन या लोहे का हो, में डालें और आग पर गर्म तब तक करें जब तक नीला थोथा कुछ सफेद रंग में परिवर्तित हो जाए, इस नीले थोथे को पिघलने न दें। इसे भी 20 लीटर पानी में चूने के साथ अच्छी तरह घोल दें तदोपरांत 750 मि.लीटर एचएमओ (स्वीकृत) जैसे सर्वो एचएमओ, भारत पेट्रोलियम आल सीजन एचएमओ का प्रयोग करें। चूने को भूमि की सतह से पौधे की पहली शाखा तक लगाएं। यदि पौधे की किसी टहनी की छाल पर कुछ लाल रंग की तरह यानि सामान्य रंग नहीं दिख रहा है तो इस भाग में भी इसी चूने के घोल को लगाएं। इससे कैंकर रोग, वूली एफिड, स्केल माईट व कीटों द्वारा दिए गए अण्डों तथा तना छिद्रक का प्रकोप नहीं हो पाएगा।

पौधों के तौलिए में गोबर की खाद 20 से 50 किलो प्रति तौलिए में प्रयोग करें, प्रत्येक तौलिए के घेरे में बाहर से एक मीटर या तने से एक मीटर दूरी पर सुपर फास्फेट दो किलो के साथ मिलाकर मिट्टी से ढक दें। अन्य खाद, उर्वरक मार्च में प्रयोग करें।

किसी प्रकार का संदेह होने पर वैज्ञानिक सलाह अवश्य लें। इन सुझावों से पौधों में स्वास्थ्य लाभ, गुणवत्ता फल प्राप्ति व अनावश्यक खर्चों में कमी आएगी।

सम्बंधित समाचार

अपने सुझाव दें

Your email address will not be published. Required fields are marked *