स्वास्थ्य अधिकारियों व कर्मचारियों को मिलें सेवा विस्तार: रोहित ठाकुर

कीटनाशक-फफूंदनाशक दवाइयों पर अनुदान बहाल करें सरकार: रोहित ठाकुर

उत्पादन घटने और लगातार लागत बढ़ने से सेब की बाग़वानी छोटे व मध्यम वर्ग के बाग़वानों के लिए घाटे का सौदा साबित होती जा रही है

शिमला: कृषि एवम् बाग़वानी क्षेत्र में उपयोग होने वाली आवश्यक कीटनाशक- फफूंदनाशक दवाइयों में अनुदान ख़त्म करने के निर्णय से बाग़वानों-किसानों को आर्थिक नुक़सान उठाना पड़ रहा है। यह बात जुब्बल-नावर-कोटखाई से काँग्रेस विधायक रोहित ठाकुर ने प्रेस में ज़ारी एक ब्यान में कही। रोहित ठाकुर ने कहा कि प्रदेश की कुल जनसंख्या के 90 प्रतिशत से अधिक लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं और लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या अपनी आजीविका और रोज़गार के लिए कृषि-बाग़वानी क्षेत्र पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि बाग़वानी के लिए अनुकूल परिस्थिति के चलते प्रदेश में 234779 हेक्टेयर भूमि पर बाग़वानी की जाती है जो कि यहां के लोगों की आजीविका का मुख्य साधन है। रोहित ठाकुर ने कहा कि प्रदेश में सर्वाधिक सेब की बाग़वानी होती हैं जिससे भारतवर्ष में हिमाचल प्रदेश को अग्रणी सेब उत्पादक राज्य के रूप में जाना जाता है। सेब की बाग़वानी प्रदेश में प्रतिवर्ष रूपये 5000 करोड़ रुपए की आर्थिकी को पैदा करती हैं। रोहित ठाकुर ने कहा कि बागवानी का प्रदेश की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 13 प्रतिशत का योगदान है। उन्होंने कहा कि जब वर्ष 1982-83 में स्कैब़ की बीमारी ने पूरे हिमाचल प्रदेश में सेब की बागवानी को तहस-नहस कर दिया था तो तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने बाग़वानों को राहत देने के लिए उद्यान विभाग के माध्यम से कीटनाशक एवं फफूंदनाशक दवाइयों पर 50 प्रतिशत अनुदान राशि शुरू की थी जिसे प्रदेश की भाजपा सरकार ने गत्त वर्ष 2020 में बन्द कर दिया है। उद्यान विभाग द्वारा अनुमोदित स्प्रे सारिणी के आधार पर वर्ष में कम से कम 12-13 बार बाग़वानों को अपने बागीचें में स्प्रे करनी पड़ती है। ओलावृष्टि, बेमौसमी बर्फ़बारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं और स्कैब़ जैसी बीमारियों के प्रकोप को देखते हुए बाग़वानों को इसके अतिरिक्त स्प्रे करनी पड़ती है। रोहित ठाकुर ने कहा कि प्रदेश में उद्यान विभाग के 355 उद्यान वितरण केंद्रों के माध्यम से 1500 से 2000 मीट्रिक टन दवाईयां बाग़वानों को वितरित की जाती थी जिस पर सरकार लगभग 18 से 20 रूपये करोड़ रुपए सालाना व्यय करती थी। उद्यान वितरण केंद्रों से मिलने वाली कीटनाशक-फफूंदनाशक दवाईयों पर 7 से 8 करोड़ रुपये अनुदान के लिए सरकार प्रतिवर्ष ख़र्च करती थी। वर्तमान सरकार ने 2020 से कीटनाशक – फफूंदनाशक दवाइयों पर डीबीटी के माध्यम से बाग़वानों को प्रति हेक्टेयर सेब पर 4000 रुपए, आम व गुठली दार फलों पर 2000 प्रति हेक्टेयर की दर से प्रतिवर्ष अनुदान देने का निर्णय लिया गया है। प्रदेश में लघु एवं सीमांत किसानों की संख्या 80 से 90 प्रतिशत है। इस योजना के अंतर्गत लघु एवं सीमांत किसानों को 160-320 रुपए प्रति बीघा के हिसाब से अनुदान राशि बनती है जो कि बेहद कम है।

रोहित ठाकुर ने कहा कि उत्पादन घटने और लगातार लागत बढ़ने से सेब की बाग़वानी छोटे व मध्यम वर्ग के बाग़वानों के लिए घाटे का सौदा साबित होती जा रही है। बाग़वानी की कठिन परिस्थितियों के बावजूद भी प्रदेश सरकार ने गत्त वर्ष कीटनाशक-फफूंदनाशक दवाईयों पर मिलने वाला अनुदान ख़त्म कर दिया जिससे बाग़वानों में भारी आक्रोश है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने जुब्बल-कोटखाई के दौरे के दौरान खड़ापत्थर में दिनांक 16 जुलाई, 2021 को घोषणा की थी कि सरकार कीटनाशक-फफूंदनाशक दवाइयों के अनुदान बारें पुनर्विचार करेंगी लेक़िन अभी तक इस बारे कोई पहल नहीं हो पाई है। रोहित ठाकुर ने बाग़वानों को राहत देने के लिए फफूंदनाशक-कीटनाशक दवाइयों पर 50 प्रतिशत अनुदान बहाल करने व उघान विभाग के वितरण केंद्रों के माध्यम से पुनः गुणवत्ता वाली दवाइयां उपलब्ध करवाने बारें मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से हस्तक्षेप की मांग की है।

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