जब भी हिमाचल की सियासत की बात होगी, “वीरभद्र सिंह” का जिक्र ना हो यह कभी भी मुमकिन ही नहीं….!

  • कांग्रेस के वरिष्ठ दिग्गज नेता व पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की “जीवनी”

  • हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री “वीरभद्र सिंह” एक ऐसी शख्सियत थे जो प्रदेश के लोगों के दिल में बसते थे और हमेशा बसते रहेंगे…

हिमाचल प्रदेश की शान समझे जाने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ दिग्गज नेता व पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह आज हमें छोड़कर हमेशा के लिए दुनिया से चले गये। वीरभद्र सिंह एक ऐसी शख्सियत थे जिनके विपक्ष के सभी सदस्य दिल से सम्मान करते थे और प्रदेश के लोगों के तो वो दिल में बसते थे और हमेशा बसते रहेंगे। आज ऐसे दिग्गज नेता का चले जाना वाकये ही किसी भी हिमाचली के लिए किसी बड़े सदमे से कम नहीं। वो हर गरीब इन्सान के मसीहा थे वो हर तबके के लोगों की बात समझते थे। जब भी हिमाचल में सियासत की बात होगी, वीरभद्र सिंह का जिक्र ना हो, यह मुमकिन ही नहीं हैं। हिमाचल की सियासत में उनका हमेशा जिक्र होगा क्योंकि उन जैसा व्यक्तित्व न था, ना है, और ना ही हो सकता है।

वीरभद्र सिंह का संबंध राजघराने से रहा है। वह बुशहर रियासत के राजा रहे। वीरभद्र सिंह का जन्म शिमला जिले के सराहन में 23 जून, 1934 को हुआ। उनके पिता का नाम राजा पदम सिंह और उनकी माता का नाम श्रीमति शांति देवी था। उनका विवाह श्रीमति प्रतिभा सिंह के साथ सम्पन्न हुआ और उनके 1 बेटा और 4 बेटियाँ है।

वीरभद्र सिंह की शुरुआती पढ़ाई बिशप कॉटन स्कूल शिमला से ही हुई। बाद में उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से बीए ऑनर्स की पढ़ाई की। वीरभद्र सिंह ने स्नातकोत्तर तक की शिक्षा प्राप्त की।

वीरभद्र सिंह अपने राजनीतिक करियर में केवल एक ही बार चुनाव हारे हैं। देश में आपातकाल के बाद 1977 में जब कांग्रेस का देश से सफाया हो गया था,  इसी दौरान वीरभद्र सिंह भी चुनाव हारे थे। वीरभद्र सिंह ने पहली बार सन 1962 में लोकसभा का चुनाव लड़ा और संसद पहुंचे। इसके बाद 1967 और 1971 के लोकसभा चुनाव में भी इन्हें जीत हासिल हुई। 1980 में सीएम वीरभद्र सिंह ने फिर चुनावी ताल ठोकी और सांसद चुने गए। उन्हें इस दौरान राज्य मंत्री उद्योग मंत्री का प्रभार मिला था। इसके बाद वीरभद्र सिंह ने प्रदेश की राजनीति की ओर रुख किया। हालांकि 2009 में वह एक बार फिर मंडी संसदीय सीट से सांसद चुने गए। इससे पहले, जब 2004 में केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी, तो इसी सीट से उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह सांसद चुनी गई थीं। उन्होंने पहली बार महासू लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था।

1976 और 1977 के बीच वीरभद्र सिंह ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में पर्यटन और नागरिक उड्डयन के लिए उपमंत्री का राष्ट्रीय कार्यालय भी संभाला था। वह 1980 से 1983 के बीच उद्योग मंत्री रहे। मई 2009 से जनवरी 2011 तक उन्हें केंद्रीय इस्पात मंत्री का जिम्मा सौंपा गया। बाद में जून 2012 में उन्हें माइक्रो, स्माल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज जिम्मेदारी सौंपी गई। साल 1976 में वीरभद्र सिंह यूनाइटेड नेशन्स की जनरल असेंम्बली के लिए भारतीय डेलीगेशन के सदस्य भी रहे।

केंद्रीय राजनीति में अहम रोल अदा करने वाले वीरभद्र सिंह ने 1983 में प्रदेश राजनीति में सक्रियता बढ़ाई। सन 1983 में वह जुब्बल-कोटखाई सीट से उपचुनाव जीते। इसके बाद सन 1985 के विधानसभा चुनावों में वीरभद्र सिंह ने जीत हासिल की। इसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और रोहड़ू विधानसभा क्षेत्र से 1990, 1993, 1998 और 2003 में विधानसभा चुनाव जीते। सन 1998 से लेकर 2003 तक वह नेता विपक्ष भी रहे। इससे पहले, 1977, 1979 और 1980 में वह प्रदेश कांग्रेस प्रभारी भी रहे।

वीरभद्र सिंह 8 अप्रैल 1983 में पहली बार मुख्यमंत्री बने और 1990 तक मुख्यमंत्री के पद पर रहे। इसके बाद 1983 से 5 मार्च 1990 तक,  3 दिसम्बर 1993 से 24 मार्च 1998 तक, 6 मार्च 2003 से 30 दिसम्बर 2007 तक और 25 दिसम्बर 2012 से 27 दिसम्बर 2017 तक मुख्यमंत्री पद पर रहे।

वीरभद्र सिंह का दावा रहा कि उन्होंने अपने 55 साल के लम्बे राजनीतिक जीवन में एक घंटे के लिए भी कांग्रेस नहीं छोड़ी और न ही उन्हें कभी ऐसा करने का विचार मन में आया।

वीरभद्र सिंह का मानना रहा कि प्रदेश की जनता ने उन्हें बहुत प्यार दिया है और अगर वह पांच जन्म भी लेते हैं तो भी इस प्यार का ऋण नहीं चुका सकते। सक्रिय राजनीति में वीरभद्र सिंह ने इस लम्बे सफल राजनीतिक जीवन के लिए कांग्रेस के प्रति अपनी निष्ठा और प्रदेश की जनता के स्नेह और प्यार का नतीजा बताया है।

वीरभद्र सिंह की अपनी एक शख्सियत रही। हिमाचल प्रदेश में वाई एस परमार के बाद वे एक ऐसे नेता हैं जिन्हें जनता का पूरा प्यार व समर्थन मिलता रहा है। हिमाचल की राजनीति और कांग्रेस को इस राज्य में स्‍‌थापित करने में वीरभद्र सिंह का अहम योगदान रहा है। प्रदेश के विकास कार्यों को उन्होंने हमेशा तव्वजो दी और कई महत्वपूर्ण कार्य किये। आज उनका दूनिया से यूँ चले जाना पूरे प्रदेश के लिए अपूर्णीय क्षति है जिसकी कभी भी भरपाई नहीं हो सकेगी।

सम्बंधित समाचार

अपने सुझाव दें

Your email address will not be published. Required fields are marked *