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लेडी रीडिंग: कमला नेहरू अस्पताल शिमला का मूल नाम लेडी रीडिंग था। ब्रिटिश-इण्डिया काल में यह एक
हॉल (कमरे) के रूप में विकसित हुआ। बेयरड विल्ला में 25 अप्रैल, 1924 ई. को भारत के वाइसरॉय लॉड रीडिंग की पत्नी लेडी रीडिंग ने मात्र दस हजार रूपए देकर नगरपालिका शिमला के सहयोग से यहां साठ बिस्तरों का अस्पताल प्रसूता महिलाओं और नवजात शिशुओं के लिए कुल लागत अठारह हजार मात्र से बनवाया था। लेडी रीडिंग ने बेयरड एस्टेट के लिए 4,38000 की राशि एकत्र कर इस पर खर्च की थी। इसमें 20 बिस्तर शिमला तथा इस जिले के स्थायी लोगों के लिए आरक्षित रहते थे। इसमें सर्वाधिक अंशदान 2,62000 मात्र महाराजा नाभा (पंजाब) का था।
वाइस रीगल लॉज: शिमला शहर की प्रास्पेक्ट हिल के आंचल में ब्रिटिश शिल्प कौशल की अनुपम धरोहर वाइस रीगल लॉज स्थित है। इस भवन को राष्ट्रपति निवास और भारतीय उच्च संस्थान के नाम से भी जाना जाता है। इस अनमोल सम्पदा के वास्तुशिल्पी और निर्माण के मुख्य कार्यकर्ता मिस्टर हेनरी इरविन थे जिनके अन्य सहयोगी इंजीनियर भी ब्रिटिश मूल के थे। इसका मुख्य भवन समूह तीन मंजिला है जबकि रसोई वाला ब्लॉक पांच मंजिला है। इस सम्पूर्ण भवन का शिल्प ब्रिटिश पुनरूत्थान शैली (एलिजाबेथन) के आधार पर है। इस भवन की दीवारों पर प्रयोग किए गए हल्के नीले रंग के पत्थर पर की गई नक्काशी शिल्पी के भवन निर्माण के श्रेष्ठ हुनर को दर्शाता है। इस भवन की सीढिय़ां शीशम, जंगले की छड़ें अखरोट और सीढिय़ों के शेष ढांचे को देवदार की लकडिय़ों का बनाया गया है। इस शाही भवन की ऊपरली दीर्घा को सफेद और सुनहरी कागज के जापानी शिल्प के साथ अलंकृत किया गया है।
भारत के वाइसरॉय लॉर्ड डफरिन नवनिर्मित वाइस रीगल लॉज में पर्दापण करने वाले ब्रिटिश शासक थे। लॉर्ड डफरिन ने पीटर हॉफ को छोडक़र इस आलीशान आवासीय भवन में 23 जुलाई, 1888 ई. को प्रवेश किया। हालांकि वाइस रीगल लॉज सितम्बर, 1888 ई. को पूरी तरह से बनकर तैयार हुआ। लैंसडॉऊन ऐसे पहले वाइसरॉय थे जिन्हें वाइस रीगल लॉज में रहने का पूरा लाभ मिला। इनके शासनकाल में यह भवन सभी अलंकरणों के साथ भली-भांति सुसज्जित हो गया था। इनके पश्चात लॉर्ड एल्गिन ने वाइस रीगल लॉज में रहते हुए मशोबरा में बने आवास में भी रहना शुरू किया। वाइस रीगल लॉज में लॉर्ड डफरिन (23-7-1888 ई. से 31-12-1888 ई. तक) तथा लॉर्ड रीडिंग (1925-29 ई. तक० तक) रहे। यह इमारत ब्रिटिश-इण्डिया के बारह वाइसरॉय का आवासीय भवन रहा। वाइस रीगल लॉज 331 एकड़ भूमि का स्वामित्व रखता था।
वाइस रीगल लॉज के रख-रखाव पर हर वर्ष मोटी रकम खर्च की जाती थी। वाइस रीगल लॉज के शुरू से आखिर तक बने कौंसिल ऑफ स्टेट चैम्बर पर अठारवीं शताब्दी के उत्तराद्र्ध में अड़तीस लाख की राशि व्यय की गई थी। वाइस रीगल लॉज की सीमाएं पूर्व दिशा में ऑब्जरवेट्री हॉॅऊस के साथ लगती है। यह हॉऊस सन् 1840 ई. को कैप्टन जे.टी. बायलू ने ऑब्जरवेट्री के उद्देश्य से बनवाया था। इस वैद्यशाला ने 19 जनवरी, 1841 ई. को मौसम विज्ञान पर जानकारियां देने का कार्य आरम्भ कर दिया था। सन् 185 0ई. को कैप्टर बायलू की तैनाती शिमला से बाहर की गई। उनके स्थान पर किसी अन्य को नियुक्त नहीं किया गया। वैद्यशाला के यन्त्र आगरा भेजे गए जहां सन् 1857 ई. के विपल्व के कारण नष्ट हो गए। ऑब्जरवेट्री हॉऊस अनेक ब्रिटिश अधिकारियों के स्वामित्व में रहा। लेकिन वाइस रीगल लॉज में वाइसरॉय का आवास बदलने पर ऑब्जरवेट्री हॉऊस वाइसरॉय के निजी सचिव का आवास बन गया था। शिमला में दो बायलू भाइयों के नाम पर वर्तमान बालूगंज कस्बे का नाम भी पड़ा प्रतीत होता है।
भारत की स्वतंत्रता के बाद वाइस रीगल लॉज भारत के राष्ट्रपति का सरकारी आवास बना। सन् 1962 ई. को भारत के राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने यह सम्पदा भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान को लीज पर देने के आशय से केन्द्र सरकार को वापस सौंप दी थी। सन् 1965 ई. को भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान की स्थापना वाइस रीगल लॉज में की गई। यह देश-विदेश से आए शोधार्थियों का गढ़ बन गया। सन् 1977 ई. को लीज की अवधि समाप्त होने पर संस्थान की गतिविधियां बन्द हो गई थी लेकिन आखिर भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान ने पुन: कार्य करना आरम्भ किया। बीसवीं शताब्दी के उत्तराद्र्ध में भी भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान ऐसे ही संकटों से घिरा रहा परन्तु अब इस भवन में भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान दैनिक कार्यक्रम चला रहा है।
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हरविंदर सिंह चोपड़ा
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साभार : हिमाचल दर्पण