स्वयं में इतिहास समेटे हुए जहां का लोकतंत्र, विश्व का एकमात्र कुल्लू का “मलाणा” गांव

स्वयं में इतिहास समेटे हुए जहां का लोकतंत्र, विश्व का एकमात्र कुल्लू का “मलाणा” गांव

विश्व की प्राचीनतम संसद से युक्त मल्लाना

विश्व की प्राचीनतम संसद से युक्त मल्लाना

भारत वर्ष में प्राचीन काल से ही जनतंत्रीय प्रणाली रही है। राजा पर भी जनता का अंकुश होता था। पंचायत तंत्र अति प्राचीन है। इसका एक अन्य रूप बरादरी पंचायत है जो बरादरी का नियमन करती है। पंचायत ग्राम को नियमद करती थी।

500 परिवारों का एक ग्राम मलाणा जो 12000 फुट की ऊंचाई पर चंद्रखानी पहाड़ पर कुल्लू में स्थित है, विश्व की प्राचीनतम संसद से युक्त है। यह स्थान पहाड़ों व वनों से घिरा है। इसी कारण बाहर के लोग इस ग्राम की परमपराओं को प्रभावित नहीं कर सके। मणिकर्ण के मार्ग पर जारी ग्राम से 9 किलो मीटर पहाड़ी मार्ग पार कर मलाणा पहुंचते हैं। यहां के लोगों का व्यवसाय खेतीबाड़ी, भेड़-बकरी, पशुपालन, जड़ी बूटियां एकत्रित करना है। ग्राम की सारी ज़मीन ग्राम के देवता जमलू के नाम है। जमलू जमदाग्नि ऋषि के नाम पर अपभ्रंश है। किंवदंती है कि ऋषि तपस्या के लिए स्थान की तलाश में घूम रहा था, एक टोकरी में 28 देवताओं की मूर्तियां उठाए था। ज़ोर की हवा का झोंका आया और सारी मूर्तियां घाटी में तितर-बितर हो गई। जहां-जहां जो गिरी वह उस बस्ती का देवता बन गया था। लोग बसने लगे। जमदाग्नि उनका पूज्य बन गया और उनका निर्णय अंतिम और मान्य होता था मलाणा में देवता नहीं हैं, जमलू देवता का खण्डा उसका प्रतीक माना जाता है।

सबसे आश्चर्यजनक इस गांव का प्रजातांत्रिक ढांचा है। मलाणा के लोग अपने ग्राम के प्रशासन के लिए सदस्यों का चुनाव करते हैं। एक निचली संसद और दूसरी ऊपर की संसद। निचली का नाम कनिष्टांग और ऊपरी का नाम ज्येष्टांग है। ज्येष्टांग में गयारह सदस्य हैं जिनमें तीन स्थायी और आठ अस्थायी। ये आठ चार वार्डों से जिन्हें चुग कहते हैं, चुने जाते हैं। इन सदस्यों को जेठरा कहते हैं। स्थायी सदस्यों में कार्मिष्ठ अर्थात ग्राम का मुखिया शामिल है जो मुख्य प्रशासक है। वह देवता की इच्छा से कार्य करता है। दूसरा जमलू देवता का पुजारी होता है। उसका मुख्य काम देवता की पूजा और धार्मिक काम रस्म-रिवाज करवाना है। तीसरा स्थायी गुर है जिसे देवता स्वयं चुनते हैं। कभी ऐसा होता है कि देवता की आत्मा किसी व्यक्ति के अंदर प्रवेश कर जाती है, वह कांपता है और भविष्य वाणी करता है। उसका चुनाव गुर के रूप में हो जाता है। बाकी आठ का चुनाव होता है। निचले हाऊस को ‘कोर’ कहते हैं। हर एक निर्णय में लोअर की स्वीकृति ज़रूरी है। जब दोनों सदनों में विचार भिन्नता होती है। जेदांग की सहायता के लिए चार अफसर फोगलदार होते है। ये जमलू देवता के नाम पर कार्य करते हैं। मलाणा का कोई मामला आज तक कुल्लू अदालत में नहीं गया। देवता किसी गुनाहगार या दोषी को सज़ा दिए बिना नहीं छोड़ता।

मलाणा की बोली विशेष है। बाहर का आदमी नहीं समझ सकता। इसे ‘कमोशी’ कहते हैं। संस्कृत मिली बोली है। वर्ष में दो बार,

मलाणा की बोली विशेष है। बाहर का आदमी नहीं समझ सकता। इसे कमोशी कहते हैं। संस्कृत मिली बोली है

मलाणा की बोली विशेष है। बाहर का आदमी नहीं समझ सकता। इसे कमोशी कहते हैं। संस्कृत मिली बोली है

मेले त्यौहारों पर जमलू देवता दर्शनों के लिए बाहर निकाले जाते हैं। वर्ष में एक बार जमलू देवता के शिष्य कुल्लू सामान एकत्रित करने के लिए जाते हैं। बाहर के लोगों से घृणा करते हैं।

  •  हिमाचल के इस गांव में कुछ भी छुआ तो लगता है जुर्माना

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के अति दुर्गम इलाके में बसा है मलाणा गांव। इसे आप भारत का सबसे रहस्यमयी गांव कह सकते है। यहां के निवासी खुद को ‘सिकंदर के सैनिकों का वंशज’ मानते हैं। यहां पर भारतीय क़ानून नहीं चलते है। यहां की अपनी संसद है जो सारे फैसले करती है। वहीं अकबर मलाणा के रिश्तों के बारे में बताया था। मलाणा भारत का इकलौता गांव है जहां मुग़ल सम्राट अकबर की पूजा की जाती है।

  • हिमाचल की पार्वती घाटी व रूपी घाटी में 2770मी. की ऊंचाई पर बसा गावं “मलाणा”

विद्वानों के अनुसार यह विश्व का लोकतांत्रिक प्रणाली से चलने वाला सबसे पुराना गावं है। यहां पहुंचने के दो रास्ते हैं, पहला कुल्लू जिले के नग्गर इलाके का एक दुर्गम चढ़ाई और तीक्ष्ण उतराई वाला, यहां मलाणा हाइडल प्रोजेक्ट बन जाने से जरी से बराज तक सुंदर सडक बन गयी है, जिससे गाडियां बराज तक पहुंचने लग गई हैं। यहां से पार्वती नदी के साथ-साथ करीब 2 किमी. चलने के बाद शुरू होती है 3 किमी. की सीधी चढ़ाई, पगडंडी के रूप में। घने जंगल का सुरम्य माहौल थकान महसूस नहीं होने देता, पर रास्ता बेहद बीहड तथा दुर्गम है। कहीं-कहीं तो पगडंडी सिर्फ़ दो फ़ुट की रह जाती है सो बहुत संभल के चलना पड़ता है। पहाडों पर रहने वालों के लिए तो ऐसी चढ़ाईयां आम बात है पर मैदानों से जाने वालों को तीखी चढ़ाई और विरल हवा का सामना करते हुए मलाणा गांव तक पहुंचने में तीन-चार घंटे लग जाते हैं। हिमाचल के सुरम्य व दुर्गम पहाड़ों की उचाईयों पर बसे इस गांव, जिसका सर्दियों में देश के बाकि हिस्सों से नाता कटा रहता है, के ऊपर और कोई आबादी नहीं है।

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