पहल: वन संपदा के संरक्षण से स्वरोजगार की खुलीं राहें, चीड़ की पत्तियोें से धुंआरहित कोयला तैयार कर रहे द्रमण के ग्रामीण

जंगलों में गर्मियों में आग का खतरा भी होगा कम

मण्डी:  वन संपदा के संरक्षण में स्वरोजगार की बेमिसाल संभावनाएं सरकार के सहयोग से धरातल पर अपना रंग दिखाने लगी है, जंगल के लिए कभी विनाशक मानी जाने वाली चीड़ की पत्तियां ग्रामीणों के लिए अजीविका का भरोसेमंद सहारा बनने लगीं हैं, चीड़ की पत्तियों से धुंआ रहित कोयला बनाकर ग्रामीण अब आमदनी अर्जित कर रहे हैं वहीं वन संपदा के संरक्षण के संदेश को भी जन जन तक पहुंचा रहे हैं।

हिमाचल में चीड़ वनों की बहुतायत है और इनका क्षेत्रफल लगातार बढ़ रहा

सुंदरनगर उपमंडल के चांबी पंचायत के द्रमण गांव के 15 के करीब परिवार चीड़ की पत्तियों से धुंआ रहित कोयला तैयार कर रहे हैं इससे प्रत्येक परिवार को एक सीजन में पंद्रह हजार के करीब आमदनी भी हो रही है। सरकार की ओर से चांबी पंचायत को चीड़ की पत्तियों से धुआं रहित कोयला तैयार करने के लिए ग्रामीणों को प्रशिक्षण के साथ साथ मोल्डिंग मशीन भी निशुल्क उपलब्ध करवाई गई हैं।

धुंआ रहित कोयला तैयार करने में जुटी सावित्री देवी ने बताया कि उनके गांव के आसपास चीड़ के घने जंगल हैं इन जंगलों में गर्मियों के दौरान वनाग्नि का खतरा मंडराता रहता था लेकिन सरकार की ओर से चीड़ की पत्तियोें से धुंआ रहित कोयला तैयार करने के लिए प्रेरित किया गया इससे एक तो आमदनी का साधन उपलब्ध हो गया वहीं जंगलों में गर्मियों के दिनों में आग का खतरा भी कम हो गया है। इससे वन्य प्राणियों को भी राहत मिली है। इसी तरह श्रवण कुमार ने कहा कि चीड़ की पत्तियों से धुंआ रहित कोयला तैयार करने के लिए सरकार की ओर से सुंदरनगर में प्रशिक्षण हासिल किया है और अन्य ग्रामीणों को भी इससे जुड़ने के लिए प्रेरित किया गया है। उन्होंने कहा कि ढाबों, रेस्तरां इत्यादि के कारोबार से जुड़े लोग धुंआ रहित कोयला उनके गांव से ही खरीद कर ले जाते हैं इसकी डिमांड भी काफी है। उनके गांव से ही एक सीजन में दो से तीन लाख का धुंआ रहित कोयला तैयार करके बेचा जाता है।

कैसे तैयार होता है चीड़ की पत्तियों से धुंआ रहित कोयला:

चीड़ की पत्तियों से कोयले के निर्माण की विधि भी आसान है। पहले इसको विशेष खास ड्रम के भीतर कम आक्सीजन की स्थिति में जलाया जाता है। तारकोल जैसे रूप में परिवर्तित होने पर इसमें लगभग 10 प्रतिशत चिकनी मिट्टी का घोल बनाकर आटे की तरह गूंथा जाता है। इस मिश्रण को मोल्डिंग मशीन में डालकर कोयला बनाया जाता है।

चीड़ की पत्तियों के उपयोग से फायदे:

हिमाचल में चीड़ वनों की बहुतायत है और इनका क्षेत्रफल लगातार बढ़ रहा है। गर्मियों में चीड़ की पत्तियां आग का मुख्य कारण रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक हर वर्ष सैकड़ों हेक्टेयर वन क्षेत्र चीड़ की पत्तियों के कारण जल जाता है। जमीन के नमी सोखने के कारण चीड़ के इर्द-गिर्द दूसरे पेड़-पौधे नहीं उग पाते हैं और इसे पहाड़ों में पेयजल संकट के लिए भी जिम्मेदार माना जाता है। चीड़ की पत्तियों से धुंआ रहित कोयला तैयार होने से जंगलों की आग पर अंकुश लगेगा वहीं ग्रामीणों को आमदनी का एक साधन उपलब्ध होगा इसके साथ धुंआ रहित यह ईंधन स्वास्थ्य पर बुरा असर नहीं डालता है। इसके कारण जलावन के लिए लकड़ियों की कम कटाई से पर्यावरण भी संतुलित रहता है।

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