हिमाचल के पुरानी पहाड़ी रियासतों के आपसी सम्बंध और सीमा विस्तार

हिमाचल की पुरानी पहाड़ी रियासतों के आपसी सम्बंध और सीमा विस्तार

राजपूती रियासती काल से पूर्व लम्बे समय तक उत्तर पश्चिमी पहाड़ी क्षेत्र

हिमाचल के पुरानी पहाड़ी रियासतों के आपसी सम्बंध और सीमा विस्तार

हिमाचल के पुरानी पहाड़ी रियासतों के आपसी सम्बंध और सीमा विस्तार

में छोटी-छोटी ठकुराइन और रणौहतों में यह भाग बंटा रहा। इन रणौहतों का युग विभिन्न स्थानों पर विभिन्न समय तक रहा। इनकी सीमाएं छोटी होती थीं। ये ठाकुर और राणा अपनी सीमाओं के विस्तार के लिए आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे। अपनी सीमा की रक्षा के लिए एक कोट का निर्माण किया जाता था। चम्बा में इन कोटों ने कोठी का रूप ले लिया। इनके अवशेष अब भी मिलते हैं। सुरक्षा की दृष्टि से यह कोट ऊंचे स्थान पर बनाए जाते थे। इन रणौहतों की सीमाएं बदलती रहती थीं।
फिर राजपूत राजाओं का काल आया जो पहली शताब्दी ईसा और उसके पश्चात आरम्भ हुआ। इन राजाओं के भी लगातार परस्पर युद्ध होते रहे। इनके पारस्परिक वैवाहिक सम्बंध भी रहते थे। इनकी लड़ायों का वर्णन प्रत्येक रियासत के वृतान्त में कुछ सीमा तक दिया है, सीमाओं में परिवर्तन, विवाह सम्बंध का उल्लेख है।

रणजीत सिंह और पहाड़ी रियासतें : 18०9 ई. तक लगभग पूर्ण पंजाब पर रणजीत सिंह का कब्जा हो गया। 18०6 में गोरखों ने मण्डी,

रणजीत सिंह और पहाड़ी रियासतें

रणजीत सिंह और पहाड़ी रियासतें

बिलासपुर, सुकेत आदि राजाओं की सहायता से कांगड़ा अधिपति संसार चंद जो बड़ी वीर और

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महत्वाकांक्षी था, परास्त किया। राजा संसार चंद ने रणजीत सिंह से सहायता की याचना की। उसके लिए रणजीत सिंह ने कांगड़ा का दुर्ग सौंपने की शर्त रखी। गोरखा तो निकाले गए किन्तु नगर-कोट और कांगड़ा के समृद्ध 66 गांवों पर रणजीत का अधिकार हो गया।

किला तारागढ़ और राजा जगतसिंह नूरपुर : नूरपुर के राजा जगतसिंह ने चम्बा रियासत की तहसील भटियात के गांव तारागढ़ में ऊंची पहाड़ी पर तारागढ़ नाम दुर्ग का निर्माण 1625 और 163० के मध्य किया। जगत सिंह इस किला से मुगल सेना का मुकाबला करता रहा। चम्बा के राजा को भी परास्त कर भगा दिया। 1683 ई. में चम्बा के राजा पृथ्वीसिंह ने राजा बसोहली और कलानौर के मुगल राज्यपाल की सहायता से तारागढ़ किया में राजा जगतसिंह को परास्त किया और अपना राज्य वापस ले लिया।
किश्तवाड़, भद्रवाह, पाडर की रणौहतें 1786 ई. में चम्बा रियासत का भाग थी। इसी प्रकार चम्बा की सीमा कांगड़ा के पठयार तक थी। किन्तु समय की गति के साथ यह रियासत का भाग नहीं रहे। 1846 ई. में अमृतसर सन्धि के आधीन भद्रवाह और किश्तवाड़ जम्मू के महाराजा गुलाब सिंह को मिल गए।

चम्बा-कश्मीर : चम्बा-कश्मीर राजतंरगिणी में चम्बा का उल्लेख है। प्रथम प्रसंग राजा साहिल वर्मन के समय में आता है। कश्मीर के राजा अनन्त वर्मन ने चम्बा पर आक्रमण किया, परास्त कर राजा को गद्दी से उतार दिया। चम्बा राज्य कश्मीर को कर देता रहा। कश्मीर के राजा कलष ने चम्बा के राजा अष्टवर्मन की बहन के साथ विवाह कर लिया। कश्मीर के राज संघर्ष में अष्टवर्मन के पुत्र जष्टवर्मन ने राजा हर्ष का साथ दिया। चम्बा के राजा छत्रसिंह ने (1664-1690 ई.) में पाडर को अपने राज्य में मिला दिया। बाद में महाराजा गुलाब सिंह के सेनापति ज़ोरावर सिंह ने इस किले को जीता।

चम्बा-कुल्लू : यह दोनों पुरानी रियासतें थी और आपसी सम्बुध भी पुराने हैं। चम्बा के राजा मेरू वर्मन और कुल्लू के राजा अमरपाल में युद्ध हुआ। राजा अमरपाल और उसका पुत्र युद्ध में मारे गए। कुछ पीढिय़ों तक कुल्लू चम्बा के अधीन रहा। कुल्लू और चम्बा में युद्ध लाहौल के रास्ता से होते थे। शताब्दियों तक युद्ध चलते रहे और लाहौल के कारण भी युद्ध हुए।

कांगड़ा-चम्बा : कांगड़ा और चम्बा के सम्बंध भी बहुत पुराने हैं। चम्बा के राजा साहिल वर्मन ने अपनी सीमा का विस्तार धौलाधार

कांगड़ा और चम्बा के सम्बंध भी बहुत पुराने हैं (कांगड़ा 1864)

कांगड़ा और चम्बा के सम्बंध भी बहुत पुराने हैं (कांगड़ा 1864)

उपत्यका के साथ-साथ बड़ी दूर तक किया। रिहलू से पठियार तक चम्बा राजाओं के अधीन रहा। चम्बा के राजा प्रताप सिंह का

(1559-1596 ई.) कांगड़ा के राजा के साथ युद्ध का उल्लेख आता है। प्रताप सिंह ने गुलेर पर भी विजय पाई। गुलेर के राजा का छोटा भाई

पुराना चम्बा

पुराना चम्बा

जीतसिंह युद्ध में मारा गया। चड़ी और घरोह के इलाके को भी प्रताप सिंह ने विजय किया। बाद में अकबर के वित्त मंत्री टोडरमल ने कांगड़ा के 66 ग्राम मुगल सेना भुक्ति के लिए प्राप्त किए जिनमें चड़ी और घरोह भी थे। जब मुगल सत्ता का पतन हुआ तो चम्बा नरेश उमेदसिंह ने 1748-1768 ई. में अपनी सीमा का विस्तार कर पुन: कांगड़ा जनपद के चड़ी और घरोह इलाकों को चम्बा राज्य में मिला लिया। उमेदसिंह ने राज्य का विस्तार पालमपुर और बीड़ बंघाल तक किया। सीमा की सुरक्षा के लिए पठियार के किला को मजबूत किया। बाद में कांगड़ा के राजा घमण्ड चन्द ने उमेद सिंह को पालमपुर तालुका से हटा दिया।
कांगड़ा के सर्वप्रसिद्ध राजा संसारचंद 1775-1823 ने चम्बा के राजा राज सिंह से 1764-1794 कांगड़ा के चड़ी, घरोह और रिहलू के इलाके खाली करने के लिए कहा। ऐसा न होने पर नेरटी में चम्बा नरेश राजसिंह और संसारचंद की सेना में 1794 में युद्ध हुआ जिसमें राजसिंह वीरता से लड़ते हुए मारा गया। चम्बा राज्य की सीमा रिहलू तक रह गई। बाद में रणजीत सिंह ने रिहलू को अपने राज्य में मिला लिया, चम्बा की सीमा हटली तक रह गई।
चम्बा-बड़ा बंघाल : यह दुर्गम पहाड़ी राज्य रावी का उद्गम स्थल है। इसका प्रसार बीड़, बैजनाथ, गुम्मा तक रहा। इसके पड़ोसी राज्यों चम्बा, कुल्लू, मण्डी से युद्ध होते रहे। मण्डी के राजा सिद्धसेन ने अपने रिश्तेदार बंघाल के राजा पृथ्वीपाल का वध किया और उसके धड़ को मण्डी में दबाया। उल्लेख आता है कि 1765 में कुल्लू कुटलैहर, गुलेर के राजाओं ने मिलकर बंघाल पर आक्रमण किया किन्तु असफल रहे और आक्रमणकारियों की लाशों के ढेर लग गए। बंघाल का अंतिम राजा मानपाल पड़ोसी राजाओं से आतंकित मुगलों से सहायता लेने जा रहा था कि रास्ते में मृत्यु हो गई। उसकी विधवा ने अपने नवजात शिशु के साथ चम्बा के राजा राजसिंह की शरण ली, राजा ने उसे जागीर दी।

पुराना चम्बा

पुराना चम्बा

नूरपुर-चम्बा : 1623 ई. में राजा नूरपुर ने चम्बा पर आक्रमण किया। बनीखेत के पास ढलोग में युद्ध हुआ, जिसमें चम्बा के राजा का भाई मारा गया, राजा जनार्दन चम्बा भाग आया। राजा नूरपुर ने उसे धोखे से मार दिया। जनार्दन के नवजात शिशु पृथ्वीसिंह को मण्डी के राजा के पास शरण लेनी पड़ी। चम्बा 1623 से 1643 तक राजा जगतसिंह के अधीन रहा। तभी उसने तारा गढ़ किला बनाया। मुगलसेना के विरूद्ध लड़ाई में यहीं शरण लेता रहा। पृथ्वी सिंह जब व्यस्क हुआ तो लाहौल-पांगी के रास्ते से चम्बा पहुंचा, बसोहली के राजा संग्रामपाल की सहायता से जगतसिंह को तारागढ़ से हटाकर अपना खोया राज्य प्राप्त किया। नूरपुर का राजा वीरसिंह रणजीतसिंह के 1812 के स्यालकोट दरबार में नहीं गया तो रणजीत सिंह ने उस पर भारी जुर्माना कर दिया। वीरसिंह ने विद्रोह किया तो उसे सात वर्षों तक गोविन्दगढ़ के किला में कैद रखा। चम्बा राजा ने 85000 रूपए जुर्माना की राशि देकर छुड़ाया। राजा वीरसिंह चम्बा में ही रहा।

मण्डी, सुकेत-चम्बा : इन राज्यों की सीमाएं आपस में नहीं मिलती, फिर भी कई इतिहासिक घटनाओं के कारण उल्लेख आता है। कीरों

के आक्रमण में ब्रह्मपुर का राजा लक्ष्मण वर्मन मारा गया तो उसके नवजात शिशु को लेकर रानी ने राजा सुकेत के पास शरण ली। उसका लालन-पालन वहीं हुआ और मूश वर्मन नाम रखा। राजा ने राजकुमारी का विवाह उसके साथ कर दिया और धन, सेना की सहायता देकर पुन: ब्रह्मपुर को विजय किया। 1613-1623 ई. में चम्बा के राजा जनार्दन वर्मन का नूरपुर के राजा जगत सिंह द्वारा वध किए जाने पर उसका पुत्र पृथ्वीसिंह राजा मण्डी की शरण में पहुंचाया गया। मण्डी की सहायता से पृथ्वी सिंह अपना राज्य वापस ले सका। इन राजाओं के आपसी वैवाहिक सम्बंध भी रहे हैं।

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