ऋषि-मुनियों की तपोभूमि "हिमाचल"

ऋषि-मुनियों की तपोभूमि “हिमाचल”

बाबा बालक नाथ

बाबा बालक रूपी का तीर्थ-धाम कांगड़ा जिला

हिमाचल क्षेत्र ऋषियों, मुनियों की तपोभूमि रही है। स्थान-स्थान पर

ऋषि-मुनियों की तपोभूमि "हिमाचल"

ऋषि-मुनियों की तपोभूमि “हिमाचल”

इनकी तपस्या, सिद्धी के कारण सारा क्षेत्र पावन हुआ, इनके कारण तीर्थ बने हैं, मंदिर स्थापित हुए हैं और पर्व भी प्रचलित हुए हैं। हिमाचल की संस्कृति, सभ्यता की अपनी खास विशेषता है। वहीं प्रसिद्ध ऋषियों, मुनियों की  वजह से हिमाचल को तीर्थ ओर मंदिरों की देन प्राप्त हुई है।  कुछ प्रसिद्ध ऋषियों के कारण जो स्थान और मंदिर  प्रसिद्ध हैं उनके बारे में हम आपको जानकारी देने जा रहे हैं:

बाबा बालक नाथ का अति प्रसिद्ध मंदिर दयोटसिद्ध हमीरपुर और ऊना जिला की सीमा पर स्थित है। यहां हिमाचल प्रदेश और पंजाब से श्रद्धालु हजारों की संख्या में वर्ष भर पहुंचते हैं। यहां बाबा बालक नाथ ने तपस्या कर सिद्धी प्राप्त की थी।
बाबा बालक रूपी का तीर्थ-धाम कांगड़ा जिला में बना है।
बाबा चरपटनाथ चंबा नरेश साहिल वर्मा के गुरू थे, इनका मंदिर चंबा नगर में है, इनकी शिष्य परम्परा अभी तक है। मनीमहेश तीर्थ यात्रा की छड़ी यहां से लेकर अगवानी यात्रा करते हैं।
भरमौर, प्राचीन ब्रहमपुर जिला चंबा में चौरासी सिद्धों के मंदिर हैं, उनमें से कई टूट-फूट गए हैं। इन सबका सम्बंध गुरू गोरख नाथ के सम्प्रदाय से है।
जि़ला सिरमौर में जमदगिन ऋषि, उनके पुत्र परशुराम और परशुराम की माता रेणुका की तपोभूमि है। दियोथन स्थान पर परशुराम का

सिरमौर में जमदगिन ऋषि, उनके पुत्र परशुराम और परशुराम की माता रेणुका की तपोभूमि

सिरमौर में जमदगिन ऋषि, उनके पुत्र परशुराम और परशुराम की माता रेणुका की तपोभूमि

मंदिर है। रेणुका डल इन्हीं के कारण प्रसिद्ध तीर्थ बना है, जहां बड़ा मेला लगता है।
रामपुर से 17 किलोमीटर पर निरमंड स्थान है। उसके बीच हजारों वर्ष पुराना परशुराम का मंदिर है। यहां 12 वर्ष जंगलों में रहकर परशुराम ने तपस्या की थी। पांडवों का भी यहां वनवास काल में आगमन हुआ, कौरवों को परास्त करने की खुशी में बूढ़ी दीवाली नाम से यहां मेला लगता है।
श्री गुरू महात्मा ने चूड़धार पर्वत श्रेणी (सिरमौर) में भगवान शिव की तपस्या की। कालांतर में महात्मा श्रीगुरू लोक देवता शिरगुल बन गए। इसी नाम से पूजा होने लगी। कुल्लू घाटी में वसिष्ठ मुनि की तपोभूमि, मनु की तपोभूमि-दोनों के मंदिर मनाली के इर्द-गिर्द बने हैं। कुल्लू का मनीकरण क्षेत्र पार्वती की भ्रमण-स्थली रही हैं।
कुल्लू में अवलोकितेश्वर का मंदिर है और महात्मा बुद्ध की स्मृति में स्तूप है और 2० बौद्ध मठ थे। केलात नाम स्थान में जो सुल्तानपुर से कुछ दूर उत्तर में है, महामुनि कपिल का मंदिर है। कपिल मुनि को विष्णु के 24 अवतारों में छठा अवतार माना जाता है। कुल्लू में कपिल मुनि की तपोभूमि थी।

महर्षि व्यास की तपोभूमि बिलासपुर

महर्षि व्यास की तपोभूमि बिलासपुर

वनवास काल में पाण्डवों की कांगड़ा, कुल्लू और शिमला क्षेत्र भ्रमण स्थली रहे हैं। कांगड़ा से 12 मील पर नगरोटा सूरियां सडक़ पर मसरूर में चट्टान पर मंदिर, मूर्तियां एलोरा गुफाओं समान बने हैं। किंवदन्ति है कि यह मंदिर, प्रतिमाएं पाण्डवों द्वारा बनाई गई हैं।
पालमपुर तहसील के गोपालपुर और नगरी स्थानों के बीच एक घना वन था जो पालमपुर-चामुण्डा-धर्मशाला सडक़ के किनारे था, वहां एक छोटा सा भर्तृहरि का मंदिर है। कहा जाता है कि यह वन भर्तृहरि की तप: स्थली थी।
स्वामी चिन्मयानंद जी महाराज, विश्व हिंदु परिषद के संस्थापकों में प्रमुख, जगत प्रसिद्ध सन्यासी, संदीपनी आश्रम मुंबई के संस्थापक ने दाड़ी-धर्मशाला  के पास दूसरा संदीपनी आश्रम-तपोभूमि स्थापित की है। महर्षि व्यास की तपोभूमि बिलासपुर रही है।
मारकण्डेय ऋषि की तपोस्थली मारकण्ड जिला बिलासपुर में है। इन्हीं के नाम पर मार्कण्डेय पुराण है। इनके पिता का नाम भृकिण्डी ऋषि था।
माण्डव्य ऋषि ने व्यास नदी के तट पर एक महाशिला पर बैठकर तपस्या की थी। उनके नाम पर मंडी नगर का नाम पड़ा।

माण्डव्य ऋषि ने व्यास नदी के तट पर एक महाशिला पर बैठकर तपस्या की थी। उनके नाम पर मंडी नगर का नाम पड़ा।

माण्डव्य ऋषि ने व्यास नदी के तट पर एक महाशिला पर बैठकर तपस्या की थी। उनके नाम पर मंडी नगर का नाम पड़ा।

लाहौल में बोधिसत्व पद्मनाभ ने तप किया और त्रिलोकीनाथ मंदिर की नींव डाली।
धर्मशाला से उत्तर में चंबा जिला में बहुत ऊंचाई पर 7 झीलों का एक समूह है। इनमें बड़े डल का नाम लम्म डल है। यहां ऋषि दुर्वासा ने चिरकाल तक तपस्या की।
नादौन से 16 किलोमीटर पर कलेश्वर महादेव का मंदिर है। यहां ऋषि विश्वमित्र ने तपस्या की। यह कुछ नाम ज्ञात हैं जहां ऋषियों ने तपस्या की। वैसे चप्पा-चप्पा भूमि ऋषि-मुनियों, सिद्धों, सन्तों के नाम से जानी जाती है।

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