दलहन उत्पादन को बढावा देने के लिए किसानों को प्रोत्साहन : राधा मोहन सिंह

  • दलहन के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम एस पी) मे अच्छी वृद्धि
  • पहली बार दलहन के बफर स्टाक के सृजन की नीति

 नई दिल्ली: केंद्रीय कृषि एंव किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा है कि देश में दलहन उत्पादन को बढावा देने के लिए किसानों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। हमारी सरकार ने इस वर्ष दलहन के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम एस पी) मे अच्छी वृद्धि की है ताकि किसानो को उचित मूल्य मिल सके। हमने सभी दलहनों का समर्थन मूल्य 250 से 275 रुपए बढ़ाया है जैसे अरहर का समर्थन मूल्य 4350 से 4625 रुपए किया है तथा चने का समर्थन मूल्य 3175 से 3425 रुपए प्रति कुंटल किया है। हमारी सरकार ने पहली बार दलहन के बफर स्टाक के सृजन की नीति बनाई है। इसके अंतर्गत बफर स्टाक को निर्धारित करने की प्रक्रिया आरंभ कर दी गई है। इस वर्ष खरीफ की फसल से 50 हजार टन तथा रबी की फसल से 1 लाख टन दलहन का क्रय कर बफर स्टाक बनाया जाएगा। अभी तक सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही दलहन खरीदती थी किन्तु इस बार बफर स्टाक बनाने के लिए हम बाजार मूल्य जो समर्थन मूल्य से ऊपर है पर दलहन का क्रय कर रहे है। इससे दलहन की कीमतों के उतार चढ़ाव को रोकने में मदद मिलेगी। साथ ही किसानो को उचित मूल्य भी मिलेगा।

केंद्रीय कृषि एंव किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह आज यहां घरेलू दलहन का उत्पादन और आत्म निर्भरता की आवश्यकता विषय पर भारत नीति द्वारा आयोजित एक गोष्ठी में बोल रहे थे।  राधा मोहन सिंह ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2016 को अन्तर्राष्ट्रीय दलहन वर्ष के रूप में मनाने की घोषणा की गई है। इस वर्ष के अंतर्गत हमने किसानो को बीज की नई तकनीक एवं प्रसार के कार्यक्रम की योजना बनाई है तथा दलहन की ज्यादा पैदावार देने वाले बीजों की प्रजातियों के शोध पर भी हम अधिक जोर दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि कृषि एंव किसान मंत्रालय दलहन के उत्पादन को बढावा देने के लिए कई स्तर पर कार्य कर रही है एक तरफ जहां सरकार दलहन उत्पादन को बढावा देने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है और न्यूनतम समर्थन मूल्य बढा रही है वहीं राष्ट्रीय खादय सुरक्षा मिशन परियोजना के तहत राज्यों को साथ लेकर कई योजनाएं शुरू की है ताकि दलहन के मामले में भी देश आत्म निर्भर बन सके और यह काम कृषि मंत्रालय की प्राथमिकता में हैं।

उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र का कुल जीडीपी में 16 प्रतिशत शेयर होने के बावजूद आज भी हमारी आबादी का 50 प्रतिशत से अधिक कृषि पर निर्भर करता है। भारत दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता तथा आयातक है। हमारा दलहन का उत्पादन वर्ष 2013-14 में 19.25 मिलियन टन था तथा 2014-15 में 17.20 मिलियन टन था, यानि उत्पादन में करीब 2 मिलियन टन की कमी आई। इस वर्ष भी अच्छी वर्षा न होने के बावजूद हमारे देश में दलहन का उत्पादन पिछले वर्ष के समान ही रहने की संभावना है क्योकि इस वर्ष खरीफ की बुवाई में दलहन का रकबा 115 लाख हेक्टेयर रहा जबकि 2014 में खरीफ में यह रकबा 103 लाख हेक्टेयर था। इसी तरह इस वर्ष रबी में दलहन की बुवाई का रकबा आज तक 124 लाख हेक्टेयर है जबकि पिछले वर्ष इसी समय पर यह 122 हेक्टेयर था। वर्ष 2013-14 में 3.18 मिलियन टन दलहन का आयात किया गया और 2014-15 में 4.59 मिलियन टन का आयात किया। इस वर्ष अभी तक प्राइवेट सेक्टर ने 2.74 मिलियन टन (अप्रैल से अक्टूबर 2015) दलहन का आयात किया तथा सरकार ने 5 हजार टन का आयात किया जबकि साधारणतय: सरकार दलहन का आयात नहीं करती है।

राधा मोहन सिंह ने कहा कि हमारी सरकार ने राज्यों पर दबाव डालकर जमाखोरों के खिलाफ कड़े कदम उठवाए हैं, लगभग 15 हजार छापे मारे गए तथा 1 लाख 30 हजार टन दालों को जब्त किया है। मूल्य स्थिरीकरण कोश के अंतर्गत राज्यों को दलहन के मूल्य पर नियंत्रण करने पर सुविधा दी गई है। अभी तक इस कोष से तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओड़ीशा तथा दिल्ली ने अनुदान लिया है। स्वतंत्रता के बाद दलहन उत्पादन में लगातार वृद्धि हुई है तथापि उत्पादकता और उत्पादन में वृद्धि, माँग में वृद्धि की गति से नहीं हुई है। 1950-51 में 19.09 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्रफल से 8.41 मिलियन टन दलहन का उत्पादन हुआ व औसत उपज 441 किग्रा प्रति हैक्टेयर थी जबकि 2013-14 में 25.23 मिलियन हैक्टेयर से 19.27 मिलियन मीट्रिक टन उत्पादन हुआ व औसत उपज 764 किग्रा प्रति हैक्टेयर थी। दलहन उत्पादन में यह वृद्धि चावल व गेहूं जैसी अन्य फसलों की वृद्धि के समान नहीं है। प्रति व्यक्ति दाल की उपलब्धता 22.1 किग्रा प्रति वर्ष से घटकर 2013 में 15.3 किग्रा प्रति वर्ष हो गई है। इसकी तुलना में इस अवधि के दौरान चावल व गेहूं की प्रति व्यक्ति उपलब्धता क्रमशः 58 किग्रा प्रति वर्ष से बढ़कर 84.8 किग्रा प्रति वर्ष और 24 किग्रा प्रति वर्ष से बढ़कर 66.9 किग्रा प्रति वर्ष हो गई है।

उन्होंने कहा कि दलहन उत्पादन प्रभावित होने के कई कारण है। इन कारणों से उत्पादन व उपज में वृद्धि करना कठिन हो गया है। हमारी सरकार ने देश में दलहन के उत्पादन के बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एन एफ एस एम) परियोजना के अंतर्गत कई कदम उठाए है जैसे एनएफएसएम के कुल आवंटन का लगभग 50% दलहन के लिए दिया जाता है ताकि क्षेत्र और उत्पादकता वृद्धि के माध्यम से दलहनों का उत्पादन बढ़ाया जा सके। एनएफएसएम के दलहन घटक के अंतर्गत ग्यारहवी योजना मे 16 राज्यो के 468 जिलों से बढ़ाकर वर्ष 2014-15 से 27 राज्यो के 622 जिलों तक विस्तारित किया गया है। पूर्वोत्तर राज्यों एवं पहाड़ी राज्यों जैसे हिमांचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर एवं उत्तराखंड के सभी जिलों को सम्मिलित कर लिया गया है। अनाज, तिलहन, वाणिज्यक फसलों के साथ अंतर फसलन के रूप में दलहन की खेती और धान के खेतों के मुंडेर पर दलहन खेती को दलहन की खेती करके क्षेत्र विस्तार के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है।एनएफएसएम और पूर्वी भारत मे हरित क्रांति (बीजीआरईआई) के तहत धान की फसल की कटायी के बाद खाली क्षेत्र का उपयोग कर दलहन खेती के प्रदर्शन द्वारा दलहन का रकबा बढ़ाया जा रहा है ।

राधा मोहन सिंह ने कहा कि इतना ही नहीं रबी/ जायद सीजन में दलहन का क्षेत्र बढ़ाने के लिए अतिरिक्त राशि आवंटन की जा रही है। विभिन्न राज्यो मे ग्रीष्म कालीन मूंग की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। राज्य कृषि विश्वविद्ध्यालयों/आईसीएआर/सीजीआईएआर संस्थानो को भी दलहन के अनुसंधान के लिए राशि दी जा रही है। वर्ष 2015-16 से कृषि विज्ञान केन्द्रो द्वारा दलहन की नई तकनीकि एवं बीजो का प्रदर्शन किसानो के खेतो पर किया जा रहा है । इसके लिए 12 करोड़ रुपया आईसीएआर को दिये गए हैं। किसान उत्पादक संघो (एफ़ पी ओ) को विशिष्ट रूप से बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि बीज का उपज, खरीद और उन्नत प्राद्ध्योगिकियों को बढ़ावा देने, फसल विक्री मे उचित मूल्य मिलने मे, छोटे एवं सीमांत किसानो की सहायता की जा सके। इसके अलावा मिनि दाल मिलो को बढ़ावा दिया जा रहा है।

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