हिमाचल की प्राकृतिक खूबसूरती की छटा बिखरेती मनमोहक सुंदर घाटी किन्नौर, जो भी जाए इस अदभुत मनमोहक घाटी की खुबसूरती में खोकर रह जाए। किन्नौर की इस घाटी को बर्फ और झरनों की घाटी के साथ-साथ सौन्दर्य की खान तक कहा जाता है। यहां का सौन्दर्य नयनाभिराम है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन करना बहुत ही मुश्किल है।
किन्नौर
आसमान छूते पर्वत, खूबसूरत हरे-भरे पेड़, सेब और केसर की सौंधी-सौंधी महक, खुबसरत फूलों का परिधान ओढ़े घाटियां, बर्फीले झरनें, झर-झर बहती नदियां, सुंदरता व संस्कृति का परिधान ओढ़े परंपराएं। जो भी इन हरी भरी वादियों का दीदार करने जाएं अपने आपको इन खूबसूरत वादियों के हसीन नजारों में खुद को खो दे। किन्नौर प्रदेश का कबायली इलाका है जिसका जिक्र महाभारत काल में भी मिलता है। कुछ इतिहासकारों के मत में अर्जुन ने जिस ‘इमपुरुष’ नामक स्थान को जीता था, वह वास्तव में किन्नौर ही था। कुछ विद्वानों की राय में पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास का आखिरी समय यहीं गुजारा था। यह भी मान्यता है कि किन्नौर ने इसी क्षेत्र में महाभारत से बहुत पहले हनुमान के साथ राम की उपासना की थी।
पौराणिक किन्नरों की भूमि किन्नौर हिमाचल के उत्तर पूर्व में स्थित एक बेहद खूबसूरत जिला है। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों और हरे-भरे पेड़ों से घिरा यह क्षेत्र ऊपरी, मध्य और निचले किन्नौर हिस्सों में बंटा हुआ है। यहां पहुंचने का मार्ग दुर्गम होने के कारण यह क्षेत्र काफी लम्बे समय तक पर्यटकों से अछूता रहा है, लेकिन अब साहसिक और रोमांचप्रिय पर्यटक यहां बड़ी संख्या में आने लगे हैं। प्राकृतिक दृश्यावली से भरपूर इस नगर की सीमा तिब्बत से सटी हुई है, जो इसे सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बनाती है। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से लगभग 25० किमी. दूर राष्ट्रीय राजमार्ग 22 पर स्थित यह नगर स्थित है। पहाड़ों और जंगलों के बीच कलकल ध्वनि से बहती सतलुत और स्पीति नदी का संगीत यहां की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है। स्पीति नदी आगे चलकर खाब में सतलुज से मिल जाती है। विश्व की विशालतम जांस्कर और ग्रेट हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं के आकर्षक नजारे यहां से देखे जा सकते हैं। इस अनूठी घाटी की यात्रा हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से शुरू होती है और कहीं सुरम्य तो कहीं खतरनाक, ढलानदार पहाड़ी सडक़ों
पहाड़ों का वक्ष चीरकर जिस तरह सडक़ें बनाई गईं हैं, इंजीनियरों के अथक परिश्रम और कार्यकुशलता का नमूना हैं। रास्ते में झर-झर झरते झरनों को देखकर मन प्रफुल्लित हो उठता है। ऐसा ही सफर तय करके आता है ‘भावनगर”। हिमाचल की मशहूर संजय विद्युत परियोजना यहीं है। पूरी तरह से भूमिगत यह परियोजना उच्च स्तरीय तकनीक का जीवंत उदाहरण है। यहां से करीब दस किलोमीटर आगे वांगतू पुल है। पहले यहां पुलिस चौकी पर परमिट चैक किये जाते थे लेकिन अब यह क्षेत्र सैलानियों के लिये खोल दिये जाने के कारण ऐसा नहीं होता।
लेकिन औपचारिकता निभाने के लिये पुलिसकर्मी अपनी तसल्ली जरूर करते हैं। वांगतू से आगे आता है टापरी और फिर कड़छम। कड़छम इस जिले की दो प्रमुख नदियों सतलुज और वास्पा का संगम कहलाता है। वास्पा नदी यहां सतलुज के आगोश में समा जाती है। यहां से एक मार्ग इस घाटी के एक खूबसूरत स्थल सांगला को जाता है। सांगला किन्नौर की सर्वाधिक प्रसिद्ध और रमणीय घाटी है। समुद्र तल से करीब ढाई हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित सांगला घाटी को पहले वास्पा घाटी भी कहा जाता था। ऐसी भी मान्यता है कि पूरी सांगला घाटी कभी एक विशालकाय झील थी, लेकिन कालान्तर में इस झील का पानी वास्पा नदी में तब्दील हो गया और बाकी क्षेत्र हरियाली से लहलहा उठा। भले ही यह मात्र किंवदंती ही हो लेकिन रंगीन फसलों, फूलों का परिधान ओढ़े सांगला घाटी स्वर्ग से कम नहीं लगती। अनेक घुमने वालों ने अपने संस्मरणों में इस घाटी के नैसर्गिक सौन्दर्य का वर्णन किया है। सांगला में बेरिंग नाग मन्दिर और बौद्ध मठ दर्शनीय है। सांगला में ही कृषि विश्वविद्यालय का क्षेत्रीय अनुसंधान उपकेन्द्र स्थित है। सांगला के ऊपर कामरू गांव है। यहां का पांच मंजिला ऐतिहासिक किला कला का उत्कृष्ट नमूना है। गांव के बीच में ही नारायण मन्दिर और बौद्ध मन्दिर स्थित हैं और दोनों मन्दिरों का एक ही प्रांगण है। नारायण मन्दिर की काष्ठकला देखती ही बनती है। सांगला घाटी से किन्नर कैलाश के दर्शन भी किये जा सकते हैं। वास्तव में किन्नर कैलाश के पृष्ठ भाग में ही यह घाटी फैली हुई है। यहां पर आप किन्नौरी शोलें और टोपियां खरीद सकते हैं।
Jun 05, 2016 - 11:20 PM
अति सुंदर
Jun 06, 2016 - 12:14 PM
धन्यवाद दलबीर जी।