सर्पदंश के देवता: गुग्गा

हिमाचल: रक्षाबंधन से शुरू होकर जन्माष्टमी तक घर-घर सुनाई जाती है “गुग्गा गाथा”

गुग्गा गाथा के स्वर जब घर आँगन में गूँजते हैं तो धार्मिक आस्था से आनन्दित हो उठता है आस-पास का वातावरण 

सदियों से चली आ रही “गुग्गा गाथा” आज भी निचले हिमाचल में जीवित

निचले हिमाचल में रक्षाबंधन के दिन से ही घर-घर गुग्गा गाथा की भी शुरुआत हो जाती है। गुग्गा गाथा रक्षाबंधन से शुरू होकर जन्माष्टमी तक घर-घर सुनाई जाती है। गुग्गा जाहरवीर की छतरी आसपास के गांव-गांव अपनी यात्रा नौ दिन में पूरी करती है। यह एक प्रकार की लोकगाथा है। हिमाचल के लोकगीतों का निश्चित विवरण देना वैसे तो कठिन है, किसी भी स्थान के लोकगीतों को प्रकारों में बांधना लोकगीतों के सृजनकर्ता की भावनाओं को बांधना है। लोकगीत गाने वालों के ह्रदय से जो उद्गार फूट पड़ते हैं वही स्वर वातावरण में बिखर जाते हैं। हिमाचल में जीवन के प्रत्येक पहलू पर यहां का गीतकार प्राचीन से ही सजग रहा है और उसकी ग्राम्य भावुकता ने सभी प्रकार के लोकगीतों को जन्म दिया। उन सबमें प्रमुख है गुग्गा गाथा। लोकमान्यताओं के अनुसार गुग्गा महाराज जी को साँपों के देवता के रूप में पूजा जाता है तथा इन्हें जाहरवीर के नाम से भी जाना जाता है।

गांववासियों के सभी मनोरथ पूरे करते हैं गुग्गा महाराज

मान्यता यह भी है कि गुग्गा महाराज गांववासियों की इस पवित्र माह में जहरीले जीवों से रक्षा करते हैं और उनके मनोरथ भी पूरे करते हैं। जिनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है वे अपने आँगन में गुग्गा छतरी के साथ आए सभी सेवादारों को किसी एक दिन अपने घर में विशेष प्रकार के पकवान बनाकर परोसते हैं।

गुग्गा गाथा के स्वर जब घर आँगन में गूँजते हैं तो आस-पास का वातावरण एक अलग तरह की धार्मिक आस्था से आनन्दित हो उठता है। गुग्गा गाथा की सदियों से चली आ रही यह परम्परा आज तक संजो कर रखी है या फिर यूँ कह सकते हैं कि सदियों से पूर्वजों द्वारा आरंभ की गई यह गुग्गा गाथा आज भी निचले हिमाचल अथवा मण्डी जनपद में जीवित है।

जोगिन्दरनगर और इसके आस-पास के क्षेत्रों में नौ दिन घर घर गाई जाती है “गुग्गा गाथा”

जोगिन्दरनगर और इसके आस-पास के क्षेत्रों में गुग्गा जाहरवीर की छतरी रक्षाबंधन के दिन से (स्थानीय भाषा में जिसे उठाला कहा जाता है) उठ जाती है और नौवें दिन वापिस अपने मूल स्थान पर पूरे रीति-रिवाज़ से बिठा दी जाती है। नौवें दिन गूगा महाराज के कारदार के यहाँ ग्रामवासियों को आमंत्रित किया जाता है और विशेष प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं और ढोल नगाड़ों के साथ-साथ कीर्तन भजन गाए जाते हैं। इस प्रकार गूगा महाराज जी को पूरे पारम्परिक रीति रिवाज़ सहित उनके स्थान पर विराजमान कर देते हैं।

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