मूली

मूली एक महत्वपूर्ण शाकीय फसल

मौसमी खेती

मूलीमूली एक महत्वपूर्ण शाकीय फसल है जो जड़ तथा हरी पत्तियों दोनों रूपों में प्रयोग की जाती है। शीघ्रता से बढऩे के कारण इसे अन्य सब्जियों की क्यारियों के बीच में सहयोगी अथावा अत: फ़सल के रूप में आसानी से लगाया जा सकता है। मूली वा मूलक भूमी के अन्दर पैदा होने वाली सब्ज़ी है। वस्तुत: यह एक रूपान्तिरत प्रधान जड़ है जो बीच में मोटी और दोनों सिरों की ओर क्रमश: पतली होती है। मूली पूरे विश्व में उगायी एवं खायी जाती है। मूली की अनेक प्रजातियाँ हैं जो आकार, रंग एवं पैदा होने में लगने वाले समय के आधार पर भिन्न-भिन्न होती है। कुछ प्रजातियाँ तेल उत्पादन के लिये भी उगायी जाती है। मूली ज़मीन के अन्दर पैदा होने वाली सब्ज़ी है। वस्तुत: यह एक रूपान्तिरत प्रधान जड़ है जो बीच में मोटी और दोनों सिरों की ओर क्रमश: पतली होती है। पूरे भारतवर्ष में जड़ों वाली सब्जियों में मूली एक प्रमुख फ़सल है। यह अन्त: फ़सल तथा सहचर फ़सलों के रूप में अन्य फ़सलों के साथ दो लाइनों के बीच में तथा धीरे-धीरे बढऩे वाली फ़सलों के पौधों की लाइनों में उगाने के लिये यह बहुत ही लाभदायक फ़सल है। मूली में प्रोटीन, कैल्शियम, गंधक, आयोडिन तथा लौह तत्व पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इसमें सोडियम फास्फोरस, क्लोरीन तथा मैग्नीशियम भी हैं। मूली, विटामिन-ए का खज़़ाना है। विटामिन-बी और सी भी इसमें प्राप्त होते हैं। इसके साथ ही मूली के पत्ते अधिक पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। मूली के पत्ते गुणों की खान हैं, इनमें खनिज लवण, कैल्शियम, फास्फोरस आदि अधिक मात्रा में होते हैं।

भूमि और जलवायू

मूली को सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है परन्तु अच्छे परिणाम प्राप्त करने हेतु बलुई दोमट मिट्टी अच्छी होती है। उत्तरी भारत के मैदानी भागों में खरीफ में इसे पछेती फ़सल तथा रबी में शाकीय फ़सल के रूप में उगाया जाता है। इस फ़सल की कि़स्में जलवायु तथा रबी में शाकीय फ़सल के रूप में उगाया जाता है। इस फ़सल की कि़स्में जलवायु सम्बन्धी जरूरतों तापमान में बहुत विशिष्ट होती है। इसलिए किसी विशेष मौसम में कौन सी किस्म का चयन करना अति महत्वपूर्ण है। इसकी खेती प्राय: सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। बलुई दोमट और दोमट भूमि में जड़ों की बढ़वार अच्छी होती है किन्तु मटियार भूमि, खेती के लिए अच्छी नहीं मानी जाती है। मूली की खेती करने के लिए गहरी जुताई की आवश्यकता होती है। क्योंकि इसकी जड़ें गहराई तक जाती है अत: गहरी जुताई करके मिट्टी भुरभुरी बना लेते हैं।

 किस्में

छोटी जड़ (शीतोष्ण प्रकार की)

व्हाहट आइसकिल – यह किस्म शुद्ध सफेद, छोटी ,पतली तथा हल्की जडें वाली होती है तथा 30 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह सर्दी के मौसम में बुआई के लिए उपयुक्त है।

रैपिड रेड व्हाइट टिप्ड – यह तेजी से बढऩे वाली लाल-सफेद रंग की मूली है। इसकी जडें छोटी , लाल तथा सफेद रंग की होती है तथा यह 25 दिन से पककर तैयार हो जाती है। घरों अथवा किचिन गार्डन में सर्दी के मौसम में बुआई के लिए उपयुक्त है।

लम्बी जड़ों वाली कि़स्में
पूसा देशी : इसकी जडे 30 से 35 सें.मी.तक लम्बी होती है तथा, ऊपर का भाग हरा तथा शेष भाग सफेद होता है। तथा यह स्वाद में हल्की तीखी होती हैं व, 50 से 55 दिन में तैयार हो जाती है । यह मध्य अगस्त से सितम्बर तक बुआई के लिए उपयुक्त है।
पूसा रेशमी:   इसकी जडें 30 से 35 सें.मी. लम्बी होती हैं तथा मूली के ऊपर कर भाग हरा तथा शेष भाग सफेद होता है यह स्वाद में हल्की तीखी होती हैं, परिपक्वता अवधि 50 से 60 दिन होती है।
जापानी सफेद:  इसकी जडें 30 से 40 सें.मी. लम्बी , बिलकुल सफेद, स्वाद में कम तीखी तथा आमतौर पर मोटी होती है। यह अक्टूबर से दिसम्बर तक बुआई के लिए उपयुक्त हाती है तथा 60 से 65 दिनों में तैयार हो जाती है।
पूसा हिमानी :    इसकी जडें 30 से 35 सें.मी. लम्बी,होती है तथा मूली का ऊपर का भाग हरा तथा नीचे का भाग सफेद होता है। यह स्वाद में हल्की तीखी तथा 6० से 65 दिन में तैयार हो जाती है। यह दिसम्बर से फरवरी तक बुआई के लिए उपयुक्त है।
पूसा चेतकी:  इसकी जडें बिल्कुल सफेद, 18 से 20 सें.मी. लम्बी, हल्की तीखी तथा 40 से 45 दिन में हो जाती है। मध्य अप्रैल से अगस्त तक बुआई के लिए उपयुक्त, हालांकि गर्मियों में पैदावार कम होती है। लेकिन बाजार में इस समय फ़सल की कमी के कारण ज्यादा भाव मिलने से इसकी भरपाई हो जाती है।
बीज दर: छोटी जड़ वाली कि़स्मों का 10 से 12 किलो ग्राम तथा लम्बी जड़ वाली किसमों का 8 से 10 किलो ग्राम प्रति हेक्टेअर होता है।
बुआई  का तरीका: सीधी बुआई की अपेक्षा 45 सें.मी. की दूरी पर मेंड पर उथली बुआई करना उपयुक्त रहता है। बीजों के अंकुरण के बाद पौध के बीच फासला 8 से 10 सें मी. रखते हैं तथा बीच के पौधे को निकाल देते हैं। क्यारियों तथा पौधों से पौधे की दूरी किस्म तथा बुआई के मौसम पर निर्भर करता है।

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