- मिशन से जुड़ी हैं गरीब परिवारों की 50 हजार महिलाएं
प्रदेश में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनएलआरएम) को वर्ष 2013 में लागू किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य सभी गरीब परिवारों तक पहुंचना और सम्मानजनक एवं बेहतर जीवन यापन करने के लिय गरीबी से उभरने तक इनका पोषण करना है। राज्य में बीपीएल एवं गरीब परिवारों से लगभग 50 हजार महिलाओं को स्वंय सहायता समूहों के माध्यम से मिशन की मुख्यधारा से जोड़ा गया है।
मिशन के अन्तर्गत गरीब परिवारों की महिलाओं के सशक्तिकरण के लिये उन्हें बार-बार वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाई जा रही है। गरीबी उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल करने के लिये गरीब परिवारों की महिलाओं में सामाजिक संचेतना, संस्थागत और क्षमता निर्माण, वित्तीय समावेशन, संतृप्ति दृष्टिकोण, कौशल उन्नयन और सतत् आजीविका का सृजन करना है। प्रथम चरण में यह कार्यक्रम राज्य के पांच विकास खण्डों क्रमशः कण्डाघाट, मण्डी सदर, नूरपुर, हरोली और बसन्तपुर में कार्यान्वित किया जा रहा है। हालांकि, शेष बचे विकास खण्डों में भी यह कार्यक्रम आंशिक तौर पर लागू किया जा चुका है।
- प्रभावी कार्यान्वयन के लिए 1497 लाख रुपये स्वीकृत
मिशन के अन्तर्गत केन्द्र प्रदेश को कुल 1496.98 लाख रूपये की धनराशि स्वीकृत की है जिसमें से 333 लाख रूपये राज्य सरकार ने अपने हिस्सेदारी के तौर पर वहन किए है।
कार्यक्रम के तहत महिलाओं को निधि प्रबन्धन के बारे में दक्ष बनाया जा रहा है। इसके लिये विभाग इन महिलाओं को पंचसूत्रा प्रशिक्षण जिसमें नियमित बैठकें, नियमित बचत, नियमित आन्तरिक लेन-देन, ऋण चुकता करना तथा नियमित रिकार्ड संवर्धन करने बारे प्रशिक्षिण प्रदान कर रहा है। प्रदेश में 5542 महिलाओं को प्रशिक्षण प्रदान किया जा चुका है। इससे महिलाओं को आजीविका का सृजन करके आर्थिकी बढ़ाने में मदद मिली है।
- ग्राम संगठनों को 50 लाख रुपये की सीआई निधि प्रदान
प्रदेश में मिशन के तहत आरम्भ में केवल बीपीएल परिवारों की महिलाओं को ही शामिल किया गया था, लेकिन बाद में अति गरीब एवं आंशिक तौर पर गरीब परिवारों की महिलाओं को भी शामिल किया गया है। ग्रामीण स्तर पर इन महिलाओं के स्वयं सहायता समूह बनाए गये हैं। स्वंय सहायता समूह में कम से कम 5 महिलाएं होना अनिवार्य है। 10 से 40 स्वयं सहायता समूहों के ग्राम संगठन बनाए गए हैं जबकि इतने ही ग्राम संगठनों की कलस्टर लेवल फेडरेशन बनाई गई हैं। इनमें से 20 स्वंय सहायता समूहों का विभाग ने पंजीकरण कर लिया है। प्रदेश में 16199 स्वंय सहायता समूहों का चयन करके इन्हें एमआईएस पोर्टल डाटा बेस मेें अपलोड किया गया है। ग्राम संगठनों को सीधे तौर पर 50 लाख रूपये की सामुदायिक निवेश निधि (सीआईएफ) प्रदान की गई है और इस राशि का स्वरोजगार एवं आर्थिक गतिविधियां बड़ाने के लिये निजी तौर पर इस्तेमाल करने के लिये ये संगठन स्वतन्त्र हैं।
- स्वंय सहायता समूह को 10 लाख रुपये तक की ऋण सुविधा
स्वयं सहायता समूहों को आजीविका अर्जित करने एवं किसी भी प्रकार के व्यवसाय करने के लिये इन्हें बैंकों से सम्बद्ध करके सात प्रतिशत ब्याज पर ऋण प्रदान किया जा रहा है। स्वयं सहायता समूह को इसके सृजन के छः माह के पश्चात विभाग द्वारा रिवॉल्विंग फंड प्रदान किया जा रहा है। रिवॉल्विंग फंड तथा निजी बचत को मार्जिन मनी मानकर बैंक द्वारा प्रत्येक समूह को 2 से 3 लाख रूपये तक ऋण प्रदान कर रहा है। स्वंय सहायता समूह की उपलब्धियों के आधार पर यह ऋण बार-बार प्रदान किया जाता है और एक समूह को अधिकतम 10 लाख रूपये तक ऋण प्रदान किया जा सकता है।
- स्वंय सहायता समूहों को 72 करोड़ के ऋण उपलब्ध
प्रदेश में अभी तक 7170 स्वंय सहायता समूहों को विभिन्न बैंको से सम्बद्ध करके 72 करोड रूपये के ऋण उपलब्ध करवाए गए हैं। इन समूहों को 3.63 करोड़ रूपये रिवॉल्विंग फंड के रूप में विभाग द्वारा वितरित किये गए हैं। ऋण लेने वाली महिलाओं के समूह द्वारा एक वर्ष के भीतर ऋण की अदायगी करने पर ब्याज में 3 प्रतिशत की छूट प्रदान की जा रही है, इस तरह महिलाओं को केवल चार प्रतिशत ब्याज ही देना पडे़गा।
वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान स्वंय सहायता समूहों के संस्थानीकरण एवं क्षमता निर्माण पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। प्रदेश सरकार ने राज्य में ही महिला स्त्रोत को विकसित किया जा रहा है ताकि बाह्य निर्भरता को समाप्त किया जा सके। महिला स्त्रोत स्वंय सहायता समूहों में से ही होेगी। इस कडी में 17 महिलाओं को प्रशिक्षित किया जा चुका है। ये महिलाएं गांव में स्वंय सहायता समूहों को आगे प्रशिक्षिण करेंगी जिसके लिये उन्हें 500 रूपये प्रतिदिन की दर से मानदेय प्रदान किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त, 50 और महिलाओं को प्रशिक्षण हेतु रायबरेली भेजा जा रहा है। इस वर्ष 150 महिला स्त्रोत तैयार करने का लक्ष्य है।