गेहूँ विश्वव्यापी फसल...

गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए मटियार दोमट भूमि सबसे अच्छी : डॉ. वालिया

गेहूँ (ट्रिटिकम जाति) विश्वव्यापी महत्व की फसल

गेहूँ (ट्रिटिकम जाति) विश्वव्यापी महत्व की फसल

प्रश्र: अगेती, कम उर्वरा व असिंचित परिस्थिति में कौन सी प्रजाति गेहूं की खेती के लिए लाभदायक रहती है?

उत्तर: ऐसी परिस्थिति के लिए केंद्र द्वारा एच.एस. 277 प्रजाति विकसित की गई जिसकी खेती किसानों द्वारा सफलतापूर्वक की जा रही है। इस प्रजाति में कम तापमान को सहन करने की क्षमता भी है। लेकिन अब इसके विकल्प के रूप में गेहूं की नई प्रजाति वी.एल. 829 बीजाई के लिए लाभदायक है। इस प्रजाति को 75 दिनों के बाद हरे चारे के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है और कटाई के बाद इसका लाभ पुन: किसान उठा सकते हैं।

प्रश्र: नियमित समय पर सिंचित व असिंचित दशा में बुआई के विषय में जानकारी दें?

उत्तर: उत्तर पर्वतीय क्षेत्र का लगभग 83 प्रतिशत क्षेत्र असिंचित है। इस केंद्र द्वारा विकसित एचएस. 240 प्रजाति सिंचित व असिंचित परिस्थितियों में अच्छी पैदावार दे रही है तथा पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों की सबसे लोकप्रिय प्रजाति है। यह प्रजाति दूसरे देशों जैसे नेपाल व मंगोलिया में भी प्रचलित है। नियमित दशा में सिंचित व अंसिचित दशा में बुआई का समय भिन्न होता है असिंचित दशा के लिए समय पर खेत में हल चलाकर सुहागा लगाना चाहिए जिससे उपलब्ध नमी संग्रहित रह सके। असिंचित दशा में बुआई 15 अक्टूबर 30 अक्टूबर के मध्य अवश्य कर लेनी चाहिए। परंतु सिंचित अवस्था में बुआई 1 नवंबर से 15 नवंबर के मध्य करनी चाहिए।

प्रश्र: पछेती बुआई एवं असिंचित परिस्थिति में आप किसानों के लिए क्या कहना चाहेंगे?

उत्तर: उत्तर पर्वतीय भाग के लगभग 30-35 प्रतिशत क्षेत्र में गेहूं की बुआई देरी से की जाती है। बुआई के लिए उपयुक्त नमी न होने के कारण किसानों को कभी-कभी गेहूं की बुआई दिसंबर माह तक करनी पड़ती है। इन परिस्थिति के लिए केंद्र द्वारा एसएस. 295 का विकास किया गया है जोकि पर्वतीय क्षेत्रों में गेहूं के विकास में एक महत्वपूर्ण उपलब्धी रही है तथा किसानों की सबसे लोकप्रिय प्रजाति है। वर्ष 2003 में एक और प्रजाति शिवालिक एचएस 420 किसानों की सेवा में अनुमोदित की गई जिसको प्रचालित करने के प्रयास किये जा रहे हैं।

प्रश्र: अच्छी किस्म की गेहूं की पैदावार के लिए किसानों को क्या करना चाहिए?

उत्तर: भिन्न-भिन्न राज्यों में अपनी महत्वपूर्ण स्थानीय किस्में भी उपलब्ध हैं। अच्छी किस्मों की अब कमी नहीं हैं। किसान अपने अनुभव के आधार पर, स्थानीय प्रसार कार्यकर्ता की सहायता से अच्छी व अधिक पैदावार वाली किस्में चुन लेता है। अच्छी पैदावार के लिए अच्छे बीज की आवश्यकता होती है और इस बारे में किसी भी प्रकार का समझौता नहीं किया जा सकता। भूमि का चुनाव गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए मटियार दोमट भूमि सबसे अच्छी रहती है, किन्तु यदि पौधों को सन्तुलित मात्रा में खुराक देने वाली पर्याप्त खाद दी जाए व सिंचाई आदि की व्यवस्था अच्छी हो तो हलकी भूमि से भी पैदावार ली जा सकती है। क्षारीय एवं खारी भूमि गेहूं की खेती के लिए अच्छी नहीं होती है। जिस भूमि में पानी भर जाता हो, वहां भी गेहूं की खेती नहीं करनी चाहिए। हमारे किसान समन्यत: गेहूं की बीजाई छींटा मारकर करते हैं यदि किसान लाइनों में बीजाई करें तो अच्छी पैदावार की जा सकती है।

प्रश्र: गेहूं की फसल उगाने के लिए भूमि किस प्रकार से तैयार की जानी चाहिए?

उत्तर: खेत की मिट्टी को बारीक और भुरभुरी करने के लिए गहरी जुताई करनी चाहिए। बुआई से पहले की जाने वाली परेट (सिंचाई) से पूर्व तवेदार हल (डिस्क हैरो) से जोतकर पटेला चला कर मिट्टी को समतल कर लेना चाहिए। बुआई से पहले 25 कि.ग्रा.। प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 1 प्रतिशत बी. एच. सी मिला देने से फसल को दीमक और गुझई के आक्रमण से बचाया जा सकता है। यदि बुआई से पहले खेत में नमी नहीं है तो एक समान अंकुरण के लिए सिंचाई आवश्यक है।

प्रश्र: गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए कौन सी महत्वपूर्ण बातें हैं जो ध्यान में रखनी चाहिए?

उत्तर: भौगोलिक परिस्थिति एवं वातावरण की अनुकूलता अनुसार सही प्रजाति का चयन व शुद्ध एवं शोधित प्रमाणिक बीज का उपयोग उचित रखना अति आवश्यक है। वहीं संतुलित उर्वरकों के अलावा, गोबर की खाद या कम्पोस्ट या केंचुआ खाद का उपयोग भूमि की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखने के लिए आवश्यक है जिसका ध्यान रखना जरूरी है। असिंचित क्षेत्रों में वर्षा ऋतु के जल का संग्रहण करके उसका समुचित उपयोग लाभदायक रहता है। बीज जनित बीमारियां कडंवा रोग पर नियंत्रित करने के लिए बीज को वीटावैक्स या वेबीस्टीन की 2 ग्राम प्रतिकिलो ग्राम बीज के दर से उपचारित करके बीजाई करें। फसल की कटाई के बाइ इसके अवशेष न जलाएं। ताकि भूमि में उपस्थित लाभदायक सुक्ष्म जीवों को नष्ट होने से बचाया जा सके। ऐसा करने पर भूमि बंजर होने बच सकेगी और पर्यावरण भी प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा।

प्रश्र: किसानों को कितनी मात्रा में खेत में बीज डालना चाहिए?

उत्तर: सामान्यत: समय पर बीजाई व अगेती बीजाई के लिए मध्यम आकार के दानों की प्रजाति का 100 किलो ग्राम यानि 8 किलो ग्राम प्रति बीघा प्रति हेक्टियर बीज डालना चाहिए। लेकिन वहीं पछेती बीजाई के लिए 25 प्रतिशत से अधिक बीज डालने की सलाह दी जाती है।

प्रश्र: आप किसानों को कौन-कौन सी खाद कितनी मात्रा में प्रयोग करने की सलाह देते हैं?

उत्तर: असिंचित दशा में 40 किलो प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन व 20 किलो प्रति हेक्टेयर फास्फोरस डालने की सलाह दी जाती है। और वहीं सिंचित अवस्था में 120 किलो प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन, 60 किलो प्रति हेक्टेयर फॉस्फोरस व 60 किलो प्रति हेक्टेयर पोटाश प्रयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा की बीजाई के समय व शेष आदि मात्रा को दो बार में पहली और दूसरी सिंचाई के बाद प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्र: रतुआ रोगों से गेहूं की फसलों का बचाव किस प्रकार किया जा सकता है?

उत्तर: रतुआ रोगों द्वारा किए जाने वाले नुकसान से फसलों को बचाने के लिए रतुआ रोगधी प्रजातियों का चयन करना चाहिए और पीला रतुआ रोग का प्रकोप होने पर प्रोपीकोनाजोल 0.1 प्रतिशत का छिडक़ाव करने पर इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।

प्रश्र: क्या कोई किसान आपके पास फसलों संबंधी जानकारी लेने आ सकता है?

उत्तर: जी हां, हमारे  संस्थान में कोई भी किसान आकर फसलों व उनकी किस्मों संबंधी जानकारी ले सकता है। किसान भाईयों को हम तकनीकी सलाह, फसलों के रोग, उनके बचाव की विस्तृत जानकारी देने के लिए हमेशा तैयार है ताकि हमारे किसानों को कृषि संबंधी सही जानकारी मिल सके।

Pages: 1 2

सम्बंधित समाचार

अपने सुझाव दें

Your email address will not be published. Required fields are marked *