- सरकार का विदेशी पर्यटकों के आगमन में भारत की हिस्सेदारी को 0.68 फीसदी से बढ़ाकर 1.00 फीसदी करने का प्रस्ताव : डॉ. महेश शर्मा
- भारत की समृद्ध सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, धार्मिक एवं प्राकृतिक विरासत में पर्यटन के विकास और रोजगार सृजन की अपार संभावनाएं
- ‘केंद्र और राज्य सरकारों के एकीकृत एवं आपसी तालमेल वाले प्रयासों से मौजूदा पर्यटन स्थलों के मानकों को बेहतर करने और वैश्विक मानकों पर खरे उतरने वाले नए पर्यटन स्थलों का विकास करने की जरूरत : डॉ. महेश शर्मा
- पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति की बैठक आयोजित
नई दिल्ली: पर्यटन एवं संस्कृति राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. महेश शर्मा ने कहा है कि पर्यटन मंत्रालय ने वर्ष 2016-17 तक अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों के आगमन में भारत की हिस्सेदारी को मौजूदा 0.68 फीसदी से बढ़ाकर 1.00 फीसदी करने का लक्ष्य रखा है। डॉ. महेश शर्मा आज यहां पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध संसदीय सलाहकार समिति की बैठक को संबोधित कर रहे थे। पर्यटन मंत्रालय की बैठक का विषय (थीम) ‘स्वदेश दर्शन एवं प्रसाद (तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक संवर्धन अभियान) योजनाएं’ और संस्कृति मंत्रालय का विषय ‘क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्रों का कामकाज’ था। मंत्री ने कहा कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, धार्मिक एवं प्राकृतिक विरासत में पर्यटन के विकास और रोजगार सृजन की अपार संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा, ‘केंद्र और राज्य सरकारों के एकीकृत एवं आपसी तालमेल वाले प्रयासों से मौजूदा पर्यटन स्थलों के मानकों को बेहतर करने और वैश्विक मानकों पर खरे उतरने वाले नए पर्यटन स्थलों का विकास करने की जरूरत है।’
डॉ. शर्मा ने यह विचार व्यक्त किया कि धार्मिक पर्यटन देश में घरेलू पर्यटन का एक महत्वपूर्ण खंड (सेगमेंट) है और देश के विभिन्न हिस्सों में दुनिया के कई महत्वपूर्ण धर्मों के बड़े एवं छोटे तीर्थ स्थल हैं। तीर्थ स्थलों पर बेहतर सेवाओं और बुनियादी सुविधाओं से तीर्थयात्रियों को कहीं बेहतर आध्यात्मिक अनुभव हो सकते हैं।
मंत्री ने सदस्यों को यह जानकारी दी कि पर्यटन मंत्रालय की दो नई योजनाओं ‘स्वदेश दर्शन’ और ‘प्रसाद’ का उद्देश्य विषय (थीम) आधारित पर्यटन सर्किट विकसित करना और तीर्थ यात्रा से जुड़े पर्यटन स्थलों की पहचान एवं विकास करना है। इन दोनों ही योजनाओं को मिशन के रूप में क्रियान्वित किया जा रहा है।
क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों (जेडसीसी) का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इन केंद्रों के माध्यम से हमने अपने देश की समृद्ध विविधता का विकास किया है और उसे बढ़ावा दिया है। इसके साथ-साथ इनसे लोक और जनजातीय कलाओं को प्रोत्साहन देने के अलावा विलुप्त हो रही कलाओं के संरक्षण में भी मदद मिली है। सभी सात क्षेत्रीय सांस्कृति केंद्र अपने-अपने क्षेत्रों में कलाओं के प्रदर्शन और प्रसार के सरंक्षण, नवाचार और संवर्धन में भी मदद करते हैं। सभी क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों के लिए एक साझा मानव संसाधन विकास (एचआरडी) नीति तैयार की गई है। जल्द ही इन केंद्रों के उपकेंद्रों को भी सभी राज्यों में स्थापित किया जाएगा।
मंत्री ने इन सभी 7 क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों के सहयोग से संस्कृति मंत्रालय द्वारा 1 से 8 नवम्बर, 2015 तक जनपथ, नई दिल्ली में आयोजित पहले राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव की जोरदार सफलता के बारे में जानकारी दी। अब यह महोत्सव एक वार्षिक आयोजन बन गया है और इस महोत्सव में भारतीय संस्कृति के विशिष्ट तत्व अर्थात एकता में अनेकता का प्रदर्शन किया गया है। जिसकी जनता ने बड़ी सराहना की है।