घरेलू हिंसा अधिनियम

अधिवक्ता - रोहन सिंह चौहान

अधिवक्ता – रोहन सिंह चौहान

हमें अक्सर देखने और सुनने को घरेलु हिंसा की घटनाएं मिलती हैं। वहीं महिलाओं पर होने वाली हिंसा की खौफनाक खबरें चर्चा में रहती हैं और फिर आप भी भूल जाते हैं और हम भी। इन सबके खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम बनाया गया है लेकिन जानकारी के अभाव में पीडि़ताएं इनका फायदा नहीं उठा पातीं। घरेलु हिंसा जी हां इस बार हम आपको घरेलु हिंसा को रोकने के लिए बनाए गए घरेलू हिंसा अधिनियम और घरेलु हिंसा क्या होती है? इसके बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। महिलाएं इसके बारे में किस प्रकार शिकायत कर सकती है? घरेलु हिंसा के मुख्य कारण क्या हैं? इसमें पुलिस की क्या भूमिका रहती है? आखिर घरेलू हिंसा कानून के तहत कौन अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है और इसके लिए क्या-क्या कानूनी प्रावधान हैं? इसके बारे में विस्तार से हमें जानकारी देने जा रहे हैं शिमला के एडवोकेट रोहन सिंह चौहान:

घरेलु हिंसा अधिनियम का निर्माण 2005 में किया गया तथा 26 अक्तूबर 2006 से इसे लागु किया गया।  ये कानून उन महिलाओं के लिए है जो घर के भीतर होने वाली किसी भी प्रकार की हिंसा से पीडि़त हैं।  ये हिंसा शारीरिक और मानसिक दोनों ही प्रकार की हो सकती हैं जेसे अपशब्द कहे जाना, मारपीट करना, दहेज इत्यादि न लाने पर अपमान करना, बिना वजह रोक-टोक करना इत्यादि। जहां तक घरेलु हिंसा की मुख्य वजहें हैं तो ज्यादातर वजहें महिला के चरित्र पर संदेह करना, पुरुष में अधिक शराब की लत होना, महिला को स्वावलंबी होने से रोकना, शिक्षा का अभाव और आर्थिक तंगी जैसे कारण अधिकतर रहते हैं।

वहीं इसमें जहां पुलिस की भूमिका की बात होती है तो इसमें पुलिस की भी अह्म भूमिका होती है। घरेलु हिंसा के अधिकतर मामलों में पुलिस आमतौर पर शिकायत दर्ज नहीं करती। केवल रोजनामचे में ही लिखती है। ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर बार पुलिस शिकायत तक दर्ज नहीं करती।  वहीं अधिकतर पुलिस थानों में 2-3 महिला पुलिस कर्मी होती हैं जिस वजह से भी महिलाएं अपनी आपबीती ढंग से नहीं सुना पाती हैं। उधर पुलिस भी ज्यादातर बार घर के अन्दर ही ऐसे मामलों को सुलझाने की राय देती है लेकिन भविष्य में महिला के साथ ऐसा नहीं होगा उसकी जिम्मेदारी पुलिस नहीं देती। हालांकि पुलिस का ये कर्तव्य बनता है कि वे महिला की शिकायत सुने और एफआईआर दर्ज कर उसकी एक कॉपी पीडि़त महिला को दे। यदि पीडि़ता पुलिस की मदद भी चाहती है तो उसे वो भी मिले।

महिला उत्पीडऩ से मुक्ति के लिए पारिवारिक अदालतों का गठन सन् 1984 में किया गया था।  लेकिन इन अदालतों में गवाहों के बयान पर बहुत जोर रहता है जिसके चलते कई बार गवाह जुटाना काफी मुश्किल हो जाता है। क्योंकि जाहिर है कि अदालत के चक्कर से हर कोई बचना चाहता है। इसके लिए जरूरी है कि इन अदालतों में संशोधन हो ताकि पीडि़त महिला को न्याय पाने में कठिनाई न हो।

घरेलू हिंसा के तहत बहुत सी हिंसात्मक घटनाएं आती हैं जैसे शारिरिक हिंसा इसमें मारपीट करना, थप्पड़ मारना, ठोकर मारना, दांत से काटना, लात-मुक्का मारना, धकेलना, किसी अन्य रीति से शारीरिक पीड़ा या क्षति पहुंचाना। वहीं अगर मौखिक और भावनात्मक हिंसा भी आती है जिसमें अपमान करना, गालियां देना, चरित्र और आचरण पर दोषारोपण, पुत्र न होने पर अपमानित करना, दहेज इत्यादि न लाने पर अपमान, नौकरी करने से निवारित करना, नौकरी छोडऩे के लिये दबाव डालना, घटनाओं के सामान्य क्रम में किसी व्यक्ति से मिलने से रोकना, विवाह नहीं करने की इच्छा पर विवाह के लिये विवश करना, पसंद के व्यक्ति से विवाह करने से रोकना, किसी विशेष व्यक्ति से विवाह करने के लिए विवश करना, आत्महत्या करने की धमकी देना, कोई अन्य मौखिक या भावनात्मक दुर्व्यवहार, ये सब मौखिक और भावानात्मक हिंसा में आते हैं। वहीं एक होती है आर्थिक हिंसा जिसमें बच्चों के अनुरक्षण के लिये धन उपलब्ध न कराना, बच्चों के लिए खाना, कपड़े और दवाइयां उपलब्ध न कराना, रोजगार चलाने से रोकना अथवा उसमें विघ्न डालना, रोजगार करने के अनुज्ञात न करना, वेतन पारिश्रमिक इत्यादि से आय को ले लेना, वेतन पारिश्रमिक उपभोग करने का अनुज्ञात न करना, घर से निकलने को विवश करना।
घरेलू हिंसा अधिनियम : घरेलू हिंसा अधिनियम का निर्माण 2005 में किया गया और 26 अक्तूबर 2006 से इसे लागू किया गया।

यह अधिनियम महिला बाल विकास द्वारा ही संचालित किया जाता है। शहर में महिला बाल विकास द्वारा जोन के अनुसार आठ संरक्षण अधिकारी नियुक्त किए गए हैं जो घरेलू हिंसा से पीड़ति महिलाओं की शिकायत सुनते हैं और पूरी जांच पड़ताल करने के बाद प्रकरण को न्यायालय भेजा जाता है। कानून ऐसी महिलाओं के लिए है जो कुटुंब के भीतर होने वाली किसी किस्म की हिंसा से पीडि़त हैं। इसमें अपशब्द कहे जाने, किसी प्रकार की रोक-टोक करने और मारपीट करना आदि प्रताडऩा के प्रकार शामिल हैं। इस अधिनियम के अंतर्गत महिलाओं के हर रूप मां, भाभी, बहन, पत्नी व किशोरियों से संबंधित प्रकरणों को शामिल किया जाता है। घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत प्रताडि़त महिला किसी भी वयस्क पुरुष को अभियोजित कर सकती है अर्थात उसके विरुद्ध प्रकरण दर्ज करा सकती है। हालांकि अभी भी कुछ संशोधन होने की आवश्यकता है। अधिनियम महिलाओं के हित के लिए बनाया गया है इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन कहीं-कहीं कुछ ऐसी बातें हैं जिनका उपयोग बचाव पक्ष वाले कर लेते हैं और उन्हें रियायत मिल जाती है। जैसे-न्याय के संबंध की बात है तो अधिनियम में प्रयास करने जैसे शब्द का उपयोग कर दिया गया है यही वजह है कि दो माह की जगह पेशी पर पेशी बढ़ती जा रही हैं और कुछ किया नहीं जा सकता।  महिलाओं के संरक्षण का काननू भी पारित होना चाहिए।  इन प्रकरणों के निपटारे के लिए विशेष अदालतों का गठन हो। महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों।
घरेलु हिंसाजहां आपने पहले बात की थी कि घरेलू हिंसा कानून के तहत कौन अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है और इसके लिए क्या-क्या कानूनी प्रावधान हैं तो वो मैं बता दूं कि प्रोटेक्शन ऑफ वूमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट (डीवी एक्ट) के तहत कोई भी महिला जो डोमेस्टिक रिलेशन में रहती है वह शिकायत कर सकती है। जो महिला डोमेस्टिक रिलेशन में है और एक ही छत के नीचे अन्य के साथ रहती हो तो वह महिला प्रताडऩा की स्थिति में शिकायत कर सकती है। डीवी एक्ट के तहत एक महिला जो शादी के रिलेशन में हो तो वह किसी भी दूसरे शख्स के खिलाफ शिकायत कर सकती है। वह दूसरा शख्स कोई पुरुष व महिला दोनों हो सकते हैं लेकिन वह डोमेस्टिक रिलेशन में होने चाहिए। अगर महिला शादी के रिलेशन में नहीं है और उसके साथ डोमेस्टिक रिलेशन में प्रताडऩा होती है तो वह ऐसी स्थिति में इसके लिए जिम्मेदार पुरुष को प्रतिवादी बना सकती है। कोई पत्नी, बहन, मां, भाभी, बेटी आदि अगर डोमेस्टिक रिलेशन में हों और एक ही घर के नीचे रह रही हों तो वह डीवी एक्ट के तहत शिकायत कर सकते हैं। डीवी एक्ट के तहत वह महिला भी अदालत का दरवाजा खटखटा सकती है जो लिवइन रिलेशनशिप में रह रही हो। 2005 में बना यह कानून भूतलक्षी प्रभाव से लागू होता है। यानि 2005 से पहले हुई घरेलू हिंसा के मामले में भी यह प्रभावकारी है।

घरेलू हिंसा का मतलब है महिला के साथ किसी भी तरह की हिंसा या प्रताडऩा। अगर महिला के साथ मारपीट की गई हो या फिर मानसिक प्रताडऩा दी गई हो तो वह डीवी एक्ट के तहत कवर होगा। महिला के साथ मानसिक प्रताडऩा से मतलब है ताना मारना या फिर गाली-गलौच करना या फिर अन्य तरह से भावनात्मक ठेस पहुंचाना। इसके अलावा आर्थिक प्रताडऩा भी इस मामले में आती है। यानि किसी महिला को खर्चा न देना या फिर उसकी सैलरी आदि ले लेना या फिर उसके नौकरी आदि से संबंधित दस्तावेज कब्जे में ले लेना भी प्रताडऩा है। हां इन तमाम मामलों में महिला चाहे वह पत्नी हो या फिर बेटी या फिर मां ही क्यों न हो। वह इसके लिए आवाज उठा सकती है और घरेलू हिंसा कानून का सहारा ले सकती है। अगर किसी महिला को प्रताडि़त किया जा रहा हो, उसे घर से निकाला जा रहा हो या फिर आर्थिक तौर पर परेशान किया जा रहा हो तो वह डीवी एक्ट के तहत शिकायत कर सकती है। डीवी एक्ट की धारा -12 के तहत महिला संबंधित मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट की कोर्ट में शिकायत कर सकती है। शिकायत पर सुनवाई के दौरान अदालत प्रोटेक्शन ऑफिसर से रिपोर्ट मांगता है।

महिला जहां रहती है या जहां उसके साथ घरेलू हिंसा की गई है या फिर जहां प्रतिवादी रहते हैं वहां शिकयात की जा सकती है। प्रोटेक्शन ऑफिसर इंसिडेंट रिपोर्ट अदालत के सामने पेश करता है और उस रिपोर्ट को देखने के बाद अदालत प्रतिवादी को समन जारी करता है। प्रतिवादी का पक्ष सुनने के बाद अदालत अपना आदेश पारित करती है। इस दौरान अदालत महिला को उसके डोमेस्टिक हाउस में रखने का आदेश दे सकती है। खर्चा देने के लिए कह सकती है या फिर उसे प्रोटेक्शन देने का आदेश दे सकती है। अदालत के आदेश में किसी भी तरह का दखल नहीं हो सकता। अगर अदालत महिला के फेवर में आदेश पारित करती है और प्रतिवादी कोई दखल देता है तो डीवी एक्ट -31 के तहत प्रतिवादी पर केस बनता है और इसके तहत मुकदमा चलाया जाता है। दोषी पाए जाने पर एक साल तक कैद की सजा का प्रावधान है। साथ ही 20 हजार रुपये तक जुर्माने का भी प्रावधान है।  डीवी एक्ट -31 के तहत चलने वाला केस गैर जमानती और कॉग्नेजिबल होता है। अदालत आदेश का पालन कराने के लिए स्थानीय पुलिस सहयोग देती है। अगर डीवी एक्ट के तहत की गई शिकायत पर सुनवाई के दौरान दहेज प्रताडऩा का मामला सामने आता है तो अदालत में दहेज प्रताडऩा का केस भी चल सकता है।

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