भाषा सीखने के लिए पुस्तक की नहीं बल्कि संभाषण की आवश्यकता होती है : राज्यपाल

राज्यपाल ने संस्कृत भारती के 20 दिवसीय संभाषण शिविर के समापन समारोह की अध्यक्षता की

शिमला: राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने आज राजभवन में संस्कृत भारती के माध्यम से आयोजित 20 दिवसीय संभाषण शिविर के समापन समारोह की अध्यक्षता की।  इस अवसर पर राज्यपाल ने कहा कि संस्कृत भाषा संस्कार की भाषा है। उन्होंने कहा कि योग्य संस्कार न मिलने के कारण समाज में हमारे सामने अनेक समस्याएं उत्पन्न हुई हैं। दुनिया के अधिकांश विकसित राष्ट्रों में अपनी भाषा में ही हर कार्य किया जाता है। उन्होंने कहा कि आज देश में स्थितियां बदल रही हैं और हमारे समक्ष संस्कृत को पुनःस्थापित करने का सुअवसर है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति, इतिहास और परम्परा को पुनर्जागृत करने की आवश्यकता है।

राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने कहा कि भाषा सीखने के लिए पुस्तक की नहीं बल्कि संभाषण की आवश्यकता होती है और संभाषण एक कला है, जो सुनकर प्रभावी होती है। उन्होंने राजभवन में इसके सफल आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि यह प्रयास भविष्य में भी जारी रहेंगे तथा विश्वविद्यालय स्तर पर ऐसे संभाषण शिविर आयोजित किए जाएंगे।

इस अवसर पर मुख्य वक्ता के तौर पर संस्कृत भारती के अखिल भारत संगठन मंत्री दिनेश कामत ने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में संस्कृत की अधिक उपयोगिता तथा राष्ट्रीय एकता से जोड़कर इसे अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया।

इस अवसर पर राजभवन के अधिकारी व कर्मचारियों द्वारा संस्कृत भाषा में कार्यक्रम आयोजित किया गया। राजभवन कर्मचारियों ने संस्कृत में संगीत कार्यक्रम और अपने अनुभव भी सांझे किए। पूरे देश में राजभवन स्तर पर आयोजित संस्कृत पर आधारित यह पहला संभाषण शिविर था।

राज्यपाल के सचिव विवेक भाटिया ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया।

संस्कृत भारत उत्तर क्षेत्र संगठन मंत्री नरेद्र कुमार, दीन दयाल उपाध्याय चिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. लोकेंद्र शर्मा तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति भी इस अवसर पर उपस्थित थे।

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