नवजात बच्‍चे के लिए सबसे अच्‍छा खाना, मां का दूध

नवजात शिशु के जन्म से लेकर सालभर तक बरतें विशेष सावधानी और अपनाएं समझदारी : डॉ. चौधरी

 नवजात शिशु को स्वस्‍थ व रोगमुक्त रखने के लिए अतिरिक्‍त देखभाल की आवश्यकता

नवजात शिशु को स्वस्‍थ व रोगमुक्त रखने के लिए अतिरिक्‍त देखभाल की आवश्यकता

 पहली बार मां बनने पर मन में कई तरह की मन में चिंता रहती है। शिशु की सही देखभाल की। पहली बार मां बनने के समय आपको यह पता नहीं होता है कि बच्चे की देखभाल कैसे करें। कैसे उसे गोद में लें, कैसे उसे दूध पिलाएं, कैसे उसे नहलाएं…। ऐसी कई जिम्मेवारियां है जो माता-पिता को बच्चे के जन्म से लेकर सालभर तक काफी सावधानी और समझदारी से उठानी पड़ती है। इसी विषय में आपको जानकारी देने जा रहे हैं राज्यस्तरीय मातृ एवं शिशु रोग कमला नेहरू अस्पताल (केएनएच) शिमला के वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ व वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक रहे डॉ. एलएस चौधरी।

जन्‍म के बाद नवजात को मां का दूध ही पिलाएं

शुरुआती 6 महीनों तक माँ का दूध पीने वाले बच्चे होते हैं अच्छी तरह विकसित

मां के दूध को नवजात के लिए सर्वोत्तम माना जाता है क्योंकि इसमें पाया जाने वाला कोलेस्‍ट्रॉम नामक पदार्थ बच्‍चे के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए बहुत जरूरी है और यह बच्‍चे को भविष्‍य में बीमारियों से भी बचाता है। इसलिए जन्‍म के बाद बच्‍चे को मां का दूध पिलाना चाहिए। जन्म के आधे घंटे के अंदर बच्चे को मां का दूध मिलना चाहिए। जीवन के पहले 6 महीनों तक बच्चे के लिए मां का दूध ही संपूर्ण आहार है। इस दौरान मां के दूध के अलावा कोई भी चीज न दें। कई लोग बच्चे को पानी, घुट्टी, शहद, नारियल पानी, चाय या गंगा जल पिलाने की गलती करते हैं, ऐसा नहीं करना चाहिए। शुरुआती 6 महीनों तक माँ का दूध पीने वाले बच्चे अच्छी तरह विकसित होते हैं। संक्रमण से उनका बचाव होता है। साथ ही उनमें अपने माता-पिता के प्रति भावनात्मक लगाव लंबे समय तक बना रहता है। 6 महीने की उम्र के बाद बच्चे को माता के दूध के अलावा ऊपरी आहार भी देना चाहिए।

बीमारियों से बचाने के लिए समय पर लगवायें टीके

जन्म के तुरंत बाद शिशु को पोलियो की दवा, बीसीजी और हिपेटाइटिस का टीका जरुर लगाएं

जन्म के तुरंत बाद शिशु को पोलियो की दवा, बीसीजी और हिपेटाइटिस का टीका देना चाहिए। शिशु को ठंड से बचाने के लिए

बीमारियों से बचाने के लिए समय पर लगवायें टीके

बीमारियों से बचाने के लिए समय पर लगवायें टीके

उसे पूरे कपड़े पहनाने चाहिए। कपड़ों के साथ ही उसे टोपी, ग्लवज और मोजे पहनाकर रखना चाहिए। बच्चे को मां के समीप रखना चाहिए, क्योंकि मां के शरीर से बच्चे को गर्मी मिलती है। यूँ तो नवजात शिशु की देखभाल के लिए मां को समुचित जानकारी मेडिकल व पेरामेडिकल स्टाफ द्वारा दी जानी अस्पताल में दी जाती है। अगर नहीं दी गई है तो आवश्यक है की माँ इस बारे में डॉक्टर से जरुर सलाह ले।

यदि आपका बच्चा अस्वस्थ है वो आवश्यक है कि आप उसे चिकित्सक निगरानी में रखें। इसके अलावा शिशु का शरीर बहुत ही संवेदनशील होता है, यदि बच्‍चे के कमरे का तापमान कम और ज्‍यादा हुआ तो बच्‍चे के लिए नुकसानदेह हो सकता है।

बच्चा कितनी बार पेशाब कर रहा है, इसी से जान सकते हैं कि बच्चे को पूरा दूध मिल रहा है या नहीं

आपका शिशु काफी देर तक दूध तो पी रहा है लेकिन क्या जितना दूध उसने पिया है उससे उसकी जरूरत पूरी हो चुकी है? कैसे जानें कि आपका शिशु पर्याप्त दूध पी रहा है या नहीं? दरअसल, बच्चे के पेट के अंदर जाते हुए दूध दिखाई नहीं देता है, इसलिए हम बच्चे के यूरिन आउटपुट यानी बच्चा कितनी बार पेशाब कर रहा है, इसी से जान सकते हैं कि बच्चे को पूरा दूध मिल रहा है या नहीं। इस बात को जानने के लिए देखा जाता है कि बच्चा 24 घंटे में कितनी बार और कितनी मात्रा में पेशाब कर रहा है। अगर बच्चा चौबीस घंटे में से छह से आठ बार पेशाब कर रहा है तो समझ लेना चाहिए कि बच्चे को भरपूर मात्रा में दूध मिल रहा है।

एक सामान्य बच्चे को, एक दिन में छह से आठ बार पेशाब करनी चाहिए

एक सामान्य बच्चे को, एक दिन में छह से आठ बार पेशाब करनी चाहिए। पेशाब का रंग साफ होना चाहिए। पेशाब पर्याप्त मात्रा में करना चाहिए। ये जानने के लिए कि बच्चे का पेशाब ठीक है या नहीं, इस बात की जांच जरूर करें कि पेशाब क्लियर होनी चाहिए, यानी उसका सफेद कपड़े पर कोई निशान नहीं पड़ना चाहिए। जहां तक संभव हो सके, प्रसव हमेशा अच्छे अस्पताल में ही होना चाहिए, ताकि चिकित्सक और नर्स की सेवाएं मिल सकें। इससे जटिलताओं की आशंका कम हो जाती है। किसी भी प्रकार की जटिलता पेश आने पर हॉस्पिटल में तुरंत उससे निपटने की व्यवस्था की जा सकती है।

बच्चे की त्‍वचा और शरीर बहुत ही नाजुक होता है, इसलिए उसपर विशेष ध्‍यान देने की जरूरत

शिशु की साफ-सफाई करते समय विशेष सावधानी रखने की आवश्यकता

बच्चे की त्‍वचा और शरीर बहुत ही नाजुक है, इसलिए उसपर विशेष ध्‍यान देने की जरूरत है। यदि आपको बच्‍चे के देखभाल के निर्देश की जानकारी नहीं है तो चिकित्‍सक से सलाह अवश्‍य लीजिए। शिशु की त्वचा बहुत अधिक संवेदनशील व कोमल होती है। इसलिए शिशु की साफ-सफाई करते समय विशेष सावधानी रखने की आवश्यकता होती है। कमर के नीचे, पिछले हिस्से, मुँह, गर्दन तथा त्वचा के मोड़ों के सिवाय शिशु के शरीर के अन्य हिस्से आसानी से गन्दे नहीं होते, इसलिए हर रोज शिशु का मुँह, हाथ और पिछला हिस्सा साफ करने से ही काम चल जाता है। शिशु की आंखों को नियमित रूप से साफ करना भी बहुत जरूरी होता है। शिशु की सफाई के लिए साफ रूई या कोमल कपड़े का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके अलावा, सफाई जिस पानी से की जानी है वह साफ हो।

स्वच्छता… बच्चे और मां को रोज नहाना चाहिए

मां को स्वच्छता का पूरा ख्याल रखना चाहिए ताकि बच्चा गंदगी व संक्रमण की चपेट में न आ सके। गद्दे और चादर साफ होने चाहिए। मां और बच्चे दोनों के कपड़े साफ धुले हुए होने चाहिए। बच्चे और मां को रोज नहाना चाहिए। मां के नाखूनों में मैल जमा नहीं होना चाहिए।

बच्चे की मालिश हल्के हाथ से करें

बच्चे की मालिश हल्के हाथ से करें

बच्चे की मालिश हल्के हाथ से करें

बच्चे की मालिश करना फायदेमंद होता है, यह वैज्ञानिक रूप सही माना जाता है। मालिश हल्के हाथ से करना चाहिए। मालिश दोपहर के समय करना चाहिए, ताकि बच्चे को ठंड न लगे। छोटे बच्चों की मालिश करने से उनकी हड्डियां मजबूत बनती हैं और यह मालिश बेहद आवश्यचक है। नवजात की मालिश के लिए बादाम का तेल प्रयोग कर सकती हैं। जन्‍म के 10 दिन के बाद बच्‍चे के शरीर की मालिश कर सकते हैं।

नवजात को क्या पहनाएं…

गर्मी का मौसम हो तो नवजात को कॉटन के ढीले कपड़े पहनाने चाहिए। बच्चे का शरीर पूरी तरह ढंका होना चाहिए, ताकि उसे ठंड न लग पाए और मच्छरों से बचाव हो सके। गर्मी में बच्चे को ऊनी कपड़े पहनाने की आवश्यकता नहीं होती है। मौसम में ठंडक होने पर ही ऊनी कपड़े पहनाएं। ठंड के मौसम में ऊनी कपड़े पहनाएं, लेकिन अंदर पतला, नर्म कॉटन कपड़ा जरूर पहनाएं।

बच्चे को ढकना

नवजात शिशु के शरीर को हमेशा ढककर रखना चाहिए क्यों कि छोटे बच्चों का शरीर बाहरी तापमान के अनुसार स्वयं को ढाल नहीं पाता है। नवजात जहां हो वहां का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस के आसपास होना चाहिए।

बच्चों की आंखों में न लगाएं काजल

बच्चों की आंखों में काजल लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि काजल लगाने से बच्चों की आंखें बड़ी होती हैं। भ्रांतियों से दूर रहे और बच्चों की आंखों में काजल न लगाएं

शिशु का रोना

नवजात का रोना हमेशा चिंता की बात नहीं होती। ज्यादातर बच्चे भूख लगने पर या बिस्तर गीला करने पर रोते हैं। बच्चे के रोने पर इन बातों का ध्यान दें। अगर बच्चा लगातार रोता रहता है, तो उसे चिकित्सक को दिखायें।

बच्चे के लिए फोटोथेरेपी

बच्चे को कुछ देर धूप में ले जाने की प्रकिया को फोटोथेरेपी कहते हैं। नवजात को कुछ समय के लिए कपड़े में ढककर धूप भी दिखाएं। इससे बच्‍चे की हड्डियां मजबूत होंगी।

कपड़ों पर ध्‍यान

बच्‍चे को मुलायम कपड़े पहनाने चाहिए, इसके अलावा बच्‍चे के कपड़े हमेशा अलग से साफ करें और अलग से सुखायें। नहीं तो उनकी त्‍वचा में संक्रमण हो सकता है।

नवजात बच्‍चे के लिए सबसे अच्‍छा खाना, मां का दूध

0-3 महीने के शिशु के लिए आहार

  • नवजात बच्‍चे के लिए सबसे अच्‍छा खाना, मां का दूध होता है। मां का दूध, शुद्ध, मिलावट रहित और सभी पोषक तत्‍वों

    नवजात बच्‍चे के लिए सबसे अच्‍छा खाना, मां का दूध

    नवजात बच्‍चे के लिए सबसे अच्‍छा खाना, मां का दूध

    से भरपूर होता है। इसके सही मात्रा में सेवन करवाने से बच्‍चा हष्‍ट – पुष्‍ट रहता है। इसके पीने से मां और बच्‍चे के बीच एक भावनात्‍मक रिश्‍ता बन जाता है। ब्रेस्‍ट मिल्‍क में इम्‍युनोग्‍लोबुलिन ( सुरक्षात्‍मक प्रोटीन ) मिला होता है जो बच्‍चे को बाहरी संक्रमण से बचाकर रखता है।

  • कुछ मां, बच्‍चे के इस नाजुक दौर में उबला पानी, फ्रुट जूस और ग्‍लूकोज पानी भी देती है जो आवश्‍यक नहीं होता है। मां का दूध, बच्‍चे के शरीर से बीमारियों और एलर्जी को दूर भगा देता है। जो बच्‍चा, मां का दूध नियमित रूप से पीता है उसे अस्‍थमा जैसे रोग होने का चांस बहुत कम होता है। 34 सप्‍ताह से छोटा नवजात, मां का दूध पीने में थोडा कम सजग होता है, ऐसे में मां को बच्‍चे को एक्‍सप्रेस्‍ड ब्रेस्‍ट मिल्‍क देना आवश्‍यक होता है।

  • शुरूआत के 3 महीने में, मां का भोजन भी बच्‍चे के स्‍वास्‍थ्‍य पर प्रभाव ड़ालता है। इसलिए, डिलीवरी के बाद महिला को अपना विशेष ध्‍यान रखना चाहिए और अपनी डाइट को बैलेंस रखना चाहिए। अगर मां को स्‍तनों में दूध सही तरीके से नहीं बनता है या कोई समस्‍या है तो तुरंत डाक्टर से सही परामर्श लें।

  • 3-6 महीने के शिशु का आहार, लेकिन बच्‍चे को ऐसे आहार बिलकुल न दें जिससे पचने में हो दिक्‍कत

  • बच्‍चे को 6 महीने तक केवल मां का दूध देना चाहिए। 6 महीने के बाद बच्‍चे को ठोस आहार भी दे सकते हैं, लेकिन बच्‍चे को ऐसे आहार बिलकुल न दीजिए जो पचने में दिक्‍कत हो। बच्‍चे की इस उम्र से उसके शरीर को पोषक तत्‍वों की भरपूर आवश्‍यकता पड़ती है। इस दौर में शिशु का आहार, मां के दूध पर ही निर्भर न रहकर बल्कि कुछ ठोस आहार में भी परिवर्तित हो जाता है जैसे – पका हुआ भोजन। इसकी शुरूआत बच्‍चे को सेरेलेक देकर करनी चाहिए, जिसे अच्‍छी तरह से मैश करके बच्‍चे को थोडे – थोडे अंतराल पर देना चाहिए, इससे बच्‍चे को शरीर के विकास के लिए पर्याप्‍त पोषक तत्‍व मिलेगें। मां के दूध के साथ बच्चे को सेरेलेक दे सकते हैं ।

6-8 महीने के बच्‍चे के लिए फूड

6 महीने के बाद बच्‍चे, ठोस आहार लेना पसंद करते है। बच्‍चों को इस समय तक फल, सब्जियां देना शुरू कर देना चाहिए। छ: महीने के बाद बच्‍चे के दांत निकलने शुरू होते है। इस समय उनके दांतों में इरीटेशन होती है और वो उस इरीटेशन को शांत करने के लिए किसी भी चीज को मुंह में डाल लेते है और उसे मुंह में ही बनाएं रखते है। इससे उन्‍हे दस्‍त होने की संभावना होती है। इस आदत को कम करने के लिए बच्‍चे को एक बिस्‍कुट या टोस्‍ट दे दें जिसे वह चूसता रहे और चबा न पाएं।

बच्‍चे को भोजन बोतल से न दें, खाने को चम्‍मच से खिलाने की आदत डालें

इस बात का ध्‍यान रखें कि बच्‍चे को भोजन “सेरेलेक” बोतल से न दें, खाने को चम्‍मच से खिलाने की आदत डालें ताकि बच्‍चे

बच्‍चे को भोजन बोतल से न दें, खाने को चम्‍मच से खिलाने की आदत डालें

बच्‍चे को भोजन बोतल से न दें, खाने को चम्‍मच से खिलाने की आदत डालें

को बाद में ठोस आहार देने पर उसे दस्‍त न हों और उसका तालू भी काम करने लगे। बच्‍चा थोडा सा और बड़ा हो जाएं तो उसे अच्‍छी तरह पके हुए चावल और दही खिला सकते है। जब बच्‍चा, इसे अच्‍छी तरह से पचाने लग जाएं तो उसे खिचडी खिलाना चाहिए, जिसे चावल और मूंग की दाल से बनाया जाना चाहिए। बच्‍चे को इस उम्र में सूप और हल्‍की सुपाच्‍य सब्जियां और फल भी, सपलरीमेंशन फूड के तौर पर दिन में एक – आध बार देना चाहिए। फ्रूट और सब्जियों से बच्‍चे के शरीर में ब्रेस्‍ट मिल्‍क पर्याप्‍त मात्रा में न मिल पाने के कारण हुई आयरन की कमी को दूर करता है। बच्‍चे को दिया जाने वाला फल पूरी तरह से पका होना चाहिए। अगर बच्‍चे का अच्‍छी तरह से ख्‍याल रखा जाएं तो उसके जन्‍म के 5 महीने में उसका वजन दोगुना हो जाता है।

जाने कैसे कराएं स्तनपान : स्तनपान के लिए शिशु और मां का सही पोस्चर होना जरूरी

मां का दूध एक संपूर्ण और संतुलित आहार है। नवजात शिशुओं को उनके शुरुआती छह महीने में केवल मां के दूध की ही जरुरत होती है। यह शिशु को सभी जरुरी पोषक तत्व प्रदान करता है। अगर आपको दूध आता है तो अपने शिशु को 6 महीने तक जरुर स्तनपान कराएं। हम पहले भी बता चुके हैं कि प्रसव के तुरंत बाद मां का दूध पीलेपन वाला और गाढ़ा होता है। इस दूध को कोलोस्ट्रम(गाढ़ा दूध या खीस) कहते हैं। कोलस्ट्रम परिपक्व दूध (मेच्योर मिल्क) से अधिक पोषक होता है, क्योंकि इसमें अधिक प्रोटीन, संक्रमण से लड़ने वाली अधिक खूबियां होती है। यह आपके शिशु को संक्रमण से होने वाली खतरनाक बीमारी से बचाती है। इसमें विटामिन ए की भी मात्रा अधिक होती है। स्तनपान के लिए शिशु और मां का सही पोस्चर होना जरुरी है। दोनों बाजु में शिशु को उठा कर उसके पूरे शरीर को अपनी और करें। शिशु के उपरी होंठ में अपने स्तन के निपल को सटाएं और जब शिशु अपना पुरा मुंह खोल दे तो अपने स्तन के निपल को अंदर कर दें। आपका शिशु जब जाहे उसे अपने स्तन का निपल चूसने दें।

  • स्तनपान कराने के बाद रोजाना नहाते समय साफ पानी से स्तनों को धोएं। दूध पिलाने के बाद स्तनों को साफ कपड़े से पोछें या दोबारा कपड़े से ढ़कने से पहले उन्हें स्वाभाविक रुप से सूखने दें।

  • अगर आप शिशु को स्तनपान करा रहीं हैं तो ध्यान रहे इसके स्थान पर चीनी घुला पानी, शहद घुला पानी या अन्य कुछ उल्टी-सीधी चीजें कभी न दें।

  • अगर आपका शिशु काफी देर तक स्तनपान कर रहा है तो वो पूरे दिन में 6 से 8 बार डायपर गीला कर सकता है। पेट भी गड़बड़ हो सकती है। मगर इससे घबराए नहीं। अगर चार बार से ज्यादा डायपर को गीला करता है तो डॉक्टर के पास जाएं।

  • अगर आप स्तनपान करा रहीं है तो कुछ भी उल्टा-सीधा न खाएं। दाल का सेवन ज्यादा करें और पोषक आहार खाएं। इससे स्तन में दूध भरेगा और गाढ़ा होगा। धूम्रपान और नशा न करें।

  •    अगर प्रसव के तुरंत बाद स्तन में दूध नहीं आ रहा है तो डॉक्टर से संपर्क करें।

जानें कैसे कराएं बोतल फीडिंग

  • अपने शिशु को स्तनपान कराना है लेकिन कई बार किसी कारणवश बच्चे को पाउडर के दूध की बोतल फीडिंग करानी पड़े तो नवजात शिशु के लिए दूध पाउडर का उपयोग करने से पहले यह ध्यान रहे कि इसकी एक खास मात्रा होती है और इसे कैसे बनाना है आदि दूध के डिब्बे पर निर्देश पढ़ने के बाद ही शुरु करें। बोतल फीडिंग से पहले इन बातों का भी ख्याल रखें।

  • बोतल को उबले पानी से धोएं। उबले पानी से साफ नहीं की गई बोतल या गलत मात्रा में दूध का पाउडर मिलाने से बच्चा बीमार हो सकता है।

  •   हर तीन घंटे पर शिशु को बोतल फीडिंग कराएं या जब भूख लगे तब।

  •  भूल कर भी बोतल में बचे दूध को फ्रीज में न रखें और उसी दूध को दोबारा न पिलाएं, हर बार ताजा बना हुआ दूध ही बच्चे को पिलाएं।

  • शिशु को बोतल फीडिंग हमेशा 45 डिग्री के कोण मे रख कर पिलाएं। ध्यान रहे बोतल खाली होने पर बच्चा हवा तो नहीं चूस रहा है।

 कैसे उठाएं नवजात को गोद में

  • हो सकता है कि आप अपने कोमल और नाजुक बच्चे को गोद में उठाने से पहले डर से सिहर जाए। आपको डर लगता

    नवजात को गोद में उठाने से पहले हाथ को एंटी-सेप्टिक सेनेटाइजर लिक्विड से अच्छी तरह धो लें

    नवजात को गोद में उठाने से पहले हाथ को एंटी-सेप्टिक सेनेटाइजर लिक्विड से अच्छी तरह धो लें

    है कि कहीं कुछ गड़बड़ी हो जाए तो…। मगर डरे नहीं। बस कुछ ऐसे बेसिक तकनीक को आजमाएं और आराम से बच्चे को गोद में उठाएं और उसे लाड़-प्यार करें।

  • नवजात को गोद में उठाने से पहले हाथ को एंटी-सेप्टिक सेनेटाइजर लिक्विड से अच्छी तरह धो लें ताकि बच्चे को कोई संक्रमण का खतरा न हो। बच्चों की रोग प्रतिरोधी क्षमता उतनी मजबूत नहीं होती है और वो बहुत जल्दी संक्रमण का शिकार हो जाते हैं।

  • बच्चे को उठाते समय उसके सिर और गर्दन को ठीक से पकड़े रहें, जैसे उनको सपोर्ट दे रहे हों। एक हाथ सिर और गर्दन के नीचे और एक हाथ पैर के नीचे रखें और फिर पालने के झूले की तरह बच्चे को सपोर्ट दें।

  •    बच्चे को यह महसूस होना चाहिए कि वो झूले पर झूल रहा है। बच्चे को पालने की तरह हल्का उपर और नीचे झुलाएं। ध्यान रहे नवजात को ज्यादा उपर या नीचे ना झुलाएं। यह खतरनाक हो सकता है। ना ही बच्चे का सिर ज्यादा हिलाएं। इससे SIDS (Sudden Infant Death Syndrome) का भी खतरा रहता है।

  •  नवजात को कभी भी जोर से झकझोरें या हिलाए नहीं, चाहे आप उससे खेल में ठिठोली कर रहे हों या गुस्से में ही क्यों न हो। इससे बच्चे के सिर में खून रिसने लगेगा और मौत भी हो सकती है। कभी भी नवजात को सोते समय झकझोड़ कर नहीं उठाए। याद रहें नवजात को हमेशा नर्म और मखमली स्पर्श ही करें।

  • नवजात को नर्म और गर्म कपड़े में लपेट कर रखने के लिए सीखें। इससे बच्चा काफी सुरक्षित महसूस करता है। 0-2 महीने तक शिशु को जरुर लपेटकर रखें। इससे बच्चे को वातावरण के बदलाव का ज्यादा असर नहीं पड़ता है।

बच्चे को आराम करने और सुलाने का तरीका

बच्चे को आराम करने और सुलाने का तरीका

जाने बच्चे को आराम करने और सुलाने का तरीका

  • नवजात के सेहत के लिए तीन महीने तक काफी आराम की जरुरत होती है। इस दौरान बच्चे 16 से 20 घंटा तक सो (आराम कर) सकते हैं। तीन महीने के बाद बच्चे 6 से 8 घंटे तक सोते हैं।

  • बच्चे सो रहे हैं या आराम कर रहे हैं तो उन्हें हर चार घंटे पर स्तनपान कराना न भूलें। रात में भी बच्चे तीन महीने तक 6 से 8 घंटे तक पूरी रात सोते हैं। अगर रात में बच्चे ठीक से मतलब 2 से 3 घंटे भी नहीं सो पा रहे हैं तो यह चिंता का विषय है।

  •  बच्चे जिस तकिया पर सो रहा है/ रही है वो काफी हल्का और नर्म होना चाहिए, और तकिया पर एक ही जगह बच्चे का सिर ज्यादा देर तक नहीं रहना चाहिए, ऐसा रहने से सिर का आकार गड़बड़ा सकता है और SIDS का खतरा हो सकता है। बच्चे के सिर के पोजीशन को तकिया पर बदलते रहे। पहले दाएं, फिर बाएं और फिर बीच में।

  • नवजात को दिन और रात का अनुभव नहीं होता है। कभी-कभी कोई-कोई बच्चा रात को ज्यादा अलर्ट हो जाता है, जगा रहता है और पूरे दिन सोता रहता है। ऐसी स्थिति में रात में बच्चे के कमरे में नीम अंधेरा कर दें। दिन में हो सके तो बच्चे को थपथपा कर जगाएं और उसके साथ खेलें और बातचीत करें ताकि रात को वो सही से सो सके।

बच्चे को कपड़े का डायपर पहना रहे हैं तो ध्यान रहे यह साफ होना चाहिए

आप डिस्पोजेबल डायपर बच्चों को पहना रही हैं या फिर कपड़े का डायपर, इसकी आपको सही से देखभाल करनी होगी। कब डायपर बदलनी है और साफ-सफाई का कैसे ख्याल रखना है इसके लिए सचेत रहना होगा।

अगर आप कपड़े का डायपर बच्चे को पहना रही है तो ध्यान रहे यह साफ होना चाहिए। कपड़ों के डायपर को गर्म पानी में एंटी सेप्टिक लिक्वड डाल कर साफ करें, ताकि संक्रमण का खतरा न रहे। डायपर पहलाने से पहले जैतून के तेल से बच्चे को मालिश कर दें ताकि कोई स्किन रैशेज नहीं हो। डायपर हर तीन घंटे पर बदलते रहे, ज्यादा गीला होने पर बच्चे को पेशाब के संक्रमण की बीमारी हो सकती है।

डिस्पोजेबल डायपर को भी हर तीन घंटे पर बदलते रहें क्योंकि ज्यादा गीला होने पर बच्चे को पेशाब के संक्रमण की बीमारी हो सकती है। डायपर खोलने के बाद अच्छी तरह से अंदरुनी हिस्से को वाइप्स से पोछ दें। ज्यादा देर तक डायपर पहनने से स्किन पर दाग या रैशेज हो जाए तो मलहम लगाएं। अगर बच्चे का पेट खराब है तो ध्यान रहे डायपर जितनी जल्दी हो बदलते रहें।

जाने कैसे नहलाएं शिशु को

शिशु को जन्म लेने के बाद से ही नियमित रुप से नहलायें। लेकिन अगर बहुत ठण्ड या कोई समस्या है तो बच्चे को स्पांज

जन्म के एक साल तक अपने नवजात को महीने में दो बार अवश्य डॉक्टर से दिखाएं

जन्म के एक साल तक अपने नवजात को महीने में दो बार अवश्य डॉक्टर से दिखाएं

बाथ दें या भींगे कपड़े से बदन पोंछ दें। जैसे ही बच्चे की नाभि-नाल (Umbilical Chord) के घाव सूख जाए बच्चे को हफ्ते में दो या तीन बार नियमित रुप से नहलाया जा सकता है। नाभि-नाल शिशु मां के गर्भ से जब निकलता है तभी ही ले कर आता है। इसे काटा जाता है और इसके घाव को सूखने में समय लगता है।

  •  ध्यान रहे बच्चे को ज्यादा ठंडे या गर्म पानी में नहीं नहलाएं। गुनगुना पानी ही बेहतर है।

  •  नहलाते समय बच्चे के दोनों कान को हाथ से अच्छी तरह से बंद कर लें ताकि कान में पानी नहीं जाए।

  •  बच्चे को नहलाने से पहले उसके कपड़े, तौलिया, डायपर, माइल्ड क्रीम सोप सभी कुछ तैयार रखें। नहलाने के तुरंत  बाद बच्चे को सूखे कपड़े में लपेट लें और जल्द ही बदन पोंछ कर कपड़ा पहना दें।

  •  अगर आप बच्चे को पहली बार नहला रहीं है तो अपने साथ घर के बुजुर्ग और अनुभवी लोग को साथ रखें।

  •  बच्चे को नहलाने के लिए माइल्ड क्रीम सोप या शैंपू ही इस्तेमाल करें ताकि आंख में साबुन के पानी जाने से वो रोए नहीं।

  • जन्म के एक साल तक अपने नवजात को महीने में दो बार अवश्य डॉक्टर से दिखाएं

जन्म के एक साल तक अपने नवजात को महीने में दो बार अवश्य डॉक्टर से दिखाएं। जन्म के तुरंत बाद अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद तो माता-पिता बच्चे को बराबर डॉक्टर से दिखाते ही हैं, मगर यह एक साल तक नियमित अभ्यास में रहना चाहिए ताकि आपके शिशु का बेहतर ग्रोथ हो सके और वो सेहतमंद रहे। अगर शिशु में किसी तरह की असमान्य बात या हरकत दिख रही हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

जन्म के बाद इन लक्षणों पर ध्यान दें:

  • डिहाइड्रेशन (Dehydration)- प्रति दिन तीन बार से ज्यादा डायपर गीला होने पर, ज्यादा सोना और मुंह सूखना

  • शौच या पाखाना (Bowel movement problems)- जन्म के बाद लगातार दो दिन तक अगर पाखाना नहीं हो तो, पाखाने में सफेद आंव आना, बुखार आना

  • सांस लेने में परेशानी या चमकी आना (Respiratory problems)- अगर बच्चे को सांस लेने में परेशानी हो रही हो, दम फूल रहा हो या बच्चे की छाती तेजी से खींच रही हो जिसे चमकी भी कहते हैं तो बिना लेट किए अस्पताल जाना चाहिए।

पीलिया (Jaundice)- अगर बच्चे की छाती , शरीर और आंख, नाखून का रंग ज्यादा पीला हो तो डॉक्टर से संपर्क करें।

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