नई दिल्ली: यह पाया गया है कि अब तक भारत में रहने वाले 93 प्रतिशत वयस्कों ने स्वेच्छा से विशिष्ट पहचान – आधार अपनाया है। सार्वभौमिक आधार कवरेज प्राप्त करने के लिए यूआईडीएआई अब शेष व्यक्तियों को आधार से जोड़ने के अलावा बाल नामांकन पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
यूआईडीएआई ने अपनी पहली आधार संख्या 29 सितंबर 2010 को जारी की थी और तब से पांच सालों के अंदर यह 92.68 करोड़ से अधिक आधार नामांकन जारी कर चुका है। यह सफलता, विशिष्ट पहचान के साथ खुद को सशक्त करने के लिए लोगों की स्वैच्छिक इच्छा के कारण संभव हो पाया है जो कि कहीं भी ले जाने लायक वहनीय है और डिजिटल मंच पर कभी भी और कहीं भी ऑनलाइन अधिप्रमाणित करने योग्य है। यह बिलकुल स्थापित हो चुका है कि कोई भी किसी के भी आधार स्थापित पहचान को झूठा साबित नहीं कर सकता है। इसलिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं और कार्यक्रमों के तहत प्रत्यक्ष लाभ का लक्षित वितरण, सामाजिक और वित्तीय समावेशन के लिए आधार के एक रणनीतिक और नीतिगत उपकरण के तौर पर अपनाने से, एक सपने के सच हो जाने जैसा है। इससे सुविधा में वृद्धि और परेशानी मुक्त जन-केंद्रित शासन को बढ़ावा मिला है।
24 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में जहां यूआईडीएआई को आधार नामांकन जारी करने के लिए अधिकृत कर दिया गया है, पाया गया है कि इनमें से 16 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में विशिष्ट पहचान की वयस्क आबादी संतृप्ति 100 प्रतिशत से से अधिक है जिसमें दिल्ली 128 प्रतिशत के साथ पहले स्थान पर, हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना 111 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर, पंजाब (110 प्रतिशत), केरल औऱ हरियाणा (109 प्रतिशत), चंडीगढ़ और सिक्किम (107 प्रतिशत), झारखंड गोवा और पुडुचेरी (106 प्रतिशत), त्रिपुरा (105 प्रतिशत), राजस्थान (103 प्रतिशत), छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र (101 प्रतिशत) है। 5 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में वयस्क आधार पहचान संतृप्ति 90 प्रतिशत से अधिक है जिनमें अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (97 प्रतिशत), कर्नाटक और मध्य प्रदेश (96 प्रतिशत), उत्तराखंड (93 प्रतिशत) और उत्तर प्रदेश (91 प्रतिशत) तथा तीन राज्यों में वयस्क आधार पहचान संतृप्ति 80 प्रतिशत से उपर है जिनमें गुजरात (89 प्रतिशत), दमन एवं दियू में (82 प्रतिशत) और बिहार में (80 प्रतिशत) है। सभी राज्यों में कुल मिलाकर जहां विशिष्ट पहचान का कार्य निर्दिष्ट है, वयस्क जनसंख्या के बीच आधार संतृप्ति 98 प्रतिशत है।
अन्य 12 राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों में जहां नामांकन के लिए आरजीआई द्वारा प्रबंध किया जा रहा है, वहां समग्र रूप से 76 प्रतिशत संतृप्ति है जिसमें लक्षद्वीप (109 प्रतिशत), दादरा एवं नगर हवेली (103 प्रतिशत), पश्चिम बंगाल (89 प्रतिशत), उड़ीसा एवं तमिलनाडु (88 प्रतिशत), मणिपुर (65 प्रतिशत), नागालैंड एवं जम्मू एवं कश्मीर (63 प्रतिशत), अरूणांचल प्रदेश (50 प्रतिशत), और मिजोरम (46 प्रतिशत) है। दो अन्य आरजीआई राज्यों आसाम और मेघालय में कुछ स्थानीय समस्याओं की वजह से नामांकन संतृप्ति कम रही है।
यहां यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण होगा कि 18 राज्य/केंद्र शासित प्रदेश ऐसे हैं जहां वयस्क आधार नामांकन संतृप्ति 100 प्रतिशत से उपर है। किसी को आश्चर्य हो सकता है कि किसी राज्य में 100 प्रतिशत से अधिक आधार कैसे बनाए जा सकते हैं।
यह इस तथ्य के कारण है कि जनसंख्या के आंकड़े 2011 की जनगणना के आधार पर हैं जबकि आधार कार्ड के बनाने की प्रक्रिया वास्तविक आबादी पर हो रही है जिसमें 2015 तक की वृद्धि भी शामिल है। अर्थात 2011 की जनसंख्या को आधार (विभाजक) के तौर पर लिया गया है।
अन्य राज्यों की प्रवासी जनसंख्या भी इन राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों की आधार वयस्क आबादी संतृप्ति संख्या में शामिल है। वास्तव में आधार एक जीवनपर्यंत के लिए विशिष्ट पहचान है जो मुफ्त में उपलब्ध है और कोई भी व्यक्ति जो भारत में रहता है, बिना किसी उम्र और लिंग की बाधा के, यूआईडीएआई की पहचान प्रक्रिया को संतुष्ट करके स्वैच्छिक रूप से देश भर में कहीं भी आधार में नामांकन करवा सकता है।