वसीयत के बारे में कई अहम बातों की जानकारी होना आवश्यक : अधिवक्ता रोहन सिंह चौहान

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नोट- किसी फंड या बीमा पॉलिसी में नामांकन हो जाने से नामांकित व्यक्ति के नाम संपत्ति हस्तांतरित नहीं हो जाती है ।वह तो किसी की मृत्यु के बाद इन रकमों का केवल ट्रस्टी है ।

वसीयत के अर्थ के मुख्य बिंदु :

जो व्यक्ति स्वस्थ दिमाग का हो और वयस्क हो यानी उसकी आयु 18 साल से अधिक की हो, वह वसीयत स्वयं बना सकता है।

वसीयतनामा लिखने के लिए किसी भी स्टाम्प पेपर की जरूरत नहीं होती।

वसीयतनामा कानूनी और तकनीकी भाषा में हो यह जरूरी नहीं है। वसीयतनामा से लिखवाने वाले की मंशा जाहिर होती है कि किस तरह से वह अपनी मृत्यु के बाद अपनी संपत्ति का वितरण चाहता है। यदि वसीयत लिखवाने वाले की मंशा स्पष्ट है तो फिर कोई तकनीकी शब्द या व्याकरण की शुद्धता मायने नहीं रखती है।

इसकी वैधता के लिए इसे रजिस्टर्ड कराने की भी जरूरत नहीं होती है, फिर भी इसे रजिस्टर कराना बेहतर होगा।

जो व्यक्ति वसीयतनामा लिख रहा है उसे उस पर हस्ताक्षर करना होते हैं। इसमें दो गवाहों के प्रमाण भी लगते हैं, यानी उन्हें भी हस्ताक्षर करने होते हैं। इसका अर्थ यह है कि इस दस्तावेज में किए गए हस्ताक्षर सच में उसी व्यक्ति के हैं, जिसने वसीयतनामा बनाया या बनवाया है।

यदि किसी संपत्ति के मामले में एक से ज्यादा बार वसीयत लिखी गई है और वसीयतनामा लिखाने वाले की मृत्यु हो जाती है तो अंतिम बार जो वसीयतनामा लिखाया गया है वही सही माना जाएगा।

इसी प्रकार से यदि किसी वसीयत में एक से ज्यादा दो बार एक ही संपत्ति का विवरण और वह दो लोगों को दी गई है तो इसमें अंतिम नियम प्रभावी होगा।

वसीयतनामा इसे लिखाने वाले के शब्द माने जाते हैं।

यदि वसीयतनामा या इसका कोई हिस्सा जिसमें धोखाधड़ी प्रतीत होती है तो उसे बेकार मान लिया जाता है।

वसीयतनामा सशर्त भी हो सकता है। यह घटनाओं के होने या न होने पर बनाया जा सकता है। फिर भी यदि कोई हालात अवैध या अनैतिक है तो इसे निष्प्रभावी मान लिया जाता है। यदि किसी स्थिति में यह कानून के किसी प्रावधान के विपरीत है और नीतियों के खिलाफ है तो इस वसीयतनामे को अवैध मान लिया जाता है।

जिस व्यक्ति के नाम वसीयत लिखी गई है, यदि वह लिखवाने वाले के पहले ही चल बसता है तो ऐसे में वसीयतनामा निष्प्रभावी हो जाएगा। इसलिए यह सुझाव दिया जाता है कि एक की बजाय दो नाम वसीयतनामा में लिखाए जाएं। इसे इस उदाहरण से समझें- मेरे गुजर जाने के बाद संपत्ति रमेश के नाम की जाएं और यदि रमेश भी न रहे तो संपत्ति दिनेश को दें।

यदि वसीयतनामा में लिखी चीजें बदलें- उदाहरण के लिए यदि वसीयतनामा लिखने वाले ने दस्तावेज में सोने की अंगूठी लिखाई है और यदि यह अंगूठी चेन में तब्दील हो चुकी है तो इसकी वैधता सही नहीं मानी जाएगी। यह प्रभावशील नहीं मानी जाएगी।

कोडसिल यानी कोडपत्र यानी वसीयतनामा में कुछ जोड़ना या कुछ बदलाव करना होता है। कोडसिल से वास्तविक वसीयतनामा बदला जाता है। कोडसिल के जरिए ही वसीयतनामा लिखवाने वाला इसमें किसी का नाम जुड़वा पाता है या हटा लेता है। कोडसिल में वही सारी अनिवार्यताएं रहती हैं, जो वसीयतनामा में रहती हैं। कोडसिल को वास्तविक वसीयतनामा की तरह ही माना जाता है।

वसीयतनामा प्राधिकृत और अप्राधिकृत रहता है। अप्राधिकृत वसीयतनामा सामान्य लोगों द्वारा लिखवाया जाता है, जबकि प्राधिकृत वसीयतनामा, सैनिक, वायुसेवा और नौसेना में काम करने वाले लोग उस समय लिखवाते हैं, जिस समय ये लोग वास्तव में जंग जैसे हालात से रूबरू होते रहते हैं।

दो या दो से अधिक लोग भी संयुक्त वसीयतनामा लिख सकते हैं। यदि वसीयतनामा संयुक्त है और यदि लिखने वाले दोनों लोगों की मृत्यु के बाद प्रभावशील होना है तो इस प्रमाण-पत्र को किसी भी एक सदस्य के रहने तक नहीं सौंपा जा सकता। यहां तक कि दोनों में से कोई भी एक यह लिखा हुआ वसीयतनामा निरस्त भी कर सकता है।

दो या उससे अधिक लोग मिलकर एक परस्पर सहमति वाला वसीयतनामा लिखवा सकते हैं। इसमें वसीयत बनवाने वाले एक-दूसरे के नाम संपत्ति कर जाते हैं।

वसीयतनामा लिखवाने वाला एक एग्जीक्यूटर नियुक्त कर सकता है। यदि वसीयत में लिखा है कि बकाया वसूलना है, या कर्ज चुकाना है या प्रॉपर्टी की साज-संभाल की जाना है तो यह काम एग्जीक्यूटर/ एडमिनिस्ट्रेट करेगा। यदि वसीयत में एग्जीक्यूटर का नाम नहीं है तो एडमिनिस्ट्रेटर कोर्ट नियुक्त कर सकती है।

प्रोबेट (वसीयतनामा की सर्टिफाइड कॉफी) ही वसीयत का साक्ष्य होता है। प्रोबेट की एप्लीकेशन कोर्ट में की जाती है और कोई भी रिश्तेदार आपत्ति होने पर, उसे चुनौती दे सकता है। प्रोबेट के बारे में स्थानीय समाचार-पत्र में जानकारी देना जरूरी होती है।

वसीयतनामा लिखवाने वाले की मौत पर वसीयतनामा एग्जीक्यूटर या फिर कोई उत्तराधिकारी प्रोबेट की मांग कर सकता है। अदालत इस तरह के मामलों में उत्तराधिकारियों से पूछती है कि क्या उनको इस वसीयतनामे पर कोई आपत्ति है। यदि कोई आपत्ति नहीं रहती है तो अदालत उनको उक्त प्रोबेट सौंप देती है। प्रोबेट कोर्ट द्वारा प्रमाणित किया जाता है। प्रोबेट ही वसीयतनामा की प्रामाणिकता सिद्ध करता है। इसके बाद ही वसीयत प्रभावशील होती है।

किसी व्यक्ति द्वारा अपनी संपत्ति के बंटवारे में (अपनी मृत्यु के बाद ) अपनी इच्छा की लिखित व वैधानिक घोषणा करना।

मुसलमानों के अलावा हर समुदाय के लिए भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 में वसीयत का कानून है। मुसलमान अपने निजी कानून से नियंत्रित होते हैं । हिंदुओ और मुसलमानों को छोंड़कर अन्य समुदायों के लोगों को विवाह के बाद नई वसीयत करनी पड़ती है , क्योंकि विवाह के बाद पुरानी वसीयत निष्प्रभावी हो जाती है ।

अगर व्यक्ति विवाह के बाद नई वसीयत नहीं करता है , तो संपत्ति उत्तराधिकार कानून के अनुसार बांटी जाती है ।

नई वसीयत करते समय उल्लेख करना होता है कि पुरानी वसीयत रद्द की जा रही है ।

अगर संपत्ति साझा नामों में हो , तो भी व्यक्ति अपने हिस्से के बारे में वसीयत कर सकता है ।

वसीयत करने वाले व्यक्ति को दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने चाहिए अथवा अपना अंगूठा लगाना चाहिए।

 दो गवाहों द्वारा वसीयत सत्यापित की जानी चाहिए।

वसीयत के अनुसार जिन्हें लाभ मिलना है , वे तथा उनके पति/पत्नियां, वसीयत के गवाह नहीं होने चाहिए।

अगर वे ऐसी वसीयत पर गवाही देते हैं, तो वसीयत के अनुसार मिलने वाले लाभ या संपत्ति उन्हें नहीं मिलेंगे, लेकिन वसीयत अमान्य नहीं होगी ।

वसीयत को पंजीकृत अवश्य करा लेना चाहिए ताकि इसकी सत्यता पर विवाद ना हो, इसके खोने की आशंका ना रहे अथवा इसके तथ्यों में कोई फेरबदल ना कर सके।

मुसलमान जुबानी वसीयत कर सकता है । अगर उसके वारिस सहमत नहीं हों तो वह अपनी एक तिहाई से ज्यादा संपत्ति (अंतिम संस्कार के खर्च तथा कर्जों के भुगतान के बाद बची संपत्ति का एक तिहाई) का वसीयत के जरिए निपटारा नहीं कर सकता।

मुसलमान की वसीयत अगर लिखी हुई है तो उसे प्रमाणित करने की जरुरत नहीं है । वह हस्ताक्षर के बिना भी वैध है।लेकिन अगर उसके वसीयतकर्ता के बारे में साबित कर दिया जाय।

किसी अभियान या युद्ध के दौरान सैनिक या वायुसैनिक ‘खास वसीयत’ कर सकता है । इसे विशेषाधिकार वसीयत भी कहते हैं।

खास वसीयत का अधिकार हिंदुओं को नहीं प्राप्त है।

खास वसीयत लिखित या कुछ सीमाओं तक मौखिक हो सकती है।

खास वसीयत अगर किसी अन्य व्यक्ति ने लिखा है तो सैनिक के हस्ताक्षर होने चाहिए।लेकिन अगर उसके निर्देश पर लिखा गया है तो हस्ताक्षर की जरुरत नहीं होती है ।

कोई सैनिक दो गवाहों की उपस्थिति में मौखिक वसीयत कर सकता है । लेकिन खास वसीयत का अधिकार ना रहने पर वसीयत एक महीने के बाद खत्म हो जाती है ।

 नाबालिग या पागल व्यक्ति को छोड़कर कोई भी व्यक्ति वसीयत कर सकता है ।

अगर वसीयतकर्ता ने इसे लागू करने वाले का नाम नहीं दिया है या लागू करने वाला अपनी भूमिका को तैयार नहीं है तो वसीयतकर्ता के उत्तराधिकारी अदालत में आवेदन कर सकते हैं कि उन्हीं में से किसी को वसीयत लागू करने वाला नियुक्त कर दिया जाय।

अगर न्यायालय द्वारा नियुक्त व्यक्ति (निष्पादक,executor)अपना कार्य नहीं करता है, तो उत्तराधिकारी न्यायालय से वसीयत लागू करवाने का प्रशासन पत्र हासिल कर सकते हैं ।

वसीयत लागू करने वाले को अदालत से वसीयत पर प्रोबेट(न्यायालय द्वारा जारी की गयी वसीयत की प्रामाणिक कापी) अर्थात प्रमाणपत्र हासिल करना चाहिए।

किसी विवाद की स्थिति में संपत्ति पर अपने कानूनी अधिकार के दावे के लिए , लाभ पाने के इच्छुक वारिस के पास प्रोबेट या प्रशासन पत्र होना जरुरी है ।

वसीयतकर्ता जब भी अपनी संपत्ति को बांटना चाहे वह वसीयत में परिवर्तन कर सकता है या उसे पलट सकता है ।

अगर वसीयतदार, वसीयतकर्ता से पहले मर जाता है तो वसीयत खत्म हो जाती है और संपत्ति वसीयतकर्ता के उत्तराधिकारियों को मिलती है ।

अगर दुर्घटना में वसीयतकर्ता और वसीयत पाने वाले की एक साथ मौत हो जाती है, तो वसीयत समाप्त हो जाती है ।

अगर दो वसीयत पाने वालों में से एक की मौत हो जाती है तो जिंदा व्यक्ति पूरी संपत्ति मिल जाती है ।

वसीयतनामा जमा करने की सुविधा

भारतीय पंजीकरण अधिनियम 1908 के अंतर्गत रजिस्ट्रर के नाम वसीयतनामा जमा किया जाता है ।

वसीयतनामा रजिस्टर कराना या जमा करना अनिवार्य नहीं है ।

वसीयतनामा जमा कराने के लिए रजिस्ट्रार उसका कवर नहीं खोलता है । सब औपचारिकताओं के बाद उसे जमा कर लेता है ।

जबकि पंजीकरण में जो व्यक्ति दस्तावेज प्रस्तुत करता है , सब रजिस्ट्रार उसकी कॉपी कर , उसी व्यक्ति को वापस लौटा देता है।

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