सर्वविख्यात धार्मिक पर्यटन स्थल की नगरी "चंबा"

हिमाचल: सर्वविख्यात धार्मिक पर्यटन स्थल की नगरी “चंबा”


डलहौजी : खजियार से लगभग 24 कि.मी. दूर पर बसा है डलहौजी। जो ब्रिटिशकाल में लार्ड डलहौजी ने बसाया था। उन्हीं के नाम पर

डलहौजी

डलहौजी

इस स्थान का नाम पड़ा है। यहां पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस भी ठहरे थे। मशहूर क्रांतिकारी और भक्तसिंह के चाचा अजीत सिंह का समाधि स्थल, सुभाष बावली, सतधारा, पंचपुला, डलहौजी मार्केट और बहुत सारी प्राचीन चर्चें और इनकी ऐतिहासिकता डलहौजी को निहारने का पर्यटकों में जुनून पैदा करती हैं।

कालाटोप: खजियार से लगभग 13 कि.मी. दूर कालाटोप एक वन्य जीव अभ्यारण्य क्षेत्र के अंतर्गत एक बेहद ही खूबसूरत स्थल है। यहां का लक्कड़मंडी और लक्कड़मंडी दाईं ओर डायन (डैन) कुंड अन्य प्रमुख रमणीय स्थल हैं

मुख्य आकर्षण

चंपावती मंदिर

यह मंदिर राजा साहिल वर्मन की पुत्री को समर्पित है। यह मंदिर शहर की पुलिस चौकी और कोषागार भवन के पीछे स्थित है। कहा जाता है कि चंपावती ने अपने पिता को चंबा नगर स्थापित करने के लिए प्रेरित किया था। मंदिर को शिखर शैली में बनाया गया है। मंदिर में पत्थरों पर खूबसूरत नक्काशी की गई है और छत को पहिएनुमा बनाया गया है।

लक्ष्मीनारायण मंदिर

यह मंदिर पांरपरिक वास्तुकारी और मूर्तिकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। चंबा के 6 प्रमुख मंदिरों में यह मंदिर सबसे विशाल और प्राचीन है। कहा जाता है कि सवसे पहले यह

लक्ष्मीनारायण मंदिर

लक्ष्मीनारायण मंदिर

मन्दिर चम्बा के चौगान में स्थित था परन्तु बाद में इस मन्दिर को राजमहल (जो वर्तमान में चम्बा जिले का राजकीय महाविद्यालय है) के साथ स्थापित कर दिया गया। भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर राजा साहिल वर्मन ने 10 वीं शताब्दी में बनवाया था।  लक्ष्मी नारायण का मंदिर चंबा शहर का मुख्य मंदिर है। शिखर शैली में बने इस मंदिर परिसर में राधा कृष्ण, शिव व गौरी आदि देवी-देवताओं के मंदिरों को भी शामिल किया गया है। चंबा पहुंचने वाले पर्यटक इन मंदिरों के दर्शन करने अवश्य पहुंचते हैं।

यह मंदिर शिखर शैली में निर्मित है। मंदिर में एक विमान और गर्भगृह है। मंदिर का ढांचा मंडप के समान है। मंदिर की छतरियां और पत्थर की छत इसे बर्फबारी से बचाती है।

भूरी सिंह संग्रहालय

भूरी सिंह संग्रहालय चंबा में स्थित यह संग्रहालय चंबा के राजा भूरि सिंह के नाम पर पड़ा

भूरी सिंह संग्रहालय चंबा में स्थित यह संग्रहालय चंबा के राजा भूरि सिंह के नाम पर पड़ा

चंबा में स्थित यह संग्रहालय चंबा के राजा भूरि सिंह के नाम पर पड़ा है। इस संग्रहालय में आपको रियासतकालीन बहुमूल्य और नायाब चीजें देखने को मिलेंगी जिसमें तांबे की प्लेट, भित्ति चित्र, दरवाजे, वेशभूषा, अन्य चित्र और पत्थर नक्काशियां संग्रह में शामिल हैं। इसके अलावा प्राचीन सिक्के, पहाड़ी गहने, पारंपरिक वेशभूषा, शाही हथियार, कवच, संगीत वाद्ययंत्र व अन्य सजावटी वस्तुएं संग्रह में शामिल हैं।

यह संग्रहालय 14 सितंबर 1908 ई. को खुला था। 1904-1919 तक यहां शासन करने वाले राजा भूरी सिंह के नाम पर इस संग्रहालय का नाम पड़ा। भूरी सिंह ने अपनी परिवार की पेंटिग्स का संग्रह संग्रहालय को दान कर दिया था। चंबा की सांस्कृतिक विरासत को संजोए इस संग्रहालय में बसहोली और कांगड़ा आर्ट स्कूल की लघु पेंटिग भी रखी गई हैं।

भंडाल घाटी

यह घाटी वन्य जीव प्रेमियों को काफी लुभाती है। यह खूबसूरत घाटी 6006 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह घाटी चंबा से 22 किमी. दूर सलूनी से जुड़ी हुई है। यहां से ट्रैकिंग करते हुए जम्मू कश्मीर पहुंचा जा सकता है।

भरमौर

भरमौर

भरमौर

चंबा की इस प्राचीन राजधानी को पहले ब्रह्मपुरा नाम से जाना जाता था। 2195 मीटर की ऊंचाई पर स्थित भरमौर घने जंगलों से घिरा है। किवदंतियों के अनुसार 10 वीं शताब्दी में यहां 84 संत आए थे। उन्होंने यहां के राजा को 10 पुत्र और एक पुत्री चंपावती का आशीर्वाद दिया था। यहां बने मंदिर को चौरासी नाम से जाना जाता है। लक्ष्मी देवी, गणेश और नरसिंह मंदिर चौरासी मंदिर के अन्तर्गत ही आतें हैं। भरमौर से कुगती पास और कलीचो पास की ओर जाने के लिए उत्तम ट्रैकिंग रूट है।

खजियार से लगभग 64 कि.मी. दूर लगभग 7000 फुट की ऊंचाई पर चंबा का जनजातीय क्षेत्र भरमौर एक अन्य दर्शनीय स्थल है। यह एक कठिन और दुर्गम क्षेत्र है। भरमौर पहले चंबा की राजधानी थी। यहां मौसम के मिजाज को देखते हुए ही जाना चाहिए। जरा-सा मौसम खराब होते ही यहां बर्फबारी का नजारा भी देखा जा सकता है। यहां का शिखर शैली में बना चौरासी मंदिर परिसर पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। 7वीं शताब्दी में बना यह चौरासी मंदिर परिसर आज भी अपने धार्मिक महत्व और ऐतिहासिकता पर कायम है।

  •  राजा साहिल वर्मा ने 84 योगियों के सम्मान में यहां चौरासी मंदिर बनाए थे

    राजा साहिल वर्मा ने 84 योगियों के सम्मान में यहां चौरासी मंदिर बनाए थे

    भरमौर- चंबा कस्बे से 42 मील की दूरी पर 7000 फीट की ऊंचाई पर भरमौर धार्मिक व ऐतिहासिक स्थान है। ऐसा माना जाता है कि छठी से दसवीं शताब्दी के दौरान भरमौर चंबा राजाओं की राजधानी रहा है। पहले इसे ब्रह्मपुर नाम से जाना जाता था। भरमौर अपने चौरासी मंदिरों के लिए विख्यात है। मुख्य मंदिरों में मणिमहेश , नारसिंग, हरिहर, महादेवश, लक्षणा देवी और गणेश मंदिर हैं। भरमौरवासी शिव के उपासक हैं। अतः भरमौर को शिवभूमि भी कहा जाता है। राजा साहिल वर्मा ने 84 योगियों के सम्मान में यहां चौरासी मंदिर बनाए थे तथा उन्हीं के आर्शीवाद से उसे पुत्र प्राप्त हुआ था। धर्मराज का मन्दिर  भरमौर की ‘चौरासी’ में स्थित है : कहा जाता है कि भारत के अन्दर किसी महत्वपूर्ण शिवधाम के करीब धर्मराज का कोई मन्दिर है। इंसान की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा सबसे पहले इसी मन्दिर में जाती है और वहीं पर उसके कर्मों के अनुसार उसे अगले जन्म में प्रवेश मिलता है। हिमाचल में सिद्धों की तपस्थली भरमौर की ‘चौरासी’ में स्थित है यह मन्दिर।

    जारी…………..

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