नमामि गंगे परियोजनाओं को 295 करोड़ रुपए की मंजूरी

गंगा को निर्मल और अविरल बनाने पर लगभग 40 से 50 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान

फीचर

  • गंगा सफाई अभियान-चुनौतियां और समस्याएं
  • आकाश श्रीवास्तव

 

भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी गंगा जो भारत और बांग्लादेश में मिलाकर 2510 किमी की दूरी तय करती हुई उत्तराखंड में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन तक विशाल भू भाग को सींचती है, देश की प्राकृतिक संपदा ही नहीं, जन जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। 2071 कि.मी तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। 100 फीट (31 मीटर) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ और देवी के रूप में की जाती है। भारतीय पुराण और साहित्य में अपने सौंदर्य और महत्व के कारण बार-बार आदर के साथ वंदित गंगा नदी के प्रति विदेशी साहित्य में भी प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णन किए गए हैं।

वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस असीमित शुद्धीकरण क्षमता और सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसका प्रदूषण रोका नहीं जा सका है। फिर भी इसके प्रयत्न जारी हैं और सफ़ाई की अनेक परियोजनाओं के क्रम में नवंबर, 2008 में भारत सरकार द्वारा इसे भारत की राष्ट्रीय नदी तथा इलाहाबाद और हल्दिया के बीच (1600 किलोमीटर) गंगा नदी जलमार्ग- को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया।

गंगा का उदगम-

गंगा नदी की प्रधान शाखा भागीरथी है जो हिमालय के गोमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद से निकलती है। गंगा के इस उदगम स्थल की ऊँचाई 3140 मीटर है। यहाँ गंगा जी को समर्पित एक मंदिर भी है। गंगोत्री तीर्थ, शहर से 19 कि॰मी॰ उत्तर की ओर 3892 मी.(12,770 फी.) की ऊँचाई पर इस हिमनद का मुख है। यह हिमनद 25 कि॰मी॰ लंबा व 4 कि॰मी॰ चौड़ा और लगभग 40 मी. ऊँचा है। इसी ग्लेशियर से भागीरथी एक छोटे से गुफानुमा मुख पर अवतरित होती है। इसका जल स्रोत 5000 मी. ऊँचाई पर स्थित एक बेसिन है। इस बेसिन का मूल पश्चिमी ढलान की संतोपंथ की चोटियों में है। गौमुख के रास्ते में 3600 मी. ऊँचे चिरबासा ग्राम से विशाल गोमुख हिमनद के दर्शन होते हैं। इस हिमनद में नंदा देवी, कामत पर्वत एवं त्रिशूल पर्वत का हिम पिघल कर आता है। यद्यपि गंगा के आकार लेने में अनेक छोटी धाराओं का योगदान है लेकिन छह बड़ी और उनकी सहायक पांच छोटी धाराओं का भौगोलिक और सांस्कृतिक महत्त्व अधिक है।

गंगा को सबसे बड़ा खतरा प्रदूषण से

गंगा को साफ करना भारत सरकार के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। इसमें सबसे बड़ी चुनौती गंगा में हर तरफ से आ रहा मल-मूत्र का कचरा, औद्योगिक कचरा, बूचडखानों का कचरा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 1984 में गंगा बेसिन में सर्वे के बाद अपनी रिपोर्ट में गंगा के प्रदूषण पर गंभीर चिंता जताई थी। इसके आधार पर पहला गंगा एक्शन प्लान 1985 में अस्तित्व में आया। इसके तहत काम शुरू भी किया गया, लेकिन सफलता बेहद कम मिली। यह 15 साल चला। इस पर 901 करोड़ रुपये खर्च हुए। मार्च 2000 में इसे बंद कर दिया गया। इसी बीच अप्रैल 1993 में तीन और नदियों यमुना, गोमती और दामोदर के साथ गंगा एक्शन प्लान-दो शुरू किया गया, जो 1995 में प्रभावी रूप ले सका। दिसंबर 1996 में गंगा एक्शन प्लान-दो को राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना में विलय कर दिया गया। फरवरी 2009 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन अथॉरिटी (एनआरजीबीए) का गठन किया गया। इसमें गंगा के साथ यमुना, गोमती, दामोदर व महानंदा को भी शामिल किया गया। 2011 में इस कार्य के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन का गठन एक पंजीकृत सोसायटी के रूप में किया गया। मोदी सरकार ने 2014 में नमामि गंगे कार्यक्रम शुरू किया। 1995 से 2014 तक की गंगा सफाई की इन योजनाओं पर 4,168 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। इसमें छोटी-बड़ी 927 योजनाओं पर काम करते हुए 2,618 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) क्षमता हासिल की गई। इनके तहत कुछ परियोजनाएं अभी भी चल रही है।

गंगा नदी विश्व भर में अपनी शुद्धीकरण क्षमता के कारण जानी जाती है। लंबे समय से प्रचलित इसकी शुद्धीकरण की मान्यता का वैज्ञानिक आधार भी है। नदी के जल में प्राणवायु (ऑक्सीजन) की मात्रा को बनाए रखने की असाधारण क्षमता है। लेकिन गंगा के तट पर घने बसे औद्योगिक नगरों के नालों की गंदगी सीधे गंगा नदी में मिलने से गंगा का प्रदूषण पिछले कई सालों से भारत सरकार और जनता की चिंता का विषय बना हुआ है। औद्योगिक कचरे के साथ-साथ प्लास्टिक कचरे की बहुतायत ने गंगा जल को भी बेहद प्रदूषित किया है। वैज्ञानिक जांच के अनुसार गंगा का बायोलाजिकल ऑक्सीजन स्तर 3 डिग्री (सामान्य) से बढ़कर 6 डिग्री हो चुका है। गंगा में 2 करोड़ 90 लाख लीटर प्रदूषित कचरा प्रतिदिन गिर रहा है। विश्व बैंक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर-प्रदेश की 12 प्रतिशत बीमारियों की वजह प्रदूषित गंगा जल है। यह घोर चिंता का विषय है कि गंगा-जल न स्नान के योग्य रहा, न पीने के योग्य रहा और न ही सिंचाई के योग्य। गंगा के पराभव का अर्थ होगा, हमारी समूची सभ्यता का अन्त। शहर की गंदगी को साफ करने के लिए संयंत्रों को लगाया जा रहा है और उद्योगों के कचरों को इसमें गिरने से रोकने के लिए कानून बने हैं। इसी क्रम में गंगा को राष्ट्रीय धरोहर भी घोषित कर दिया गया है और गंगा एक्शन प्लान व राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना लागू की गई हैं। हालांकि इसकी सफलता पर प्रश्नचिह्न भी लगाए जाते रहे हैं। जनता भी इस विषय में जागृत हुई है। इसके साथ ही धार्मिक भावनाएँ आहत न हों इसके भी प्रयत्न किए जा रहे हैं। इतना सबकुछ होने के बावजूद गंगा के अस्तित्व पर संकट के बादल छाए हुए हैं। 2007 की एक संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट के अनुसार हिमालय पर स्थित गंगा की जलापूर्ति करने वाले हिमनद की 2030 तक समाप्त हो जाने की आशंका है। इसके बाद नदी का बहाव मानसून पर आश्रित होकर मौसमी ही रह जाएगा।

गंगा को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए सरकार की नमामि गंगे योजना

 

गंगा को निर्मल और अविरल बनाने के काम पर लगभग 40 से 50 हजार करोड़ रुपये तक का खर्च आने का अनुमान है। जबकि सरकार ने फिलहाल इस काम के लिए 20 हजार करोड़ रूपए आवांटित किए गए हैं। गंगा को स्वच्छ करने में पांच साल का समय लगने की उम्मीद है, जबकि उसके घाटों के सौंदर्यीकरण व परिवहन की समूची योजना के क्रियान्वयन में लगभग डेढ़ दशक लग सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि गंगा की स्थिति दुनिया की अन्य नदियों से भिन्न है। इसमें हर रोज लाखों लोग डुबकी लगाते हैं। करोड़ों लोगों की आस्था के महाकुंभ जैसे आयोजन होते हैं। सैकड़ों टन पूजन सामग्री भी इसमें प्रवाहित होती है। इस नदी की सफाई के लिए कई बार पहल की गयी लेकिन कोई भी संतोषजनक स्थिति तक नहीं पहुँच पाया। प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद नरेन्द्र मोदी ने गंगा नदी में प्रदूषण पर नियंत्रण करने और इसकी सफाई का अभियान चलाया। इसके बाद उन्होंने जुलाई 2014 में आम बजट में नमामि गंगा नामक एक परियोजना आरम्भ की। इसी परियोजना के हिस्से के रूप में भारत सरकार ने गंगा के किनारे स्थित 48 औद्योगिक इकाइयों को बन्द करने का आदेश दिया है। विभिन्न उपकरणों की मदद से विशेष सफाई अभियान चलाया जा रहा है। जून 2015 से इसे आठ शहरों कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, मथुरा-वृंदावन, पटना, साहिबगंज, हरिद्वार व नवद्वीप में पायलट परियोजना के रूप में शुरू किया गया। यह काम घाटों पर किया जा रहा है। इसमें ट्रेश स्कीमर, एरेटर्स, बूम आदि उपकरणों का उपयोग किया जाएगा। ये मशीनें 50 हजार से लेकर 16 करोड़ रुपये तक की हैं। श्रद्धालुओं को उनके परिजनों के नाम से दान देने के लिए कहा जाएगा और शिलापट्ट पर उनके नाम भी लिखे जाएंगे। सफाई के लिए 10 से 20 लोगों के समूहों को 10 से 20 दिन के लिए बुलाया जाएगा। इन वालंटियरों को ठहरने व खाने की व्यवस्था के साथ अच्छी खासी प्रोत्साहन राशि भी दी जाएगी। साथ ही आधुनिक शवदाह गृह, मॉडल धोबी घाट और अन्य घाटों पर सोलर पैनल आदि बनाए जाएंगे।

इस सबके बावजूद समूची गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करना एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसकी सफलता के लिए जरूरी है कि सभी सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं, वाणिज्यिक उपक्रम और धार्मिक संस्थान भी पूरी ईमानदारी के साथ इस राष्ट्रीय कार्यक्रम से जुड़े। गंगा के आस-पास रहने वाले प्रत्येक भारतीय का भी यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि वह इस राष्ट्रीय कार्यक्रम में जिस रूप में भी संभव हो अपना सकारात्मक योगदान करे।

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