हिमाचल के निचले एवं गर्म क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है पीला रतुआ… जानें रोग एवं उपचार

हिमाचल प्रदेश में पीला रतुआ (येलो रस्ट या स्ट्राइप रस्ट) गेहूँ का प्रमुख रोग है। यह बीमारी प्रदेश में दिसम्बर के मध्य से लेकर फरवरी के पहले पखवाड़े तक आती है तथा इसके बाद फसल पर मार्च के अंत तक फैलती रहती है। इस रोग का प्रकोप अधिक ठण्ड और नमी वाले क्षेत्रों में ज्यादा होता है। साथ ही पापुलर व सफेदे के पेड़ों के आसपास उगाई गई फसलों में यह बीमारी सबसे पहले आती है।

ये हैं लक्षण:

पीला रतुआ बीमारी में गेहूं के पत्तों पर पीले रंग का पाउडर बनता है, जिसे हाथ से छूने पर हाथ पीला हो जाता है। रोग के लक्षण पीले रंग की धारियों के रूप में पत्तियों पर दिखाई देते हैं, जिनमें से पिसी हुई हल्दी जैसा पीला चूर्ण निकलता है जो रोग की गम्भीर अवस्था में जमीन पर भी गिरा हुआ दिखाई देता है। रोग नियंत्रण के लिए सही समय पर रोग प्रतिरोधी किस्मों के बीज का उपयोग कर रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है। फसल के इस रोग की चपेट में आने से पैदावार में काफी हानि होती है। किसानों को फसल से हाथ धोना पड़ता है।

पत्तों का पीला होना ही पीला रतुआ नहीं है, पीला पत्ता होने के कारण फसल में पोषक तत्वों की कमी, जमीन में नमक की मात्रा ज्यादा होना व पानी का ठहराव भी हो सकता है। यदि रोग के लक्षण दिखाई दें तो उसका निदान रासायनिक अथवा जैविक किसी भी उपचार से किया जा सकता है।

अधिक बीमारी वाले खेत में घूमने पर कपड़े भी पीले हो जाते हैं। यदि यह रोग कल्ले निकलने की अवस्था में या इससे पहले आ जाए तो फसल को भारी हानि होती है। पीली धारियां मुख्यत: पत्तियों पर ही पाई जाती हैं परन्तु रोग की व्यापक दशा में पत्तियों के आवरण, तनों एवं बालियों पर भी देखी जा सकती है। तापमान बढ़ने पर मार्च के अंत से पत्तियों की पीली धारियां काले रंग में बदल जाती हैं। रोग से प्रभावित पत्तियां शीघ्र ही सूख जाती हैं। इस रोग की वजह से सिकुड़े दाने पैदा होते हैं जिससे पैदावार में भारी कमी आती है।

गेहूँ की फसल में पिछले कुछ वर्षों से पीला रतुआ रोग का प्रकोप काफी बढ़ गया है। रोग में फफूंदी के फफोले पत्तियों पर पड़ जाते हैं, जो बाद में बिखरकर अन्य पत्तियों को ग्रसित कर देते हैं। पीला रतुआ तीन प्रकार का होता है, जिसमें काला रतुआ, भूरा रतुआ और पीला रतुआ शामिल है। हिमाचल के निचले एवं गर्म क्षेत्रों में पीला रतुआ (येलोरस्ट) अधिक पाया जाता है।

करनाल बंट

यलो रस्ट और करनाल बंटपीला रतुआ के अतिरिक्त प्रदेश में गेहूँ की बालियों में फूल आने के समय पर वातावरण में अधिक नमी या रूक-रूक कर बारिश होने पर, इस रोग का संक्रमण बढ़ जाता है। इसके कारण पौधे की कुछ बालियों में व एक बाली में कुछ ही दाने आंशिक रूप से काले चूर्ण में परिवर्तित हो जाते हैं।

इसके प्रबन्धन के लिए प्रॉपीकोनाजोल 25 ई.सी. एक कनाल के लिए 30मि.ली. दवाई 30 लीटर पानी (1 मि.ली./1 लीटर पानी) में घोलकर, फसल में बूटिंग (बालियां निकलने से पहले की) अवस्था पर तथा पौधों में 50 प्रतिशत बालियां निकलने पर छिड़काव करें।

प्रबन्धन

  • हमेशा रोग रोधी किस्मों का ही प्रयोग करें।

  • बुआई किस्मों के अनुमोदित समय अनुसार करें।

  • क्षेत्र में अनुमोदित किस्मों की ही बुआई करें तथा ध्यान रखें कि दूसरे क्षेत्रों के लिए अनुमोदित किस्मों को न उगाएं।

  • रोग के प्रकोप तथा फैलाव को देखते ही दूसरा छिड़काव 15 से 20 दिन के अन्तराल पर करें।

  • छिड़काव सही ढंग से करें ताकि दवा पौधों के सभी भागों में अच्छी तरह से फैल जाए।

  • छिड़काव के लिए पानी की उचित मात्रा का प्रयोग करें। अधिक या कम मात्रा का प्रयोग से छिड़काव का पूर्ण लाभ नहीं मिल पाएगा।

  • छिड़काव दोपहर बाद करें।

  • यदि छिड़काव के बाद दो घंटे के अन्दर बारिश हो जाती है तो मौसम ठीक होने पर दोबारा छिड़काव करें।

  • फसल का दिसंबर माह के मध्य से ध्यानपूर्वक नियमित निरीक्षण करें। पेड़ों के आस-पास उगाई गई फसल पर विशेष ध्यान दें।

  • फसल पर इस रोग के लक्षण दिखने पर (दिसम्बर के मध्य से लेकर फरवरी के पहले पखवाड़े तक आती है तथा इसके बाद फसल पर मार्च के अंत तक फैलती रहती है) प्रोपीकोनाज़ोल नामक कवकनाशी दवाई के 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। यदि रोग इससे पहले या बाद में दिखाई दे, तो भी दवाई का छिड़काव कर दें।

  • छिड़काव के लिए प्रोपीकोनाज़ोल 25 ई सी का 0.1 प्रतिशत घोल बनाने के लिए एक कनाल के लिए 30 मि.ली. दवाई लीटर 30 लीटर पानी में या एक बीघे के लिए 60 मि. ली. दवाई 60 लीटर पानी (1 मि.ली./ 1 लीटर पानी) में घोलकर छिड़काव करें तथा स्टिकर का इस्तेमाल अवश्य करें।

विभिन्न क्षेत्रों के लिए अनुमोदित पीला रतुआ रोधी किस्में:-

निचले क्षेत्र (1000 मी. से नीचे वाले क्षेत्र)

अगेती:- हिम पालम गेहूँ 1 (एच पी डब्ल्यू 360) और एच एस 542

समय पर: हिम पालम गेहूँ – 2 (एच पी डब्ल्यू 368), और एच एस 507, एच एस 562, वी एल 907, एच डी डब्ल्यू 3086 (पूसा गौतमी), डब्ल्यू एच 1105, डब्ल्यू एच 1184, पी बी डब्ल्यू 723, पी बी डब्ल्यू 725, पी डब्ल्यू 660, डब्लयू बी 2, एच पी डब्लयू 01 (पी बी डब्लयू जिंक), एच डी 3226, यू पी 2784, डी बी डब्लयू 222, डब्लयू एच 711, उन्नत 343 और डी बी डब्लयू 187

पछेती:- यू पी 2425, एच डी 2888, एच एस 490, एच डी 3059, डी बी डब्लयू 71, डब्लयू एच 1124, हिम पालम गेहूँ-3 (एच पी डब्लयू 373), पी बी डब्लयू 752, पी बी डब्लयू 757, स्नो पालम वीट-3 और पी बी डब्लयू 771

मध्यवर्ती क्षेत्र (1001-1500 मी.)

अगेती:- हिम पालम गेहूँ-1 (एच पी डब्लयू 360), एच एस 542

समय पर: हिम पालम गेहूँ-2 (एच पी डब्लयू 368), एच पी डब्लयू 349, एच पी डब्लयू 249, एच एस 507, एच एस 562, वी एल 907, उन्नत 343 और एच डी 3086 (पूसा गौतमी)

पछेती:- एच एस 490, हिम पालम गेहूँ-3 (एच पी डब्ल्यू 373)

ऊँचे पर्वतीय क्षेत्र (1501-2500 मी.)

एच एस 542, एच पी डब्लयू 349, एच पी डब्ल्यू 368, हिम प्रथम

बहुत ऊँचे/ बर्फानी क्षेत्र (2500 मीटर से ऊपर)  

एच एस 490, हिम प्रथम, हिम पालम गेहूँ-3 (एच पी डब्लयू 373), सप्तधारा

 

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