दशहरे की एक ओर सामाजिक महत्वता तो दूसरी ओर सांस्कृतिक लोकोत्सव की धूम
दशहरे की एक ओर सामाजिक महत्वता तो दूसरी ओर सांस्कृतिक लोकोत्सव की धूम
तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक में दशहरा नौ दिनों तक चलता है जिसमें तीन देवियां लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की पूजा करते हैं।
तीन देवियां लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की पूजा
पहले तीन दिन लक्ष्मी, धन और समृद्धि की देवी, का पूजन होता है। अगले तीन दिन सरस्वती, कला और विद्या की देवी की अर्चना की जाती है और अंतिम दिन देवी दुर्गा, शक्ति की देवी की स्तुति की जाती है। पूजन स्थल को अच्छी तरह फूलों और दीपकों से सजाया जाता है। लोग एक दूसरे को मिठाइयां और कपड़े देते हैं।
गुजरात में मिट्टी सुशोभित रंगीन घड़ा देवी का प्रतीक माना जाता है और इसको कुंवारी लड़कियां सिर पर रखकर एक लोकप्रिय नृत्य करती हैं जिसे गरबा कहा जाता है। गरबा नृत्य इस पर्व की शान है। इस अवसर पर भक्ति, फिल्म तथा पारंपरिक लोक-संगीत सभी का समायोजन होता है। पूजा और आरती के बाद डांडिया रास का आयोजन पूरी रात होता रहता है। पुरुष एवं स्त्रियां दो छोटे रंगीन डंडों को संगीत की लय पर आपस में बजाते हुए घूम-घूम कर नृत्य करते हैं पुरुष एवं स्त्रियां दो छोटे रंगीन डंडों को संगीत की लय पर आपस में बजाते हुए घूम-घूम कर नृत्य करते हैं। इस नवरात्रि पर्व पर सोने और गहनों की खरीद को शुभ माना जाता है। दशहरे के दिन मा का हवन भी कई जगहों पर किया जाता है। परिवारवाले इस दिन फाफाडा व जलेबी खाते है।
महाराष्ट्र में नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा को समर्पित रहते हैं, जबकि दसवें दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की वंदना की जाती है। इस दिन विद्यालय जाने वाले बच्चे अपनी पढ़ाई में आशीर्वाद पाने के लिए मां सरस्वती के तांत्रिक चिह्नों की पूजा करते हैं। किसी भी चीज को प्रारंभ करने के लिए खासकर विद्या आरंभ करने के लिए यह दिन काफी शुभ माना जाता है। महाराष्ट्र के लोग इस दिन विवाह, गृह-प्रवेश एवं नये घर खरीदने का शुभ मुहूर्त समझते हैं।
महाराष्ट्र में इस अवसर पर सिलंगण के नाम से सामाजिक महोत्सव भी मनाया जाता है। इसमें शाम के समय सभी गांव वाले सुंदर-सुंदर नये वस्त्रों से सुसज्जित होकर गांव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्तों को लूट कर अपने ग्राम में वापस आते हैं। फिर इन पत्तों का परस्पर आदान-प्रदान किया जाता है। इन का मानना है कि ऐसा करने से घर में सुवर्ण सम संपत्ति आती है।
कश्मीर के अल्पसंख्यक हिन्दू नवरात्रि के पर्व को श्रद्धा से मनाते हैं। परिवार के सारे वयस्क सदस्य नौ दिनों तक सिर्फ पानी पीकर उपवास करते हैं। अत्यंत पुरानी परंपरा के अनुसार नौ दिनों तक लोग माता खीर भवानी के दर्शन करने के लिए जाते हैं। यह मंदिर एक झील के बीचोबीच बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि देवी ने अपने भक्तों से कहा हुआ है कि यदि कोई अनहोनी होने वाली होगी तो सरोवर का पानी काला हो जाएगा। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी की हत्या के ठीक एक दिन पहले और भारत पाक युद्ध के पहले यहां का पानी सचमुच काला हो गया था।
सच कहें तो भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शौर्य की उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए ही शायद हमारे पूर्वजों ने दशहरे का उत्सव रखा होगा। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है। दशहरे का उत्सव शक्ति और शक्ति का समन्वय बताने वाला उत्सव है। नवरात्रि के नौ दिन जगदम्बा की उपासना करके शक्तिशाली बना हुआ मनुष्य विजय प्राप्ति के लिए सारे साल तत्पर रहता है। इस दृष्टि से दशहरा, विजय के लिए प्रस्थान का उत्सव है। यह देशभर में खूब धूमधाम से मनाया जाता है।