सेब की पत्तियों का गहरे रंग का होना पौधों के उचित स्वास्थ्य का परिचायक: डॉ.एस.पी. भारद्वाज

सेब की पत्तियों का गहरे रंग का होना पौधों के उचित स्वास्थ्य का परिचायक: डॉ.एस.पी. भारद्वाज

बागवानी विशेषज्ञ

डॉ. एस.पी. भारद्वाज

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  • सेब के बागीचों में नत्रजन का प्रयोग पौधों के फूल खिलने व फल बनने तक अत्यंत सहायक
  • पत्तियों को गहरे रंग का होना पौधों के उचित स्वास्थ्य का परिचायक
  • बोरोन पौधों में कैलशियम के आवागमन में मुख्य भूमिका निभाता है
  • जिंक की कमी के कारण पत्तियों व नई कलियों का पूर्ण विकास नहीं हो पाता
  • स्वस्थ पौधे होते हैं स्वस्थ व गुणवत्तायुक्त फल उत्पादन में सक्षम

 

अक्तूबर व नवम्बर माह सेब बागीचों में तापमान में निरंतर गिरावट होने पर पौधों में पतझड़ की प्रक्रिया आरंभ

अक्तूबर व नवम्बर माह सेब बागीचों में तापमान में निरंतर गिरावट होने पर पौधों में पतझड़ की प्रक्रिया आरंभ

सामान्य रूप में अक्तूबर व नवम्बर माह सेब बागीचों में तापमान में निरंतर गिरावट होने पर पौधों में पतझड़ की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है। इस अवस्था में कुछ महत्वपूर्ण कार्य करने आवश्यक हो जाते हैं अन्यथा अगले वर्ष पौधों में फूल खिलने तथा फल बनने की प्रक्रिया बाधित हो जाती है। इस समय बागवानों को मुख्य रूप से जिन कार्यों को करना नितांत आवश्यक है, की जानकारी दी जा रही है।

सबसे पहले बागीचे में पौधों में हुए विकास का पूर्ण आंकलन कर लें तथा यह भी देखे की बूली एफिड, तना छदेक, सैंजीस स्केलू व रैड गाईट का आक्रमण है या नहीं। पत्तियों को गहरे रंग का होना पौधों के उचित स्वास्थ्य का परिचायक है। बहुत या पत्तियों पर फफूंदजनित धब्बे भी दिखाई देते हैं परंतु इन की अधिकता न हो यह बहुत आवश्यक है।

इस समय जिन पोषक तत्वों के पौधें को आवश्यकता है वे हैं नत्रजन, जस्ता (जिंक) तथा बोरोन। पौधों को नत्रजन की कितनी मात्रा होनी चाहिए यह इस बात पर निर्भर करता है कि पौधों की आयु क्या है? और इस वर्ष पौधों की कांट छांट कितनी करनी है। यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि इस समय तक कितना विकास टहनियों का हुआ है। स्पर किस्मों में जो फलदार पौधे हैं यदि सामान्य विकास 8-10 “ (2 0-25 सै.मी) हुआ है तो यह वांछित विकास है। इससे कम या अधिक विकास पौधों में फल की गुणवत्ता को प्रभावित करके अन्य कई समास्याओं को बढ़ावा देता है।

पौधों की नान-स्पर किस्में जिसमें रायल तथा रैड डिलिशियस प्रजातियां आती हैं में सामान्य टहनियों का विकास 10”-18” (25-45 सै.मी.) तक होना फल की गुणवत्ता को स्थिर रखता है और पौधों में बांछित फल उत्पादन प्राप्त होता है। यदि यह विकास इस स्तर से कम या अधिक हुआ है तो नत्रजन की मात्रा पौधों में फल की संख्या तथा रंग को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है तथा बूली एफिड रैड माईट, सैंजोस स्केल तथा कैंकर रोग की समस्याओं को बढ़ाने में सहायक है। अत: ऐसी परिस्थिति से बचें तथा पौधों के विकास का सही आंकलन करने के पश्चात ही नत्रजन की मात्रा का निर्धारण करें।

सामान्यत: यूरिया कम से कम 3 किलों और अधिक से अधिक 5 किलों प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर पौधों की पत्तियों, तनों,

स्वस्थ पौधे होते हैं स्वस्थ व गुणवत्तायुक्त फल उत्पादन में सक्षम

स्वस्थ पौधे होते हैं स्वस्थ व गुणवत्तायुक्त फल उत्पादन में सक्षम

शाखाओं पर सुचारू रूप से छिडक़र गीला करें। इस समय दी गई नत्रजन का प्रयोग पौधों के फूल खिलने व फल बनने तक अत्यंत सहायक होता है और फल उत्पादन क्षमता को स्थिर रखता है। नत्रजन का प्रयोग उन्हीं व्यवसयिक नाम को प्रयोग करें जिनमें बाईयूरेट की मात्रा 2 प्रतिशत से कम हो, इससे पौधों की पत्तियों तथा छाल पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं होता।

पत्तियों में पोषक तत्वों की जांच किसी सरकारी, विश्वविद्यालय या स्वीकृत प्रयोगशाला से अवश्य कराएं। नत्रजन तत्व की सामान्य श्रेणी (200-200 प्रतिशत) तथा 2.0 प्रतिशत से कम अपूर्ण या कमी वाली श्रेणी को दर्शाता है।

प्रदेश के सेब बागीचों में जस्ता जिंक की कमी सभी क्षेत्रों में देखी गई है। जिंक की कमी के कारण टहनियों के ऊपरी छोर पर पत्तियां बहुत छोटी निकलती है तथा इसके नीचे वाले भाग में बहुत देरी से आती है जिसके कारण टहनियों का विकास अवरूद्ध हो जाता है। जिंक का सबसे अधिक महत्व पौधों में पौध रस चलने या कली फूटने से लेकर फल बनने तक है क्योंकि जिंक पौधे की अनेक वायोकैमिकल तथा एन्जाईम में प्रभावशाली भूमिका निभाता है। जिंक की कमी के कारण पत्तियों व नई कलियों का पूर्ण विकास नहीं हो पाता। इसके अतिरिक्त वराग नली का विकास पूर्ण रूप से नहीं होता तथा फल बनने की प्रक्रिया प्रभावित होती है। जिंक ठंड के कारण हुई क्षति की आपूर्ति करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

जिंक तत्व की आपूर्ति छिडक़ाव विधि द्वारा की जानी चाहिए क्योंकि छिडक़ाव द्वारा जिंक की मात्रा भूमि में प्रयोग की गई विधि से कहीं अधिक लाभप्रद है। जिंक की क्षतिपूर्ति तथा संपूर्ण मात्रा संचालन के लिए जिंक सल्फेट 1 किलो प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर छिडक़े। जिंक सल्फेट के साथ चूना 500 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी में अवश्य मिलाएं। इस छिडक़ाव को अलग से ही करें। इस समय किए गए जिंक सल्फेट व चूने के छिडक़ाव द्वारा जमा हुई मात्रा का सदुप्रयोग कली की फूटने की अवस्था से फल बनने तक अत्यंत लाभकर है। भूमि में पीएच की मात्रा अधिक होने पर जिंक की दी गई मात्रा की उपलब्धता नहीं हो पाती है।

नत्रजन व जिंक के अतिरिक्त बोरोन तत्व का भी इस समय प्रयोग लाभप्रद रहता है। बोरोन एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है जिसकी भूमिका फल पौधों के विकास तथा फल उत्पादन में विशिष्ट स्थान रखती है। बोरोन पौधों में कैलशियम के आवागमन में मुख्य भूमिका निभाता है। बोरोन अत्यंत गतिशील पोषक तत्व होने के कारण पौधें में एक स्थान पर नहीं रहता तथा गतिशीलता बनाए रखता है। बोरोन कोशिकाओं की बाहय दीवार बनाने, जायलम कोशिकाओं को बनाने, नई कोशिकाओं तथा टिशु का जड़ों, फूलों तथा फलों के निर्माण में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाता है। इसके अतिरिक्त बोरोन पोषक तत्व परागकण के विकास, परागनली के निर्माण तथा गतिशीलता प्रदान करने में प्रमुख भूमिका निभाता है। बोरोन की कमी फल उत्पादन में भारी कमी तथा उत्पादन क्षमता को प्रभावित करता है। अत: बोरोन की कमी पौधों में न हो उसके उपाय उचित समय पर करने अति आवश्यक हो जाते हैं।

पत्तियों को गहरे रंग का होना पौधों के उचित स्वास्थ्य का परिचायक

पत्तियों को गहरे रंग का होना पौधों के उचित स्वास्थ्य का परिचायक

इस समय बोरिक एसिड 200 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर सुचारू रूप से छिडक़ने से लाभ मिलता है। यूरिया तथा बोरिक एसिड को एक-एक करके घोलकर इसमें एक साथ भी छिडक़ा जा सकता है। ऐसा करने के लिए बोरिक एसिड को पानी में पहले घोल लें तथा बाद में यूरिया को घोल कर 200 लीटर डरम में डाल कर पौधों पर छिडक़ें।

अक्तूबर के महीने में सेब बागीचों से मिटटी परीक्षण के लिए भी नमूने लेने का उचित समय है। बागीचों में मिट्टी परीक्षण 5 वर्ष में कम से कम एक बार करना अतिआवश्यक है। पूर्ण परीक्षण होने के पश्चात ही जिन तत्वों की कमी पाई गई है, बांछित मात्रा में प्रयोग करना अत्यंत लाभप्रद है तथा इससे अनावश्यक पोषक तत्वों तथा खाद के प्रयोग में कमी आती है।

अधिकतर बागीचों में अनावश्यक पोषक तत्वों तथा उर्वरकों के प्रयोग होने के कारण कई कीट माईट तथा रोगों से वृद्धि देखी गई है। अत: अनावश्यक उर्वरक व पोषक तत्वों के प्रयोग से बचें तथा केवल इन पोषक तत्वों को पौधे की आयु व स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए वांछित मात्रा का प्रयोग करें अनावश्यक रूप से प्रयोग किए गए उर्वरकता को प्रभावित करते हैं अपितु पौधे के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं और खर्चे को बढ़ावा देते हैं।

यह समझना आवश्यक है कि स्वस्थ पौधे ही स्वस्थ तथा गुणवत्तायुक्त फल उत्पादन में सक्षम होते हैं। उर्वरकों तथा पोषक तत्वों के अवांछित व अनावश्यक प्रयोग से फल की गुणवत्ता तो घटती ही है अपितु फलपौधों की आयु पर विपरीत असर पड़ता है। वैज्ञानिक स्तर पर की गई मिटटी व पत्ती परीक्षण विधि से सकारात्मक परिणाम प्राप्त कर फल उत्पादन में निसंदेह आश्यर्चजनक वृद्धि की जा सकती है।

 

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