पशुधन को बढ़ावा देने में सहभागी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकताः अनिल शर्मा

शिमला: प्रदेश के किसानों की आर्थिकी में पशुधन के महत्व को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार दुग्धोत्पादन में बृद्धि सुनिश्चित करने के लिये गायों की नस्ल में सुधार के साथ-साथ पशुधन के बेहतर उपचार एवं सम्बद्ध सेवाओं को प्राथमिकता दे रही है। यह बात ग्रामीण विकास एवं पशुपालन मंत्री अनिल शर्मा ने आज यहां हि.प्र. राज्य पशु चिकित्सा परिषद द्वारा ‘समकालीन पशु चिकित्सा विषय’ पर आयोजित सेमीनार की अध्यक्षता करते हुए कही। सेमीनार में प्रदेशभर से 145 पशु चिकित्सकों ने भाग लिया।

शर्मा ने कहा कि पशु चिकित्सा की मवेशी पालन एवं उनके विकास में महत्वपूर्ण भूमिका है। ग्रामीण क्षेत्रों की उन्नति में पशुधन संशाधनों का समुचित उपयोग एक क्रान्तिकारी कदम है। उन्होंने कहा कि कृषि पर निर्भर समाज में पशु चिकित्सक सूचना का औपचारिक साधन है, तथा यह आवश्यक है कि पशु चिकित्सकों का अनुभव एवं ज्ञान किसानों की आवश्यकताओं और अपेक्षाओं के अनुरूप हों ताकि उन्हें बेहतर पशु चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध हो। पशु चिकित्सकों को पशुधन मालिकों को ग्राहक न मानकर सहयोगी के तौर पर देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि बदलते परिवेश में पशुधन के पालन में सहभागी दृष्टिकोण समय की आवश्यकता है।

पशु पालन मंत्री ने कहा कि किसानों की पशुधन पर निर्भरता के चलते पशुओं के उपचार के साथ-साथ पशु चिकित्सकों की अन्य बहुत सी जिम्मेवारियां हैं। पशु चिकित्सकों को अपने आप को पशुधन विकास से जोड़ना चाहिए ताकि क्षेत्र विशेष के विकास में उनका योगदान सुनिश्चित हो। उन्होंने कहा कि पशु चिकित्सा अस्पताल महज उपचार के केन्द्र न हो, बल्कि पशु रोग प्रबन्धन की तकनीकी जानकारी, पशु पैदावार एवं उनके कल्याण से जुड़ी तकनीकी जानकारी का स्त्रोत होना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार का उद्देश्य किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए उत्पादन बढ़ाना, उत्पादन की लागत को कम करना तथा बेहतर विपणन सुविधाएं प्रदान करना है।

शर्मा ने कहा कि मनुष्य और जानवरों का आपसी टकराव बढ़ रहा है और ऐसे में पशुधन एवं पालतु जानवरों के उपचार के अतिरिक्त, पशु चिकित्सकों की समाज के प्रति जिम्मेवारी और भी बढ़ गई है। पशुपालन मंत्री ने इस अवसर पर पशु चिकित्सा क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवाएं प्रदान करने वाले सेवानिवृत चिकित्सकों को सम्मानित भी किया। पशु पालन विभाग के निदेशक डा. शेखर मैसी ने इस अवसर पर स्वागत करते हुए कहा कि विभाग परिषद के निर्देशों का सफलतापूर्वक निर्वहन कर रहा है और व्यावसायिक क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से समय-समय पर प्रशिक्षणों एवं सेमिनारों का आयोजन किया जा रहा है।

हि.प्र. राज्य पशु चिकित्सा परिषद के अध्यक्ष डा. अनुपम मित्तल ने भी इस अवसर पर मुख्य अतिथि एवं अन्य गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत किया। उन्होंने ढांचागत विकास, तकनीकी श्रमशक्ति एवं आधुनिक उपकरणों जैसे आवश्यक मानदण्डों को अपनाने की आवश्यकता के अतिरिक्त, पशु चिकित्सालयों के स्तरोन्नयन पर बल दिया ताकि गरीब किसानों को पशु चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध करवाने में गुणवत्ता सुनिश्चित हो।

वैटरीनरी पैथोलोजिस्ट डा. विक्रम सिंह ने हिमाचल प्रदेश में आर्थिक तौर पर लाभदायी पशुधन एवं मुर्गी पालन से जुड़ी बीमारियों के उपचार के महत्व पर अपनी प्रस्तुति दी। पशु चिकित्सा एवं कृषि विज्ञान फैकल्टी डा. सुरेन्द्र चौहान ने पशुधन पैदावार में ऑक्सीकरण रोधी के महत्व पर प्रस्तुति दी। इसी तरह पशु चिकित्सा शल्य विशेषज्ञ डा. हेमेन्द्र शर्मा ने अपनी प्रस्तुति में आवारा कुत्तों के लिए पशु प्रजनन नियंत्रण कार्यक्रम के कार्यान्वयन पर प्रकाश डाला। वन्य प्राणी चिकित्सक डा. संदीप रत्तन ने हिमाचल प्रदेश में बन्दरों की समस्या के प्रबन्धन पर अपनी प्रस्तुति दी।

विभाग के सेवानिवृत अधिकारियों, जाने-माने पशु चिकित्सकों तथा परिषद के सदस्यों ने भी सेमीनार में भाग लिया।

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