ग्रीन बोनस के लिए हिमाचल सक्षम राज्य

शिमला : ग्रीन बोनस के लिए हिमाचल सक्षम राज्य है। देश का यह एक ऐसा राज्य है, जहां वनाच्छादित भू-खंड काफी विस्तृत है। पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हिमाचल प्रदेश की ग्रीन बोनस की मांग को संसद की समिति ने सही ठहराया है। समिति ने कहा कि प्रदेश को ग्रीन बोनस मिलना चाहिए लेकिन अभी तक इस मामले में महज घोषणाएं ही होती रही हैं, किसी ने भी सार्थक पहल नहीं की है। यह बात लोकसभा की वन व पर्यावरण मामलों पर आधारित स्टैंडिंग कमेटी ने सांसद भूपेंद्र सिंह की अध्यक्षता में गुरुवार को मीडिया से कही। उन्होंने कहा कि नए बिल में ऐसा प्रावधान किया जाएगा कि कोई भी हाइडल प्रोजेक्ट कैम्पा फंड में योगदान देने से न छूट सके। यदि कोई ऐसी कोताही करेगा तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई का भी प्रावधान होगा।

कई एनजीओ व अन्य वर्गों ने भी इस मुद्दे को उठाया है। लिहाजा प्रोजेक्ट प्रबंधक पर्यावरण व हरित पट्टी से खिलवाड़ न कर सकें, इसे भी सुनिश्चित किया जाएगा। संसद के शीतकालीन सत्र से पहले कमेटी अपनी रिपोर्ट पेश करेगी, जिसके बाद शीतकालीन सत्र में यह विधेयक पेश होगा। कैम्पा फंड को लेकर राज्य से बैठक हुई है। इसमें राज्य सरकार के सुझावों पर भी गौर किया गया है। इस फंड के अंतर्गत राज्यों को 90 फीसदी व केंद्र की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत होगी। उन्होंने एक अन्य सवाल पर कहा कि हिमाचल में मेडिसिनल प्लांट्स बहुतायात में हैं। ये मौजूदा परिस्थतियों में कहां तक बचे हैं और इनके संरक्षण व विकास पर क्या कुछ किया जा सकता है, इस पर भी विचार किया जाएगा। पर्यटन पर्यावरण पर हावी न हो इस बात का ख्याल रखा जाएगा। रोहतांग में स्थानीय लोगों के हितों की भी पैरवी होगी। बशर्ते पर्यावरण की कीमत पर टूरिज्म विकसित न हो। इससे पूर्व कमेटी के सदस्यों ने वन, ऊर्जा, पर्यावरण महकमों के अधिकारियों से भी बैठकें की हैं। कमेटी कंपनसेटरी एफोरेस्टेशन फंड बिल 2015 (कैम्पा) पर विभिन्न राज्यों में चर्चा कर रही है। इसी क्रम में इस समिति का हिमाचल दौरा है। इस कमेटी की सिफारिशों के बाद लोकसभा कैम्पा व कैट फंड को लेकर संशोधित विधेयक पेश करने के बाद पारित कर सकती है। कमेटी का मानना था कि हिमाचल की भौगोलिक परिस्थितियां भिन्न हैं। लिहाजा सड़क किनारे पैदल मार्ग निर्धारित किए जाने की आवश्यकता है।

जल्दबाजी में नहीं लिया जा सकता फैसला : संसदीय समिति के अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह

बंदरों की समस्या से हिमाचल प्रदेश ही नहीं, दिल्ली के लोग भी परेशान हैं। विज्ञान-प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और वन संबंधी संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह ने कहा कि बंदरों के साथ धार्मिक आस्था भी जुड़ी है, इसलिए बंदरों के मामले में कोई भी फैसला जल्दबाजी में नहीं लिया जा सकता। उन का कहना है कि दो दिनों के दौरे के दौरान प्रदेश के लोगों के समूहों ने हमें बंदरों से होने वाले नुकसान के संबंध में अवगत करवाया है।

राज्यों को केंद्र सरकार से तीन मदों के तहत मिलता है पैसा

वन संरक्षण अधिनियम आने के बाद वर्ष 1980 से लेकर अब तक केंद्र सरकार के पास 38000 करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि एकत्र हो चुकी है। केंद्र सरकार से राज्यों को तीन मदों के तहत पैसा मिलता है। वन भूमि पर निर्मित होने वाली जल विद्युत परियोजनाओं से व दूसरी परियोजनाओं से पैसा लगातार आ रहा है। केंद्र सरकार कैंपा कोष के तहत 10 प्रतिशत पैसा अपने पास रखना चाहती है, जबकि शेष धनराशि राज्यों को देना चाहती है। गाडगिल फार्मूले के तहत भी केंद्र सरकार से राज्यों को पैसा मिलना है। पर्यावरण संरक्षण करने के लिए फार्मूला तय हुआ था। इसके तहत 8000 करोड़ रुपये हैं। प्रदेश सरकार का तर्क है कि हिमाचल की रैंकिंग नंबर वन है इसलिए प्रदेश को अधिक पैसा मिलना चाहिए।

हिमाचल सरकार की ग्रीन बोनस की मांग जायज

हम रिपोर्ट को केंद्र सरकार के सुपुर्द कर देंगे जो संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान सरकार बिल पेश करेगी। उसके बाद ही तय होगा राज्यों को कितना धन प्राप्त होगा। हिमाचल सरकार की ग्रीन बोनस की मांग जायज है।

भूपेंद्र सिंह, अध्यक्ष संसदीय समिति।

 

 

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